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सत्ता परिवर्तन की आकांक्षा के निहितार्थ

जन संसद
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जनाकांक्षाओं की कसौटी

जनता सरकार को चुनती है, और जब उसे लगता है कि चुनी हुई सरकार जनाकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरी, तो वह उसे बदल भी देती है। नई सरकार से जनता उम्मीद करती है कि वह उसकी आकांक्षाओं पर खरा उतरेगी। यही सत्ता परिवर्तन के निहितार्थ हैं। लेकिन आमतौर पर यह देखा जाता है कि सरकार बदलने के साथ अक्सर चेहरे बदल जाते हैं, जबकि तंत्र की कार्यशैली में विशेष अंतर नहीं आता। लोकतंत्र में सरकारों का बदलना एक सामान्य प्रक्रिया है। आवश्यकता इस बात की है कि जनता द्वारा चुनी गई सरकार जनाकांक्षाओं पर खरी उतरे।

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सतीश शर्मा, माजरा, कैथल

बदलाव के संकेत

सभी एग्जिट पोल के विपरीत, भाजपा ने हरियाणा में तीसरी बार सरकार बनाकर एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। सत्ता परिवर्तन की आकांक्षाओं के चलते जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार बना सकती है, लेकिन वहां भी जनता ने अकेली कांग्रेस को नकार दिया है। किसी भी गठबंधन की बैठक के पहले ही फारूक अब्दुल्ला ने उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया, जिससे कांग्रेस को उसकी जगह दिखा दी गई। कांग्रेस का रवैया देखिए—उन्हें कश्मीर की ईवीएम और चुनाव आयोग ईमानदार लगते हैं, जबकि अन्य राज्य की ईवीएम और चुनाव आयोग सत्ता के दबाव में।

सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, म.प्र.

सत्ता परिवर्तन से संतुलन

हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां हर चुनाव का परिणाम अप्रत्याशित होता है। आज मतदाता राजनीतिक रूप से जागरूक हो चुका है और उन दलों को समर्थन देने को तत्पर है जो वास्तव में काम करेंगे। हालांकि, वर्तमान में हो रहे सत्ता परिवर्तनों पर सवाल उठता है कि क्या यह उचित है। क्या नए राजनीतिक दल दिल से काम करेंगे, या सिर्फ सत्ता की कुर्सी के लिए आएंगे? सत्ता परिवर्तन का यह रिवाज राजनीतिक दलों को संदेश भी दे सकता है। बिना बदलाव के तानाशाही का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए इस संतुलन को समझना आवश्यक है।

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

विचारधारा बनाम चेहरे

सत्ता परिवर्तन दो प्रकार का होता है—एक विचारधारा के स्तर पर, जहां एक दल को हटा कर दूसरे दल की सरकार बनाई जाती है, और दूसरा कुछ चेहरों को बदलना। दोनों परिवर्तनों की कसौटी होती है सरकार की कार्यशैली, विश्वसनीयता और जनता से जुड़ाव। लेकिन राजनीति अक्सर इस कसौटी पर भारी पड़ जाती है। महाराष्ट्र जैसा दलबदल विचारधारा में परिवर्तन को निरर्थक बना देता है। चुनाव के बाद यदि दलीय सत्ता परिवर्तन होता है, तो पुरानी योजनाओं पर रोक लग जाती है और नई सरकार के मंत्री और प्राथमिकताएं बदल जाती हैं, जिससे मूल मुद्दे पीछे रह जाते हैं।

बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.

बदलाव के निहितार्थ

हरियाणा के मतदाताओं ने अपना फैसला दर्ज करवा दिया है। अब यह सिर्फ सैनी, खट्टर या मोदी के बारे में नहीं रहा, बल्कि यह अहंकारी नेताओं के अहंकार को दंडित करने का समय है। मतदाताओं ने बदलाव का जनादेश दिया है, क्योंकि जनता की मजबूरी होती है कि वह एक सरकार को बदलती है जब वह जनाकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरती। उत्तर भारत में सिमटते जनाधार को लेकर सत्तापक्ष की चिंता बढ़ेगी। मतदाता बदलाव और परिवर्तन की उम्मीद रखती है, और अक्सर 5-10 साल बाद नए विकल्प का चुनाव करती है।

रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत

मतदाता की नई सोच

हाल ही के चुनाव परिणामों ने स्पष्ट किया है कि मतदाताओं ने भ्रामक प्रचार को दरकिनार करते हुए विवेक से सत्ता परिवर्तन किया। तेलंगाना में वंशवाद की राजनीति को नकारते हुए बीआरएस से सत्ता छीनी गई। राजस्थान में बीजेपी की एकजुटता को कांग्रेस के बिखराव पर तरजीह मिली। मध्यप्रदेश में मुफ़्त इलाज और लाडली बहना योजना जैसे ठोस उपायों का समर्थन मिला। लोकसभा चुनावों में मतदाताओं ने यह संदेश दिया कि उन्हें ‘गारंटीड’ नहीं लिया जा सकता, जैसे उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी की सांसदों की संख्या में गिरावट और अयोध्या में हार। वहीं प्रधानमंत्री को अपने चुनाव क्षेत्र से हुआ लाखों वोटों का नुक़सान।

ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल

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