‘आत्मा पर विश्वास करना कर्मों पर विश्वास करने के समान’
पानीपत, 3 जुलाई (वाप्र)
आत्मा अमर है, लेकिन उसके कर्म नश्वर नहीं, वे उसके साथ चलते हैं, और समय आने पर कई गुना होकर लौटते हैं। यह विचार अरुण मुनि महाराज ने गांधी मंडी जैन स्थानक में आयोजित धर्मसभा में प्रवचन के दौरान श्रद्धालुओं के समक्ष रखे। प्रवचन आत्मा, कर्म, और प्रकृति के अटल न्याय के गहरे संबंध पर केंद्रित रहा। मुनि ने जीवन का एक अत्यंत सहज और प्रेरक उदाहरण देते हुए कहा जिस प्रकार कोई व्यक्ति पहाड़ पर खड़े होकर जोर से आवाज लगाता है, तो उसकी वही आवाज प्रतिध्वनि बनकर वापस आती है – ठीक उसी प्रकार, हमारे किए गए कर्म भी प्रकृति में गूंजते हैं और समय आने पर कई गुना बनकर लौटते हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति न्याय करती है वह पक्षपात नहीं करती है, न देर। वह हर व्यक्ति को उसके किए कर्मों का फल देती है, चाहे वह मीठा हो या कड़वा। अरुण मुनि महाराज ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जैन दर्शन में कर्म सिद्धांत अत्यंत वैज्ञानिक, न्यायपूर्ण और अनुभवसिद्ध है। हर आत्मा अपने कर्मों की स्वयं उत्तरदायी है। कोई मसीहा, कोई देवता, कोई पूजा या कोई रिश्वत इस प्राकृतिक न्याय को टाल नहीं सकती। अरुण मुनि ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं है।