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प्रकृति के विपरीत काम करेंगे तो खमियाजा भी भुगतना पड़ेगा : डॉ. रितेश आर्य

अब क्यों नहीं बनते टिकाऊ मकान और सड़कें
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यशपाल कपूर

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सोलन, 2 अगस्त

विकास की अंधी दौड़ में हम प्रकृति को ताक पर रखकर पहाड़ी राज्य हिमाचल में निर्माण करने में जुटे हैं। हमें बस जमीन चाहिए, फिर नहीं देखते कि यह धंसने वाली है,पक्की या कच्ची, मंजिलों पर मंजिलें चढ़ा देते हैं। ऐसे ही सड़कों का निर्माण किया जा रहा है। नतीजतन कोई भी सड़क अब एक-दो साल से अधिक नहीं टिक पाती। प्रकृति के साथ मिलकर नहीं चलेंगे तो फिर नुकसान तो उठाना ही पड़ेगा। हिमाचल में आई जल प्रलय, भू-स्खलन इसका जीवंत प्रमाण हैं। इस फोरलेन के लिए दोबारा डीपीआर बनाने की बात पहली अगस्त को हिमाचल के मुख्यमंत्री ने अपने सोलन प्रवास के दौरान कही।

इस विषय पर ‘दैनिक ट्रिब्यून’ ने हिमालय पर दशकों से काम कर रहे जाने-माने भू-गर्भ वैज्ञानिक डॉ. रितेश आर्य से बातचीत की। डॉ. आर्य ने कहा कि हिमाचल प्रदेश को अन्य अधिकारियों की तर्ज पर भू-वैज्ञानिकों की भी सख्त जरूरत है। यदि पहाड़ों को बचाना है तो पहाड़ों में रहने वाले लोगों को ही भू-वैज्ञानिक बनाना होगा। यहां के लोग बखूबी जानते हैं कि पहाड़ों में कैसे रहा जाता है। प्रकृति के विपरीत कार्य करेंगे तो खमियाजा भी भुगतना होगा। यदि ऐसा हमारा सिस्टम पहले होता तो 300 या 500 साल पुराने भवनों को हम कैसे देख सकते थे। उन्होंने साफ कहा कि सही जगह का चयन न कर मकान व सड़कें बनाओगे या नदी नालों में डंपिंग साइट, मलबे के ढेर पर घर बनेंगे तो जानमाल का नुकसान तो होगा ही। पानी तो अपना रास्ता लेगा ही। अब तो एक सड़क यदि एक साल भी काट जाए तो गनीमत है। प्रकृति तो अपना करेगी ही।

अब क्या कमी रह जाती है...

डॉ. आर्य ने कहा कि देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। भारत को आजादी मिले 75 साल हो गए हैं। हम सस्टेनेबल डवेल्पमेंट की बात करते हैं। डॉ. आर्य ने कहा कि पूरे हिमाचल प्रदेश में जिलावार हुए नुकसान का एक सर्वे किया जाए। उस सर्वे के लिए जो मकान या अन्य इंफ्रास्टक्चर इस बरसात में बहा या नुकसान हुआ है, उसे तीन भागों में विभाजित कर लें। 25 साल के भीतर बना मकान, 50 साल के भीतर बना मकान और 75 साल या उससे अधिक मकान मकान या पुल। आप देखेंगे कि इनमें 25 साल के भीतर बने मकान, पुल सर्वाधिक होंगे। इससे स्वत: ही अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारा विकास किस दिशा में हो रहा है। अब दूसरी ओर कालका-शिमला रेलवे लाइन, उस पर बने पुल, वहां पानी को चैनेलाइज करने का तरीका हमें सीखने की जरूरत है।

फिक्स हो जिम्मेदारी

साथ ही सड़क, भवन, पुल निर्माण में जिम्मेदारी फिक्स होनी चाहिए। हमें अपने बुजुर्गों की तरह प्रकृति के साथ मिलकर विकास के रथ को आगे बढ़ाना चाहिए, तभी हिमाचल को आपदा शब्द से दूर रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सैंकड़ों साल पुराने मकान आज भी खड़े हैं और गलत जगह बने मकान ताश के पत्तों की तरह ढह गए हैं।

बरसात ने खोली फोरलेन निर्माण की कलई

इस साल बरसात ने कालका-शिमला फोरलेन के निर्माण कार्य की कलई खोल कर रख दी। परवाणू से सोलन तक का रोड जगह-जगह भू-स्खलन के चलते क्षतिग्रस्त हो गया। डा. आर्य ने कहा कि कालका-शिमला फोरलेन के चलते सोलन जिला में धर्मपुर-कसौली मार्ग खत्म हो रहा है। पाइनग्रोव स्कूल का खेल मैदान कभी भी फोरलेन में आ सकता है। परवाणू में कौशल्या नदी अपना कहर बरपा रही है। यहां लोगों ने मलबे पर बहुमंजिला इमारतें बना दी हैं। आज बनने वाली सड़क व पुल का भरोसा नहीं किया जा सकता, कब गिर जाए। हमें निर्माण कार्य से जुड़े लोगों की जिम्मेवारी तय करनी चाहिए। साथ ही पहले ही ऐसे स्थानों का चयन करना चाहिए, जहां मकान बन सकें। गांव में पुराने मकान देखें, वे पक्की जगह पर बनते थे, उनके लिए जिस भूमि का चयन किया जाता था, उसे कुछ लोग स्थानीय भाषा में तली कहते हैं। हमारे बुजुर्गों के पास भले ही डिग्री न थी, लेकिन वे आज के लोगों से ज्यादा दूरदर्शी थे। उनके मकान आज भी मजबूती से खड़े हैं। कुछ स्थानों पर कृषि भूमि पर कमर्शियल कॉम्पलैक्स, औद्योगिक यूनिट बनाई जा रही हैं। हमें प्रकृति के साथ मिलकर अपना विकास करना चाहिए, नहीं तो नतीजा भुगतने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

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