नयी दिल्ली : ‘तबले की थाप जब आप सुनते हैं तो आपका चित्त उसमें खो जाता है और आपको मिलती है एक आध्यात्मिक शांति। तबला वादन में अनेक प्रयोग संभव हैं और ऐसा हो भी रहा है। एक दिन विश्व भारतीय तबले की थाप सुनेगा।’ यह कहना है प्रसिद्ध तबला वादक और दिल्ली घराना शैली (दिल्ली बाज) के वादक स्वर्गीय पंडित सुभाष निर्वान के पुत्र सूरज निर्वाण का। सूरज का कहना है कि अपनी अनूठी वादन शैली के माध्यम से इसे केवल तकनीकी रचनात्मकता बनाने के अलावा, अपनी सुरीली धुनों के साथ, इस क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं। उनका कहना है कि दिल्ली घराना ने दो अंगुलियों की शैली विकसित की थी। इसमें और नये प्रयोग हो रहे हैं। हाल ही में, सूरज को पंडित जसराज संस्थान द्वारा आयोजित ‘मेवाती संगीत मार्तंड पर्व’ उत्सव में दिल्ली घराना तबला की मनमोहक धुनों में दर्शकों को मन्त्रमुग्ध करने का मौका मिला।
सूरज ने संगीत और ललित कला विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय में तबला संकाय के पद पर भी काम किया है। इसके अलावा, वह अन्य प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों जैसे कला आश्रम, श्री राम भारतीय कला केंद्र, और अन्य में संकाय का हिस्सा थे। वर्तमान में, सूरज निर्वाण बांग्लादेश की राजधानी ढाका में शिक्षक-सह-कलाकार के रूप में तैनात हैं। उन्हें तबला सिखाने और प्रचार करने के लिए आईसीसीआर की ओर से यह असाधारण अवसर दिया गया है। तबले की थाप को नयी दिशा देने में समर्पित होने का दावा करने वाले सूरज का मानना है की आज के ज़माने में तबला बजाकर जीविका चला पाना बेहद कठिन है। शास्त्रीय संगीत के कॉन्सर्ट्स होते हैं, परंतु अधिक फ़ीस नहीं मिलने से कई कलाकारों का मनोबल टूट जाता है। इसलिए बहुत से तबला वादक घराने से शिक्षित होते हुए भी, शास्त्रीय संगीत को कम, बल्कि फ़िल्मी या सुगम संगीत में संगत करके अपना गुज़र बसर कर रहे हैं। तबला में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के कारण कई लोग ऐसे भी हैं जो दूसरे पेशे को चुनना ही उचित समझते हैं। सूरज निर्वाण बताते हैं की लाकडाउन से पूरा कला जगत प्रभावित हुआ, ऐसे में हमने कई कलाकारों को अपनी संस्था ‘पंडित सुभाष निर्वान फ़ाउंडेशन’ के द्वारा ऑनलाइन न केवल मंच प्रदान किया बल्कि आर्थिक सहायता भी की।