कर्ण की नगरी में लड़ी जा रही सबसे बड़ी लड़ाई
दिनेश भारद्वाज/ ट्रिन्यू
करनाल, 14 मई
हरियाणा की सबसे हॉट संसदीय सीट करनाल में इस बार चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो गया है। कर्ण की नगरी करनाल और तीन लड़ाइयों का गवाह रहे पानीपत जिले से मिलकर बनी इस लोकसभा सीट पर इस बार सबसे बड़ी चुनावी जंग है। लगातार सवा नौ वर्षों से अधिक समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल भाजपा के टिकट पर चुनावी रण में डटे हैं। सबसे हेवीवेट मनोहर लाल अकेले करनाल नहीं, बल्कि प्रदेश की सभी दस लोकसभा सीटों पर प्रचार करने में जुटे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी के ‘विश्वासपात्र’ मनोहर लाल 2019 में भी ‘दस का दम’ दिखा चुके हैं। एक बार फिर इसी टास्क के साथ वे मैदान में हैं।
करनाल में मनोहर लाल के प्रचार में जुटे भाजपाइयों के सामने चुनौती भी है और चिंता भी। चुनौती है 2019 के चुनाव में यहां से भाजपा प्रत्याशी संजय भाटिया को मिली ऐतिहासिक जीत के मार्जिन को बनाए रखना। उस चुनाव में संजय भाटिया ने कांग्रेस के कुलदीप शर्मा को 6 लाख 52 हजार से अधिक मतों से हराया था। जीत का यह अंतर देशभर में दूसरा सर्वाधिक था।
ऐसे में भाजपाइयों में इस बात की चिंता है कि यह अंतर कम हुआ तो उनके रिपोर्ट कार्ड खराब हो सकते हैं। करनाल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विधानसभा हलकों– नीलोखेड़ी, असंध, घरौंडा, करनाल, इंद्री, पानीपत सिटी, पानीपत ग्रामीण, इसराना व समालखा के लोगों, खासकर ग्रामीणों के बीच मनोहर लाल की ‘इमेज’ भी चर्चाओं में बनी हुई है। उनकी नीतियों को लेकर वर्ग विशेष में नाराजगी हो सकती है, लेकिन उन पर किसी तरह का दाग नहीं है। सरकारी नौकरियों में उनके द्वारा लागू किया गया फार्मूला लोगों को रास आया। इस संसदीय क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में युवाओं को मेरिट के आधार पर नौकरी मिली है।
ऐसे में अगर यह कहा जाये कि नौकरियों में पारदर्शिता बड़ा चुनावी मुद्दा बना हुआ है, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। करनाल संसदीय क्षेत्र में कुछ वर्ग विशेष ऐसा भी है, जिसमें एंटी-इन्कमबेंसी साफ नजर आ रही है। यह नाराजगी किसान आंदोलन की वजह से अधिक है। इन वर्गों में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इस बात की भी चर्चा करते हैं कि चौदह फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है। कुछ किसान ऐसे हैं, जो फसलों का भुगतान सीधे बैंक खातों में किए जाने के पक्ष में हैं। वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो इस व्यवस्था के खिलाफ हैं।
घरौंडा हलके के खोराखेड़ी गांव के रणबीर सिंह, रामफल शर्मा, राजेंद्र शर्मा व जयवीर सिंह का कहना है कि भाजपा सरकार में किसान सबसे अधिक परेशान हुए हैं। उनका कहना है कि पहले मंडियों में फसल जाते ही बिक जाती थी। अब काफी टाइम लगता है। उनका कहना है कि आढ़ती किसानों का गहना हुआ करते थे। हारी-बीमारी में किसान आढ़ती पर ही निर्भर रहते हैं। आधी रात में भी आढ़तियों से आर्थिक मदद मिल जाती थी, लेकिन अब सीधे बैंक खातों में पैसा आने से आढ़तियों और किसानों के रिश्तों पर अंतर पड़ा है।
असंध हलके के लगभग नौ हजार मतों वाले मूनक गांव में भाजपा के पक्ष में बात करने वाले भी हैं और कुछ का विरोध भी देखने को मिला। ग्रामीणों का कहना है कि अब पढ़-लिखे युवाओं को उनकी काबलियत के आधार पर बिना सिफारिश के नौकरी मिल रही है। जसबीर सिंह व राममेहर ने कहा कि मोदी सरकार ने कई ऐतिहासिक काम किए हैं। धर्मबीर शर्मा व महताब सिंह कहते हैं, बदलाव हमेशा ही अच्छा रहता है। 82 वर्ष के ज्ञानचंद ने कहा, जब वोटर मतदान केंद्र में जाएगा तो उसके बाद उसका मन कई बार बदल भी जाता है। वोटर के मन की टोह लेना आसान नहीं है।
