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CasteCensus खड़गे का प्रधानमंत्री मोदी को पत्र : जाति जनगणना पर राजनीति दलों से संवाद और तेलंगाना मॉडल का सुझाव

नयी दिल्ली, 6 मई (एजेंसी) CasteCensus  कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जाति जनगणना के विषय पर सभी राजनीतिक दलों से संवाद करने और "तेलंगाना मॉडल" को अपनाने का आग्रह किया है। उनका कहना है...
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मल्लिकार्जुन खड़गे की फाइल फोटो।
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नयी दिल्ली, 6 मई (एजेंसी)

CasteCensus  कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जाति जनगणना के विषय पर सभी राजनीतिक दलों से संवाद करने और "तेलंगाना मॉडल" को अपनाने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि यह कदम गहन सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण होगा।

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खड़गे ने पत्र में यह भी प्रस्तावित किया कि राज्यों द्वारा पारित आरक्षण को तमिलनाडु की तर्ज पर संविधान की नौंवी अनुसूची में डाला जाए, 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा को खत्म किया जाए और निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था लागू की जाए।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने यह पत्र 5 मई को अपने ‘एक्स’ हैंडल पर साझा किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद खरगे ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री के हालिया ‘यू-टर्न’ की आलोचना की।

खड़गे ने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि उन्होंने पहले 16 अप्रैल, 2023 को प्रधानमंत्री से जातिगत जनगणना की मांग की थी, लेकिन उस पत्र का कोई उत्तर नहीं मिला। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री अब खुद स्वीकार कर रहे हैं कि जाति जनगणना सामाजिक न्याय के हित में है।

ये दिए तीन प्रमुख सुझाव

तेलंगाना मॉडल को लागू करना : खड़गे ने कांग्रेस शासित तेलंगाना में किए गए जातिगत सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि जाति जनगणना के सवालों का डिजाइन महत्वपूर्ण है। उनका सुझाव है कि गृह मंत्रालय को तेलंगाना मॉडल को अपनाना चाहिए, ताकि जाति-संबंधी जानकारी का संग्रहण सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर किया जा सके।

आरक्षण सीमा को हटाना : खड़गे ने कहा कि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और ओबीसी के लिए 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा को संविधान संशोधन के माध्यम से समाप्त किया जाना चाहिए।

निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण : अनुच्छेद 15(5) के तहत निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने 2014 में अपने निर्णय में स्वीकार किया था।

खड़गे ने अपने पत्र में यह भी स्पष्ट किया कि जाति जनगणना को किसी भी रूप में विभाजनकारी नहीं माना जाना चाहिए। इसके माध्यम से सामाजिक और आर्थिक न्याय तथा समान अवसर सुनिश्चित किया जा सकता है।

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