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किशोरों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति

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जन संसद की राय है कि किशोरों में बढ़ती हिंसा चिंताजनक है। इसके पीछे सामाजिक, पारिवारिक व मानसिक कारण हैं, जिनका समाधान संवाद, संस्कार, निगरानी और सकारात्मक वातावरण से संभव है।

संस्कारों की अनदेखी

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हाल ही में हिसार में एक छात्र ने अपने सहपाठी से प्रतिशोध के लिए अपने सेना से सेवानिवृत्त दादा के हथियार से उसकी हत्या कर दी। वहीं दिल्ली के वजीराबाद में फिरौती के लिए एक बच्चे ने अपने मित्र की हत्या कर दी। यह चिंताजनक है कि बच्चों में आपराधिक सोच और हिंसा कैसे प्रवेश कर गई। इसके पीछे पारिवारिक कलह, समाज में बढ़ती असहनशीलता, मादक पदार्थों का सेवन, फिल्मों और वेब सीरीज का दुष्प्रभाव जैसे कारण हैं। समाधान परिवार और स्कूल से शुरू हो सकता है—संयम, संवाद, और कानून का डर जरूरी है ताकि बच्चे सही दिशा में बढ़ें।

शामलाल कौशल, रोहतक

मूल्यों का समावेश हो

आज किशोरों में उग्रता और हिंसा की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है, जो समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इसका समाधान घर से शुरू होता है—माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को अच्छे संस्कार दें और उनकी गतिविधियों पर सतत निगरानी रखें, विशेषकर मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग पर। विद्यालयों में शिक्षा के साथ मानव मूल्यों का समावेश हो और उन्हें अपने इतिहास व संस्कृति से जोड़ा जाए। मीडिया को भी हिंसक और भड़काऊ सामग्री से बचना चाहिए। जब परिवार, शिक्षा और मीडिया मिलकर प्रयास करेंगे, तभी एक सभ्य, सुसंस्कृत और मानवतावादी युवा पीढ़ी तैयार होगी।

सुदर्शन, पटियाला

सकारात्मक संवाद

आज के बच्चे इंटरनेट, फिल्मों और सोशल मीडिया से गहराई से प्रभावित हो रहे हैं। जो वे देख रहे हैं, वही उनका व्यवहार बनता जा रहा है। माता-पिता की अनदेखी और स्कूलों में गलत संगत भी बच्चों को भटका रही है। सही परवरिश, नैतिक शिक्षा और सकारात्मक संवाद से उन्हें सही दिशा दी जा सकती है। सरकार को मीडिया द्वारा परोसे जाने वाले कंटेंट पर नियंत्रण रखना चाहिए। स्कूलों में योग, मेडिटेशन और ब्रीदिंग एक्सरसाइज जैसी गतिविधियां शामिल कर बच्चों के मन को शांत और स्वभाव को संयमित बनाना जरूरी है, ताकि वे एक बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर हों।

अभिलाषा गुप्ता, मोहाली

सकारात्मक वातावरण

आज का किशोर कई कारणों से हिंसक प्रवृत्तियों की ओर झुक रहा है, जो अत्यंत चिंता का विषय है। इसकी रोकथाम में परिवार, समाज और विद्यालय की अहम भूमिका है। संगति का गहरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए उसके मित्रों और दिनचर्या पर सतत ध्यान देना ज़रूरी है। सबसे आवश्यक है किशोर से संवाद बनाए रखना, ताकि उसकी सोच और समस्याओं को समझा जा सके। उसे आत्मविश्वास से अपनी बात कहने का अवसर मिलना चाहिए। समयानुकूल मार्गदर्शन और सकारात्मक वातावरण से ही किशोर को सही दिशा दी जा सकती है।

कृष्णलता यादव, गुरुग्राम

सही मार्गदर्शन दें

हिसार में एक छात्र द्वारा सहपाठी की की गई हत्या ने समाज को झकझोर दिया है। यह गंभीर सोच का विषय है कि हमारे बच्चे क्यों हिंसक हो रहे हैं। वेब सीरीज़, इंटरनेट और मीडिया में दिखाए जा रहे आपराधिक कंटेंट का उन पर गलत असर पड़ रहा है। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों पर सतत निगरानी रखें, उन्हें सही-गलत की समझ दें और संवाद बनाए रखें। स्कूलों में नैतिक शिक्षा, सकारात्मक गतिविधियां और मार्गदर्शन से बच्चों को सही दिशा दी जा सकती है। यदि समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो यह प्रवृत्ति समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

पूनम कश्यप, नयी दिल्ली

मनोवैज्ञानिक कारण समझें

हाल ही में हिसार के एक छात्र द्वारा डेस्क पर बैठने के विवाद में सहपाठी की गोली मारकर हत्या करना बेहद चिंताजनक है। ऐसी घटनाएं हमारी शिक्षा प्रणाली, पारिवारिक परवरिश और सामाजिक ढांचे पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं। क्या बच्चों को मनचाही सुविधाएं देकर हम उनकी सहनशीलता और संवेदना कम कर रहे हैं? किशोरों की हिंसक प्रवृत्ति को रोकने के लिए जरूरी है कि हम उनके व्यवहार के पीछे छिपे मनोवैज्ञानिक कारणों को समझें और संवेदनशीलता के साथ उनका मार्गदर्शन करें। समय रहते समाधान न किया गया तो यह प्रवृत्ति समाज के लिए घातक बन सकती है।

देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद

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