पाठकों के पत्र
अतार्किक विरोध
सात जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित संपादकीय ‘भाषाई दुराग्रह’ को पढ़कर आश्चर्य हुआ कि राज और उद्धव ठाकरे 20 साल बाद मराठी भाषा के समर्थन और हिंदी के विरोध के लिए एकजुट हुए हैं, जबकि शिवसेना का अस्तित्व और महाराष्ट्र के विकास का आधार हिंदी ही रहा है। यह स्थिति केवल मुंबई नगर निगम या राज्य की सत्ता पर काबिज होने का प्रयास नहीं हो सकती, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और भाषाई सद्भाव को चोट पहुंचाने का प्रयास है। ऐसे प्रयासों की जितनी निंदा की जाए, वह कम होगी।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
ट्रंप की दादागीरी
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकियों के कारण कनाडा को डिजिटल सर्विस टैक्स रद्द करना पड़ा, जो अमेरिकी टेक कंपनियों पर 3 फीसदी कर लगाने वाला था। ट्रंप ने इसे अमेरिका पर हमला बताया और कड़े टैरिफ की चेतावनी दी। कनाडा ने 21 जुलाई तक नए व्यापार समझौते के लिए वार्ता फिर शुरू करने का फैसला किया है। वित्त मंत्री फ्रांस्वा-फिलिप शैम्पेन डीएसटी रद्द करने हेतु विधेयक पेश करेंगे। यह ट्रंप की दबाव रणनीति की जीत मानी जा रही है।
आरके जैन, बड़वानी, म.प्र.
छोटी सोच
सात जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय ‘भाषाई दुराग्रह’ में महाराष्ट्र में मराठी के नाम पर हिंदी का विरोध करने की कड़ी आलोचना की गई। हिंदी, जो देश को एकजुट करती है, का विरोध देश की एकता और संघीय ढांचे पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। महाराष्ट्र में हिंदी विरोध संकुचित मानसिकता का परिचायक है। शिवसेना के नेता मराठी को आधार बनाकर राजनीति कर रहे हैं।
शामलाल कौशल, रोहतक
एजेंटों की धोखाधड़ी
आए दिन विदेश भेजने के नाम पर फर्जी ट्रेवल एजेंट लोगों को धोखा दे रहे हैं। कुछ एजेंट पैसे लेकर विदेश भेजते ही नहीं, जबकि कुछ डंकी रूट का इस्तेमाल कर गैर कानूनी तरीके से लोगों को भेजते हैं। दोनों ही मामलों में नुकसान सिर्फ आवेदक को ही होता है, जो अपनी मेहनत की कमाई इन एजेंटों को दे बैठता है। सरकार को चाहिए कि वह ऐसे धोखेबाज एजेंटों पर कड़ी कार्रवाई करे।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली