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खुशी के मानक और भारत
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जन संसद की राय है भले ही देश में गरीबी व असमानता हो, लेकिन इसके बावजूद हम दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। हमारी तमाम कामयाबियों के चलते हम यूक्रेन, फलस्तीन,पाक व नेपाल से पीछे नहीं हो सकते। नीति-नियंता आत्ममंथन करें।

नेतृत्व आत्ममंथन करे

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वैश्वीकरण के दौर में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भूख, भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य और खुशहाली जैसे विभिन्न जीवन मूल्यांकन के मामलों पर रिपोर्टें जारी की जाती हैं। हैप्पीनेस इंडेक्स 2025 के अनुसार, फिनलैंड, डेनमार्क, नार्वे जैसे छोटे देश खुशी के मामले में दुनियाभर में अव्वल हैं। इस कड़ी में भारत को फलस्तीन और यूक्रेन से भी पीछे रखना हमारे गले नहीं उतरता। यदि हम खुशी के मानकों पर खरे नहीं उतर पाते हैं, तो नीतियां बनाने वालों को आत्ममंथन करना होगा। जागरूक नागरिक और जिम्मेदार नेतृत्व ही तस्वीर बदल सकते हैं।

देवी दयाल, फरीदाबाद

सरकार को आईना

हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत की स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है, लेकिन हम यूक्रेन, नेपाल और पाकिस्तान जैसे देशों से भी पीछे हैं, जो समझ से बाहर है। भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है और बेरोजगारी, महंगाई जैसी समस्याएं हैं, लेकिन यहां की अर्थव्यवस्था सबसे तेज़ी से बढ़ रही है। खुशी के सूचकांक सरकारों को आईना दिखाते हैं। प्रशासन का कर्तव्य है कि हर नागरिक की मूलभूत आवश्यकता पूरी हो, उन्हें सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और काम के अवसर मिलें। अगर हम खुशी के मानकों में खरे नहीं उतरते, तो नीति निर्माताओं को आत्ममंथन करना होगा।

पूनम कश्यप, नयी दिल्ली

सुधार की गुंजाइश

वैश्विक खुशहाली सूचकांक 2025 में भारत की स्थिति को कम खुशहाल दिखाना विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश है, जहां गरीबी और असमानता अधिक हैं। कई बार सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाता, जिससे बड़ी आबादी खुशहाल नहीं हो पाती। इसके अलावा, सरकारों और सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार भी खुशहाली में बड़ी बाधा है। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि वैश्विक खुशहाली सूचकांक 2025 कुछ हद तक सही है, लेकिन इसमें सुधार की गुंजाइश है।

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

सकारात्मक सोच

सकारात्मक सोच खुशी की कुंजी है, जो जीवन को अर्थपूर्ण और सार्थक बनाती है। खुशी हमारे शरीर के रसायनों पर निर्भर करती है, खासकर गामा मस्तिष्क तरंगों पर, जो उच्च स्तर के विचार और ध्यान से जुड़ी होती हैं। भारत को अतार्किक रूप से खुशी के सूचकांक में गरीब देशों के पीछे दिखाया जाता है। निस्संदेह, हमारे देश में गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्याएं हैं इसके बावजूद भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। यूक्रेन, फिलस्तीन और पाकिस्तान की तुलना में हमारी स्थिति बेहतर है। हमें अपनी नीतियों में सुधार करने की आवश्यकता है, ताकि सकारात्मक सोच को बढ़ावा दिया जा सके।

जयभगवान भारद्वाज, नाहड़, रेवाड़ी

प्राथमिकताएं तय हों

विश्व हैप्पीनेस रिपोर्ट में भारत का स्थान 118वां है, जबकि फिनलैंड और स्वीडन शीर्ष देशों में हैं। इस रैंकिंग में शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक परिवेश, और जीवन प्रत्याशा जैसे छह प्रमुख कारकों को ध्यान में रखा जाता है। आजादी के बाद भी भारत में बुनियादी सुविधाओं की कमी और सामाजिक भेदभाव बने हुए हैं। सरकारी स्कूलों, अस्पतालों और रोजगार की कमी इस रिपोर्ट की सच्चाई को साबित करती है। कोरोना के बावजूद अस्पतालों के सुधार पर ध्यान न देकर धार्मिक आयोजनों पर खर्च होता रहा है। देश में बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश बढ़ाना आवश्यक है।

मुनीश कुमार, रेवाड़ी

पुरस्कृत पत्र

खुशियों की परिभाषा

खुशियों को मापने के कई मानक हो सकते हैं, लेकिन खुश रहने के लिए भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती। सबसे बड़ी प्रसन्नता दूसरों की खुशी बढ़ाने में है। जब हम अपने परिवार, मित्रों या भाग्य को एक अहंकारी मकान मालिक की तरह न देखकर, एक ईमानदार किरायेदार की तरह देखें, तो हम कभी भी खुशी से वंचित नहीं रहते। विषम परिस्थितियों में खुशी तलाशना एक कला है, और भारत के लोग इस कला में दक्ष हैं। गली-मोहल्लों में खेलते बच्चों की खुशी सबका ध्यान आकर्षित करती है। स्कूल के अनुभव भविष्य में आनंददायक स्मृतियों में बदल जाते हैं।

अनूप कुमार गक्खड़, हरिद्वार

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