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उम्र और मैराथन के शहंशाह थे 114 वर्ष के ‘युवा’ फौजा सिंह

यादों के झरोखे से
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डॉ. कृष्ण कुमार रत्तू

इस दुनिया का जीवित अजूबा बने रहने वाले मैराथन धावक फौजा सिंह अब दौड़ते नजर नहीं आएंगे। वे पूरी दुनिया की सड़कों पर वाहेगुरु का नाम जपते हुए, खंडे के लोगो वाली सफेद टी-शर्ट पहने, हवा से बातें करते हुए इस तरह चलते थे, मानो रुमकती हवा का बुलबुला यादों की कहानी कह रहा हो। यही थी दुनिया के महान मैराथन धावक फौजा सिंह की जिंदगी और शख्सियत की एक पहचान। वे 114 वर्ष के ऐसे बुजुर्ग ‘युवा’ धावक थे, जो उम्र का मजाक उड़ाने वाले और उड़ती हवा के बुलबुले के साथ वाहेगुरु को याद करने वाली एक जादुई शख्सियत थे। उनके साथ घंटों तक खत्म न होने वाली यादों और बातों का सिलसिला शुरू होता था, तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता था। फौजा सिंह वास्तव में 114 वर्ष की उम्र में भी युवाओं की तरह बातें करने वाले मैराथन धावक थे। एक कार हादसे में जालंधर में वे अचानक इस दुनिया से रुखसत हो गए।

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पूरी दुनिया में ‘पगड़ी वाला तूफान’, ‘रनिंग बाबा’ और ‘सुपर सिख’ जैसे खिताबों के साथ धाक जमाने वाले फौजा सिंह का जन्म 1 अप्रैल, 1911 को जालंधर के पास ब्यास गांव में हुआ था। बाद में वे एक भारतीय मूल के सिख एथलीट के रूप में ब्रिटिश नागरिक बन गए। 2003 में 92 वर्ष की उम्र में उन्होंने टोरंटो मैराथन में दौड़कर एक विश्व रिकॉर्ड बनाया था। 2004 में ही फौजा सिंह को स्पोर्ट्सवेयर निर्माता एडिडास के समर्थन में विश्व प्रसिद्ध खिलाड़ियों डेविड बेकहम और मोहम्मद अली के साथ खड़े देखा गया था। किसी पंजाबी एथलीट के लिए यह गर्व के पल थे, जिन्हें वे बड़े चाव के साथ सुनाते थे। उन्होंने 89 साल की उम्र में गंभीरता से दौड़ना शुरू किया था। वे कहते थे कि यह उनकी अच्छी किस्मत थी कि उनकी मुलाकात पूर्व पेशेवर धावक हरमंदर सिंह से हुई, जो उनके कोच और दोस्त बने। इसके बाद वे लंदन मैराथन में शामिल हुए। उनके कोच हरमंदर कहते थे, ‘यह मेरे लिए सम्मान की बात है। उन्होंने एक दर्जन से अधिक पूर्ण और अर्ध-मैराथन दौड़ पूरी कीं।’ उनकी सेहत की जांच से पता चला था कि उनकी हड्डियां 35 साल के व्यक्ति जैसी थीं। फिर भी, उनका दावा था कि वे कभी दूध नहीं पीते, क्योंकि उन्हें बलगम जमा होने का डर था। अपनी बाकी खुराक के बारे में पूछे जाने पर वे हंसते हुए कहते थे, ‘मैं घंटों बात कर सकता हूं, लेकिन यह कोई नई या जादुई चीज नहीं है। पंजाबी लोग जानते हैं कि खान-पान की क्या अहमियत है। मैं बस उतना ही खाता हूं, जितनी मुझे जरूरत है... थोड़ी सी दाल और रोटी, गोभी और चाय। अगर मैं हर वक्त पेट भरकर खाऊं, तो शायद मर जाऊं।’ फौजा सिंह रोजाना 10 से 15 किलोमीटर दौड़ते थे। वे कहते थे, ‘तुम्हें अपना इंजन चलता रखना पड़ता है। मुझे अपनी जिंदगी में बहुत गर्व है कि मुझे पारिवारिक रूप से फौजा सिंह जी के साथ जालंधर में समय बिताने का मौका मिला। जब भी वे हमारे घर आए, एक परिवार के बड़े सदस्य की तरह व्यवहार करते और आशीर्वाद देते रहे। जब भी उनसे बातें हुईं, वे बिना किसी परहेज के साधारण दाल-रोटी और मिठाई खा लेते थे। उनके अनुसार, दौड़ना ईश्वर की इबादत है, इससे मन और शरीर की एकाग्रता बढ़ती है और लंबी उम्र मिलती है। सिंह कई बार वे परिवार से छिपकर दौड़ने चले जाते और रिकॉर्ड बनाकर लौट आते। कई रिकॉर्डों के बारे में वे कहते थे, ‘मैं इतना चिंतित था कि शायद मैं इसे पूरा न कर सकूं। मैंने किसी को नहीं बताया कि मैं यह कर रहा हूं। मैं बस उस रिकॉर्ड को तोड़ना चाहता था।’ पंजाबी में बात करते हुए फौजा सिंह कहते थे कि दौड़ने ने उन्हें मकसद और शांति का अहसास दिया। उन्होंने कहा,‘ छोटी-छोटी बातों की चिंता क्यों करनी? मैं तनाव नहीं लेता। तुमने कभी नहीं सुना कि कोई खुशी से मर गया।’ हमारे समय के इस महान धावक की यादें हमें हमेशा प्रेरित करती रहेंगी।

लेखक दूरदर्शन के  उप-महानिदेशक रह चुके हैं।

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