बिहार की मसौदा मतदाता सूची अंतिम नहीं : चुनाव आयोग
चुनाव आयोग ने रविवार को कहा कि कुछ लोग यह गलत धारणा फैला रहे हैं कि बिहार में प्रकाशित होने वाली मसौदा मतदाता सूची ही अंतिम सूची है, जबकि विशेष गहन पुनरीक्षण आदेशों के अनुसार यह अंतिम सूची नहीं है। आयोग ने कहा कि जब किसी नाम को गलत तरीके से शामिल किए जाने या बाहर किए जाने की बात रेखांकित करने के लिए एक अगस्त से एक सितंबर तक, पूरा एक महीने का समय है, तो वे इतना हंगामा क्यों
मचा रहे हैं?
इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य के विभिन्न विपक्षी दलों ने दावा किया है कि दस्तावेजों के अभाव में करोड़ों पात्र नागरिक मताधिकार से वंचित हो जाएंगे। आयोग ने ऐसे दलों पर चुटकी लेते हुए कहा, ‘अपने 1.6 लाख बूथ-स्तरीय एजेंटों से एक अगस्त से एक सितंबर तक दावे और आपत्तियां जमा करने के लिए क्यों नहीं कहते हैं।’
राज्य में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण का एक महीने तक चला पहला चरण पूरा हो चुका है। आयोग ने बताया कि इस दौरान 7.24 करोड़ यानी 91.69 फीसदी मतदाताओं से गणना फार्म प्राप्त हो गए हैं। आयोग ने बताया कि 36 लाख लोग या तो अपने पिछले पते से स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं या फिर उनका कोई पता ही नहीं है। वहीं, सात लाख मतदाताओं का कई जगहों पर नाम दर्ज है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज
बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सुनवाई करेगा। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ इस मामले पर विचार कर सकती है। याचिकाकर्ताओं में कई राजनीतिक नेता, नागरिक समाज के सदस्य और संगठन शामिल हैं। आयोग ने एसआईआर को यह कहते हुए उचित ठहराया है कि मतदाता सूची से अपात्र व्यक्तियों का नाम हटाने से चुनाव की शुचिता बढ़ेगी। वहीं, मुख्य याचिकाकर्ता ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने एक प्रत्युत्तर हलफनामे में दावा किया है कि निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) को बेहद व्यापक और अनियंत्रित विवेकाधिकार प्राप्त हैं, जिससे बिहार की बड़ी आबादी के मताधिकार से वंचित होने का खतरा पैदा हो सकता है।