Arvind Kejriwal : मफलर वाला ‘आम आदमी' जिसने राजनीतिक सपने की लिखी इबारत
नई दिल्ली, 8 फरवरी (भाषा)
Arvind Kejriwal : जेब में एक बॉल पैन, गले में मफलर, बैगी स्वेटर और नीली वैगन आर कार के साथ अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखा तो वह एक ‘‘आदर्श आम आदमी'' थे। जब उन्होंने अपनी पार्टी का नाम ‘आम आदमी' के नाम पर रखने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया तो लोग उनकी ओर आकर्षित हुए। वह 2013 का वर्ष था।
टूटने लगा राष्ट्रीय स्तर का नेता बनने का सपना
अब लगभग 12 साल बाद, उस पूर्व नौकरशाह, सामाजिक कार्यकर्ता का अखिल भारतीय स्तर की पार्टी व राष्ट्रीय स्तर का नेता बनने का सपना टूटने लगा है। केजरीवाल ने किसी स्थापित पार्टी में शामिल होकर राजनीतिज्ञ बनने का विकल्प चुनने के बजाय जमीनी स्तर से बिल्कुल नई ‘आम आदमी पार्टी' का गठन किया। लगातार 10 वर्षों तक दिल्ली पर शासन करने के साथ ही पंजाब में भी सरकार बनाने वाली आप शनिवार को दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार गई, उसे 22 सीटें मिलीं जबकि भाजपा को 48 सीटें मिलीं।
इतना ही नहीं, केजरीवाल अपनी नयी दिल्ली सीट भी भाजपा के प्रवेश वर्मा से हार गए। इस हार ने न केवल पार्टी के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया बल्कि इसके राष्ट्रीय संयोजक का भविष्य भी सवालों के घेरे में आ गया है। केवल पंजाब को अपनी झोली में रख कर 56 वर्षीय नेता केजरीवाल की स्वयं और उनकी पार्टी के लिए राष्ट्रीय उम्मीदें ध्वस्त हो गई हैं - कम से कम फिलहाल तो ऐसा ही दिख रहा है। दिल्ली में हार के बावजूद ‘आप' अभी भी राजनीतिक उपस्थिति रखती है।
पंजाब और दिल्ली से इसके 13 सांसद हैं - पंजाब से सात और दिल्ली से तीन राज्यसभा सदस्य और पंजाब से तीन लोकसभा सदस्य। आईआईटी-खड़गपुर से स्नातक और भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के पूर्व अधिकारी ने पहली बार 2013 में चुनावी राजनीति में कदम रखा किया था। तीन बार मुख्यमंत्री रहीं तथा कांग्रेस की कद्दावर नेता शीला दीक्षित को हराकर कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाई थी।
14 फरवरी, 2014 को पहली बार दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के सिर्फ 49 दिन बाद, केजरीवाल ने अपने गठबंधन सहयोगी कांग्रेस द्वारा अपने प्रमुख उद्देश्य ‘जन लोकपाल विधेयक' का विरोध करने के चलते सुर्खियां बटोरते हुए पद छोड़ दिया था। उसके बाद 2015 में हुए चुनावों में आप ने 70 में से 67 सीटें जीतीं जबकि पांच साल बाद हुए चुनाव में इसने 62 सीटें जीतीं। 2024 में, जब केजरीवाल आबकारी ‘घोटाले' में भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल गए, तो उन्होंने दूसरी बार इस्तीफा दे दिया।
वर्ष 2000 में आयकर अधिकारी की नौकरी छोड़ने के बाद केजरीवाल ने आरटीआई कार्यकर्ता के रूप में काम किया और वर्ष 2010 तक दिल्ली की झुग्गियों में रहकर वहां रहने वाले लोगों की समस्याओं को समझा। वर्ष 2011 में वह अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए और इसी आंदोलन की नींव पर उन्होंने अपने राजनीतिक सपनों की इबारत लिखी।