लैंगिक न्याय पर दोहरा चरित्र
लैंगिक न्याय जरूरी पिछले दिनों दिल्ली में एक महिला सांसद के साथ मारपीट की घटना सिर्फ राजनीतिक नफे-नुकसान का मुद्दा ही नहीं बल्कि इसने आज अरविंद केजरीवाल को कटघरे में खड़ा कर दिया है। वैसे तो यह एक राजनीतिक पैंतरेबाजी...
लैंगिक न्याय जरूरी

रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत
राजनीति न हो
महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ के दोषी लगभग सभी राजनीतिक दल हैं! पिछले दिनों कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष पर महिला पहलवानों पर यौन शोषण के आरोप लगे, लेकिन उसका कुछ नहीं बिगड़ा। मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया गया लेकिन शासन मूकदर्शक बना रहा। इसी तरह कर्नाटक में जद(स) लोकसभा प्रत्याशी पर कई महिलाओं के शोषण के कई गंभीर आरोप हैं। राजनीतिक दल स्वयं तो महिलाओं की अस्मिता की सुरक्षा नहीं कर सकते लेकिन दूसरों के मामलों को तूल देने में कोई कसर नहीं छोड़ते। अच्छा हो कि सभी राजनीतिक दल इस मामले में आपसी मतभेद भुलाकर दोषियों को सजा दिलवाने में काम करें।
शामलाल कौशल, रोहतक
दोहरा चरित्र

बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
सत्य का साथ दें
भारत में लैंगिक न्याय पर राजनीति की परीक्षा समय-समय पर होती रहती है। इस प्रकार के मामलों में राजनीतिक लाभ उठाने के लिए प्रयास किए जाते हैं। सांसद स्वाति मालीवाल जैसे प्रकरण राजनीति में पहले भी आते रहे हैं। वास्तविकता यह है कि महिलाओं को अपने अधिकारों की मुखर वकालत करनी चाहिए। जिससे किसी भी दल को राजनीतिक लाभ के लिए अवसर न मिल सके। महिलाओं से मारपीट, छेड़छाड़ और शोषण आदि के मामले चिन्ताजनक प्रवृत्ति काे दर्शाते हैं। जो राजनीति में लैंगिक न्याय पर राजनीतिक नैतिकता की परीक्षा लेती है। ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक विचार पीड़ितों के कल्याण पर भारी पड़ रहे हैं। जबकि राजनीतिक दलों को इस प्रकार के मामलों में सत्य का साथ देना चाहिए।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
न्याय संभव नहीं

राजेश कुमार चौहान, जालंधर
पुरस्कृत पत्र
कथनी-करनी का फर्क

बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.