असंध हलके के ही कुताना गांव के महेंद्र ने कहा, दिहाड़ी-मजदूरी से ही गुजारा होता है। महंगाई और बेरोजगारी बड़ी समस्या है। लगभग 1200 मतदाताओं वाले इस गांव के राजेंद्र का कहना है कि सरकार को गरीबों की ओर ध्यान देना चाहिए। उनका कहना है कि गांव में सरकारी नौकरी बहुत कम लगी हैं। गांव में कुछ लोग ऐसे मिले जो मोदी के नाम पर वोट डालने की बात कहते नजर आए। राकेश ने कहा, मोदी सरकार ने उलझे हुए विवादों को एक झटके में सुलझा दिया। नीलोखेड़ी हलके के पधाना गांव में पिछले करीब दस वर्षों में 40 के लगभग युवाओं को सरकारी नौकरी मिली है। गरीब परिवारों के इन बच्चों को नौकरियां मिलना गांव में चर्चा का विषय बना रहा। ग्रामीण इस बात को मानते हैं कि पिछली सरकारों के मुकाबले भाजपा सरकार के कार्यकाल में अधिक रोजगार मिला है। इतना ही नहीं, नौकरियों के लिए किसी के पास सिफारिश करने की जरूरत नहीं पड़ी। गांव के युवाओं को मेरिट के आधार पर नौकरी मिली है।
चुनाव लड़ने वाले मनोहर तीसरे पूर्व सीएम : करनाल अपनी तरह की पहली ऐसी सीट है, जहां मनोहर लाल चुनाव लड़ने वाले तीसरे पूर्व मुख्यमंत्री हैं। 1977 में पंडित भगवत दयाल शर्मा ने करनाल से जीत हासिल की थी। भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री थे। उनके बाद 1998 में पूर्व सीएम चौ. भजनलाल ने करनाल लोकसभा सीट से जीत हासिल की। हालांकि 1999 में वे भाजपा के आईडी स्वामी के सामने चुनाव हार गए।
पधाना में फिफ्टी-फिफ्टी : नीलोखेड़ी हलके के राजपूत बाहुल्य पधाना गांव में इस बार हालात उलझे हुए हैं। राजपूत समाज को भाजपा का कट्टर वोट बैंक माना जाता रहा है। पिछले दिनों राजपूत समाज की पंचायतों में लिए गए फैसले का थोड़ा-बहुत असर इस गांव में भी देखने को मिल रहा है। नरेश कुमार, नैन सिंह, प्रवीण कुमार, ओमप्रकाश, देवेंद्र राणा व देवेंद्र चौहान ने कहा, इस बार का चुनाव गुम है। राजपूत समाज की पंचायत के फैसले पर भी समाज के लोगों में एक राय नहीं है। कुछ इस फैसले के समर्थन में हैं तो कुछ खुलकर आज भी भाजपा के साथ खड़े हैं। पधाना जीटी रोड बेल्ट पर सब्जी उत्पादन में सबसे बड़ा गांव है। यहां के लोगों का मुख्य काम भी कृषि ही है।
राजपूत समाज इसलिए भी नाराज : इस क्षेत्र के राजपूत समाज में कांग्रेस के प्रति भी नाराजगी है। इस बात को लेकर आक्रोष है कि उनके समाज से लोकसभा टिकट नहीं दिया गया। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव वीरेंद्र राठौर करनाल से टिकट की मांग कर रहे थे। ओमप्रकाश राणा, नरेश कुमार, तेजपाल राणा, कंवर पाल राणा, सुभाष राणा, सांभली के विक्रम राणा, बरास के हरपाल राणा का कहना है कि कांग्रेस ने वीरेंद्र राठौर का टिकट काटकर समाज के साथ अन्याय किया है। उनका कहना है कि वीरेंद्र राठौर यहां सबसे मजबूत उम्मीदवार थे।
जीटी रोड पर भाजपा का दबदबा : जीटी रोड बेल्ट को भाजपा के प्रभाव वाला इलाका माना जाता है। 2014 और 2019 में लगातार दो बार भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने में इस बेल्ट का सबसे अधिक योगदान रहा। करनाल संसदीय क्षेत्र के नौ विधानसभा हलकों में से भी 2019 में भाजपा ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। करनाल से सीएम रहते हुए खुद मनोहर लाल, घरौंडा से हरविंद्र कल्याण, इंद्री से रामकुमार कश्यप, पानीपत सिटी से प्रमोद कुमार विज और पानीपत ग्रामीण से महिपाल ढांडा ने जीत हासिल की थी। वहीं असंध से कांग्रेस के शमशेर सिंह गोगी, समालखा में धर्म सिंह छोक्कर व इसराना में बलबीर सिंह वाल्मीकि विधायक हैं। नीलोखेड़ी हलके से धर्मपाल सिंह गोंदर आजाद विधायक हैं। गोंदर अब सरकार से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस के समर्थन का ऐलान कर चुके हैं।
यह रहा पिछले चुनावों का रिकाॅर्ड : 2009 : कांग्रेस के टिकट पर डॉ. अरविंद शर्मा ने 3 लाख 4 हजार 698 वोट लेकर जीत हासिल की। उन्होंने बसपा के वीरेंद्र मराठा को 76 हजार 346 मतों से शिकस्त दी। वीरेंद्र मराठा को 2 लाख 28 हजार 352 मत मिले थे। भाजपा के आईडी स्वामी 1 लाख 85 हजार 437 मतों के साथ तीसरे नंबर पर रहे।
2014 : भाजपा के अश्विनी कुमार चोपड़ा ने 5 लाख 94 हजार 817 वोट हासिल करके कांग्रेस के डॉ. अरविंद शर्मा को 3 लाख 60 हजार 147 मतों से शिकस्त दी। अरविंद शर्मा को महज 2 लाख 34 हजार 670 वोट मिले। वहीं इनेलो के जसविंद्र सिंह संधू 1 लाख 87 हजार 902 वोट ले पाये।
2019 : भाजपा के संजय भाटिया ने जीत का नया रिकार्ड बनाया। कांग्रेस के कुलदीप शर्मा को उन्होंने 6 लाख 52 हजार 142 मतों के अंतर से हराया। कुलदीप शर्मा को 2 लाख 55 हजार 452 ही वोट मिले। डॉ. अरविंद शर्मा कांग्रेस छोड़कर रोहतक से भाजपा टिकट पर चुनाव लड़े।
जानिए कौन-कौन रहा सांसद
वर्ष सांसद
1952 वीरेंद्र कुमार सत्यवादी
1957 सुभद्रा जोशी
1962 स ्वामी रामेश्वरानंद
1967 माधो राम शर्मा
1971 माधो राम शर्मा
1977 भगवत दयाल शर्मा
1978 मोहिंद्र सिंह लाठर
1980 चिरंजी लाल शर्मा
1984 चिरंजी लाल शर्मा
1989 चिरंजी लाल शर्मा
1991 चिरंजी लाल शर्मा
1996 आईडी स्वामी
1998 चौ. भजनलाल
1999 आईडी स्वामी
2004 डॉ. अरविंद शर्मा
2009 डॉ. अरविंद शर्मा
2014 अश्विनी चोपड़ा
2019 संजय भाटिया
हेवीवेट होने का फायदा मनोहर लाल सवा नौ वर्षों से अधिक समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। ऐसे में उन्हें हेवीवेट माना जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके पुराने दोस्ताना रिश्ते भी हैं। चर्चा है कि मोदी ने उन्हें केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी देने का फैसला लिया हुआ है। मुख्यमंत्री रहते हुए मनोहर लाल ने कई ऐसे फैसले लिए, जिनका दूसरे राज्यों ने भी अनुसरण किया। केंद्र सरकार ने भी हरियाणा की कई नीतियों को अपनाया। उनकी नीतियों की बदौलत ही उन्हें केंद्र में शिफ्ट करने की योजना बनी है।
कांग्रेस में भितरघात का भी डर कांग्रेस ने कद्दावर नेता कुलदीप शर्मा, वीरेंद्र राठौर और वीरेंद्र पाल शाह ‘बुल्ले शाह’ का टिकट काटकर युवा चेहरे दिव्यांशु बुद्धिराजा को उम्मीदवार बनाया है। बुद्धिराजा यूथ कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष हैं और उन्हें राज्यसभा सांसद व रोहतक से प्रत्याशी दीपेंद्र हुड्डा का सबसे करीबी माना जाता है। इस सीट पर भितरघात के खतरे को नकारा नहीं जा सकता। टिकट कटने के बाद वीरेंद्र राठौर उनके लिए अपने वर्करों की बैठक कर चुके हैं, लेकिन कुलदीप शर्मा अंदरखाने अभी भी नाराज बताए जाते हैं। कुलदीप शर्मा करनाल से लगातार चार बार सांसद रहे पंडित चिरंजी लाल शर्मा के बेटे हैं।
मराठा वीरेंद्र भी दिखा रहे दम एनसीपी नेता मराठा वीरेंद्र वर्मा भी चुनावी मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें रोड़ समाज से सबसे अधिक उम्मीद है। एचसीएस अधिकारी रहे मराठा वीरेंद्र लंबे समय से इस बेल्ट में राजनीतिक तौर पर एक्टिव हैं। इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला ने उन्हें समर्थन दिया है।