
भीम राज गर्ग
पंजाबी-हिंदी फिल्मों में सबसे लंबी रेस के घोड़े, सुंदर ने अपने छोटे कद और उदास आंखों वाले चेहरे के साथ विशिष्ट व सटीक समयबद्ध कॉमेडी द्वारा अपनी एक अलग पहचान बनाई। बहुमुखी अभिनय प्रतिभा के धनी अभिनेता सुंदर ने बतौर नायक पंजाबी फिल्मों में दर्शकों को खूब गुदगुदाया। फिल्म छई (1950) के सुपरहिट गाने 'अजी ओ मुंडा मोह लिया तवीतां वाला दमड़ी दा सक मलके' ने रातों रात अभिनेता सुंदर को पंजाबी फिल्मों का सफल हीरो बना दिया था। इस फिल्म में उसकी नायिका चुलबुली गीता बाली थी।
सस्सी पुन्नू से शुरुआत
सुंदर ने इससे पूर्व कई पंजाबी फिल्मों में सहायक अभिनेता/कॉमेडियन के रोल निभाए थे। उनकी प्रथम पंजाबी फिल्म सस्सी पुन्नू(1939) थी, जिसमें उनके अभिनय की बहुत प्रशंसा हुई थी। फिर उन्हें पंजाबी भाषा की अन्य पांच फिल्मों जैसे जग्गा डाकू (1940), लैला मजनू(1941), मेरा माही (1941), गवांढी(1942) और पटवारी(1942) में सहायक अभिनेता के रूप में अभिनय करने का अवसर मिला।
बचपन के सपने बने हकीकत
नायक व कॉमेडियन सुंदर (सुंदर सिंह) का जन्म 14 मार्च 1908 को लाहौर में हुआ था। बचपन से ही सुंदर को सिनेमा से लगाव हो गया था। सामान्य नाटे कद वाला सुंदर, फिल्मों में हीरो बनने के ख्वाब देखने लग गया था। बीस वर्ष के थे जब कलकत्ता की ओर रुख किया। सौभाग्यवश उसे सबसे पहले इंदिरा मूवीटोन की हिंदी फिल्म 'वीर केसरी' (1938) में अभिनय का अवसर मिला। फिर इसी बैनर की फिल्म 'जोश-ए-इस्लाम' (1939) में सहायक भूमिका निभाई। इसी वर्ष उसने सफदर मिर्जा द्वारा निर्देशित फिल्म 'इंपीरियल मेल' (1939) में अभिनय के साथ पार्श्व-गायन भी किया। सुंदर सिंह की अगली हिंदी फिल्म 'सिपाही' (1941) को ब्रिटिश सरकार ने पहले प्रतिबंधित कर दिया था, फिर इसे 'जंगी जवान'(1943) नाम से रिलीज किया गया। उस दौर में सुंदर ने 'खामोशी', 'मनचली' और 'शुक्रिया' जैसी फिल्मों में अभिनय के साथ-साथ गीत भी गाए थे। संगीतकार जी.ए. चिश्ती ने 'जिद' (1945) में उनसे 6 गाने भी गवाए थे। बाद में सुंदर ने बतौर प्लेबैक सिंगर फिल्म चांदनी चौक, मस्ताना, उपकार आदि के लिए गाया।
'छई' और भांगड़ा की धूम
फिल्म 'छई' की अभूतपूर्व सफलता के बाद सुंदर, पंजाबी फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद बन गए थे। उनकी अगली पंजाबी फिल्म 'मुटियार' (1950) में सुंदर ने मज़ेदार भूमिका निभाई जिसमें उनके द्वारा गाया गीत 'कियों लाके सोहन्या नाल यारो' हिट रहा था। इसके पश्चात सुंदर ने बालो (1951), वसाखी (1951), लारा लप्पा (1953), वंजारा (1954) जैसी हिट पंजाबी फिल्में की। वर्ष 1959 में सुंदर के अभिनय वाली जुगल किशोर द्वारा निर्देशित गोल्डन मूवीज़ की फिल्म 'भांगड़ा' (1959) प्रदर्शित हुई थी जिसने स्वर्ण जुबली मनाई। इससे पंजाबी फिल्मों में भांगड़ा गीत का ट्रेंड शुरू हो गया था। यह फिल्म उनके कैरियर में मील का पत्थर साबित हुई। फिर सुंदर ने सफल संगीतमय पंजाबी फिल्मों की झड़ी लगा दी। 1970 के दशक में, सुंदर कॉमेडी और चरित्र भूमिकाओं तक सीमित रह गया था। साल 1980 के दशक में सुंदर ने राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता पंजाबी फिल्म 'चन्न परदेसी' में काम किया। 'दो पोस्ती' उनकी आखिरी पंजाबी फिल्म थी।
हास्य एवं चरित्र भूमिकाएं
सुंदर ने प्रारम्भिक दौर की हिंदी फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभाई थीं, परन्तु देश विभाजन के बाद उन्हें हिंदी फिल्मों में केवल हास्य एवं चरित्र भूमिकाएं मिलीं। अमिय चक्रवर्ती की फिल्म 'सीमा' (1955) में सुंदर ने हीरो बलराज साहनी के विश्वासपात्र मुरलीधर की अविस्मरणीय भूमिका निभाई। थ्रिलर 'हावड़ा ब्रिज' (1957) में सुंदर ने भीकू का रोल किया था। 'सोलवां साल' (1958) में सुंदर ने नायक देव आनंद के सहयोगी फोटोग्राफर का यादगार रोल निभाया था। लोकप्रिय गीत 'है अपना दिल तो आवारा' में सुंदर माउथ ऑर्गन बजाता हुआ दिखाई देता है।
उन्होंने चार सौ से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। उनकी कुछ लोकप्रिय फिल्मों में अलबेला, पड़ोसन, आई मिलन की बेला, इंसान जाग उठा, शराबी, आबरू आदि शामिल हैं। अभिनेता सुंदर को वह श्रेय नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। अभिनेता सुंदर 5 मार्च 1992 को इस नश्वर संसार से विदा हो गए थे।
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