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राष्ट्रपति के सवालों पर विचार करेगी संविधान पीठ

पारित विधेयकों पर निर्णय की समयसीमा तय करने का मामला
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सुप्रीम कोर्ट।
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राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए कार्यवाही करने की समयसीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उठाए गए 14 महत्वपूर्ण प्रश्नों पर शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी। पीठ ने मंगलवार को इस पर सहमति व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार और सभी राज्यों से एक हफ्ते में जवाब मांगा। मामले की सुनवाई अगस्त के मध्य में होगी।

चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति के संदर्भ में जो मुद्दा उठाया गया है वह पूरे देश पर प्रभाव डालने वाला है। इसमें संविधान की व्याख्या के मुद्दे हैं। मामले पर संक्षिप्त सुनवाई के दौरान केरल और तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ताओं केके वेणुगोपाल और पी. विल्सन ने इस संदर्भ का विरोध किया। चीफ जस्टिस ने कहा कि यह आपत्तियां बाद में उठाई जा सकती हैं। संविधान पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर भी शामिल हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने गत आठ अप्रैल को अपने फैसले में निर्धारित किया था कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए। इसके बाद मई में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए शीर्ष अदालत से यह जानना चाहा था कि क्या विधानसभा से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने के लिए न्यायिक आदेशों द्वारा कोई समय-सीमा तय की जा सकती है। पांच पृष्ठों के संदर्भ में राष्ट्रपति ने शीर्ष अदालत से अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपालों एवं राष्ट्रपति की शक्तियों के संबंध में राय पूछी है।

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