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अम्बाला वासियों ने भुला दिया अपने लाल को

जितेंद्र अग्रवाल/हप्र अम्बाला शहर, 26 मार्च गदर पार्टी के संस्थापक सदस्य और कोषाध्यक्ष कांशीराम को 27 मार्च 1915 में लाहौर जेल में फांसी दी गई थी। परंतु विडम्बना यह है कि अम्बाला वासी ही अपनी धरती के लाल को भूल...
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कांशीराम
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जितेंद्र अग्रवाल/हप्र

अम्बाला शहर, 26 मार्च

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गदर पार्टी के संस्थापक सदस्य और कोषाध्यक्ष कांशीराम को 27 मार्च 1915 में लाहौर जेल में फांसी दी गई थी। परंतु विडम्बना यह है कि अम्बाला वासी ही अपनी धरती के लाल को भूल चुके हैं। इतिहास शोधार्थी अभिनव गुप्त ने बताया कि शहीद कांशीराम का अम्बाला से गहरा नाता रहा है। इनका जन्म 1883 में संयुक्त पंजाब के अम्बाला जिला के मरौली गांव में हुआ था। हरियाणा बनने के बाद यह गांव पंजाब के अंतर्गत चला गया। कांशीराम ने शिक्षा ग्रहण करने के बाद अम्बाला के डाक तार विभाग में भी कुछ समय नौकरी की। इसके बाद कांशीराम अमेरिका चले गए और वहां कड़ी मेहनत से इन्होंने धन कमाया। ये स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़े रहे। यही कारण था लाला हरदयाल, सोहन सिंह भखना इत्यादि के साथ मिलकर 1913 में गदर पार्टी की स्थापना हुई। कांशीराम गदर पार्टी के कोषाध्यक्ष बनाए गए। इन्होंने अपना सारा कमाया धन पार्टी को समर्पित कर दिया। इनका अमेरिका वाला घर पार्टी गतिविधियों का गढ़ था। ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिलाने के लिए सभी योजनाएं यहीं बनाईं जातीं। इस बीच विश्व युद्ध की आहट मिलते ही एक विस्तृत योजना के तहत कांशीराम भारत लौट आए। भारत आते ही करतार सिंह सराभा के साथ कांशीराम भारतीय छावनियों में विद्रोह करवाने की अपनी योजना के क्रियान्वयन की योजना में लग गए। इस बीच मोगा कोषागार को लूटने का भी प्रयास हुआ। लाहौर षडयंत्र केस में करतार सिंह सराभा, विष्णु गणेश पिंगले, कांशीराम सहित कई क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया। 27 मार्च 1915 को अम्बाला के इस लाल ने लाहौर जेल में हंसते-हसंते फांसी का फंदा चूम लिया। शोधार्थी अभिनव गुप्त ने बताया कि अम्बाला में कांशीराम की शहादत को लगभग भुला दिया गया है। जहां उनके पुश्तैनी गांव में उनका स्मारक और खरड़ में शहीद कांशीराम मेमोरियल कॉलेज भी मौजूद है। अम्बाला में इस शहीद के नाम पर कोई सड़क, पार्क या मूर्ति नहीं है। वर्ष 2015 में इस शहीद के परिवार को पहली बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा अम्बाला में सम्मानित किया गया था।

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