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न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से कमजोर होता है विश्वास : सीजेआई

बोले- सेवानिवृत्ति के बाद जजों को पद मिलना नैतिक चिंता का विषय
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लंदन में एक कार्यक्रम के लिए पहुंचे भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, इंग्लैंड की महिला मुख्य न्यायाधीश बैरोनेस कैर और लॉर्ड लेगट। -एएनआई
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नयी दिल्ली, 4 जून (ट्रिन्यू/एजेंसी)

चीफ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई ने कहा है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाओं से जनता के भरोसे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे पूरी व्यवस्था की शुचिता में विश्वास कम हो सकता है।

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ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में ‘मेंटेनिंग जूडिशियल लेजिटिमेसी एंड पब्लिक कॉन्फिडेंस’ विषय पर आयोजित एक गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने न्यायाधीशों द्वारा सेवानिवृत्ति के बाद की जाने वाली नौकरियों के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि अगर कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सरकार में कोई अन्य नियुक्ति प्राप्त करता है, या चुनाव लड़ने के लिए पीठ से इस्तीफा देता है तो इससे गंभीर नैतिक चिंता पैदा होती है। उन्होंने कहा कि इसी को देखते हुए मेरे कई सहयोगियों और मैंने सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कोई भूमिका या पद स्वीकार न करने की सार्वजनिक तौर पर प्रतिज्ञा की है। यह प्रतिबद्धता न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को बनाए रखने का एक प्रयास है।

सीजेआई ने कहा कि दुख की बात है कि न्यायपालिका के भीतर भी भ्रष्टाचार और कदाचार के मामले सामने आए हैं। ऐसी घटनाओं से जनता के भरोसे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे पूरी प्रणाली की शुचिता में विश्वास खत्म हो सकता है। इन मसलों पर त्वरित, निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई करके ही इस विश्वास को फिर से कायम किया जा सकता है।

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