तंत्र की मिलीभगत
कोरोना महामारी के चलते गिने-चुने लोगों की धन-संपत्ति में तीव्र गति से वृद्धि होना सरकार द्वारा अपनाई गयी नीतियों का परिणाम है। पूंजीपतियों ने देश के व्यापार, कृषि-उद्योग, बैंकिंग सेवाओं पर अपना आधिपत्य जमाया हुआ है। वहीं अरबपति अपने क्षेत्र में सरकार से भारी सब्सिडी लेकर श्रमिक, मजदूरों, किसानों का आजीवन शोषण कर अपने हाथों की कठपुतली बनाना चाहते हैं। इन सबके मद्देनजर सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों में सुधार करने की आवश्यकता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
तकनीक का असर
ग्लोबल रिच लिस्ट 2020 के मुताबिक देश में धनकुबेरों की संख्या 137 से बढ़कर 177 हो चुकी है। पिछले साल अमीरों की संपत्ति में प्रतिदिन 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी तो गरीब लोगों की 50 प्रतिशत आबादी की संपत्ति में 11 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। ऐसा तकनीक से संचालित उद्योगों के कारण हो रहा है। उच्च तकनीक की मशीनों वाले कारखानों में मानवशक्ति की जरूरत कम से कम होती जा रही है। तकनीक से चलने वाली फैक्टरियों के बढ़ने से अरबपतियों कमाई और ज्यादा बढ़ेगी।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
आर्थिक असमानता
कोरोना के डर ने उद्यमियों को मुनाफा कमाने का अवसर दिया है। कोरोना की भयावहता का फायदा उठाकर मास्क, सैनिटाइज़र, साबुन, पीपीई किट, हैंड रब, इम्युनिटी बूस्टर जैसे उत्पादों को अधिकाधिक दामों में बेचा। वैसे नये अरबपतियों के आने से देश में नए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, अर्थव्यवस्था को भी बल मिलता है। इसके उलट यदि पूंजी अरबपतियों के खजानों में ऐसे ही समाती रही तो समाज में आर्थिक असमानता की खाई बढ़ने के साथ ही सामाजिक असमानता का संकट भी गहरायेगा।
अनिल कुमार पाण्डेय, पंचकूला
कोरोना काल के करतब
देश में अमीर और गरीब के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। कोरोना काल में जहां मजदूरों की घर वापसी से बेरोजगारी बढ़ी, वहीं अरबपतियों की संख्या में भी वृद्धि हुई। इसका कारण यह हो सकता है कि अरबपतियों ने अपने व्यापार को कोरोना काल में जारी रखा या फिर समय रहते अपने कारोबार को कोरोना से बचाने के लिए समझदारी दिखाई होगी। ऐसे में अपने यहां कर्मचारियों की छंटनी की या फिर वेतन आधे किये। वहीं उन पैकेजोंं का भी भरपूर फायदा लिया होगा जो केंद्र और राज्य सरकारों ने कोरोना से उबरने के लिए दिये थे।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
निजीकरण के खतरे
हैरानी की बात है कि कोरोना के नाजुक दौर में भी 137 उद्यमी अरबपति बन गए। इनका इस तरह आगे बढ़ने का अर्थ किसी के पिछड़ने से भी है। इनका इस कदर आगे बढ़ना तभी सार्थक होगा जब अन्य लोग भी इनसे लाभान्वित हों। यह साफ़ है कि सरकार अपने वास्तविक दायित्व से पल्ला झाड़कर तेजी से निजीकरण की ओर बढ़ रही है जो शुभ संकेत नहीं है। इससे शोषण, असंतोष और बेकारी बढ़ने से अराजकता बढ़ने की भी पूरी आशंका है। इन सभी पर पारदर्शी व ठोस नियंत्रण बहुत जरूरी है। तभी यह कदम कुछ कारगर हो सकता है।
वेद मामूरपुर, नरेला
कुछ गड़बड़ है
कोराेना काल में देश लॉकडाउन में बंद कर दिया गया। वहीं आमजन की समस्याओं और अर्थव्यवस्था की बिगड़ती स्थिति का दोष भी कोरोना के सिर मढ़ दिया गया। इसने लोगों के व्यापार और बाजार चौपट कर दिये, बेरोजगारी में वृद्धि हुई तो दूसरी तरफ रसूखदार लोग कोरोना की आड़ में भी अरबपति बन गये। यह सब सरकारी तंत्र की विफलता ही है। कोरोना काल के बहाने बड़े घरानों को आर्थिक सुविधाएं दी गईं। ऐसे कुछ घरानों को छूट के साथ मनमानी की भी खुली छूट दी गई। वैसे यह जांच का विषय है कि जब देश भूख और बेरोजगारी से जूझ रहा था तो ये उद्यमी अरबपति कैसे बन गए।
जगदीश श्योराण, हिसार
पुरस्कृत पत्र
शुभ संकेत नहीं
भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश मंे अरबपतियों का इजाफा होना सामाजिक ढांचे के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह सरकार की पूंजीवादी नीतियों का परिणाम है कि अमीर अधिक अमीर होते जा रहे हैं और गरीब अत्याधिक गरीब। बेरोजगारी के मद्देनजर अमीर-गरीब के मध्य यह खाई एक नयी सामाजिक समस्या पैदा कर रही है। सरकारें पूंजीवाद को बढ़ावा दे रही हैं। तीन नये कृषि कानून भी उसी नीति का हिस्सा हैं। गत एक वर्ष के दौरान विभिन्न सरकारी संस्थान निजी हाथों को सौंपे जा चुके हैं। इससे न सिर्फ रोजगार के अवसर घट रहे हैं बल्कि गरीब का शोषण भी बढ़ा है। सरकारी नीतियां गरीबी और घनी आबादी को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम