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रेरा का अध्यक्ष नियुक्त न करने पर हिमाचल हाईकोर्ट सख्त

पूछा- अभी तक क्यों नहीं की गई अध्यक्ष की नियुक्ति
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शिमला, 9 मई (हप्र)

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को दिए सेवा विस्तार के खिलाफ दायर जनहित याचिका की प्रारंभिक सुनवाई के पश्चात राज्य सरकार से पूछा है कि हिमाचल प्रदेश रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (एच.पी. रेरा) के अध्यक्ष और सदस्यों के पद के संबंध में नियुक्ति अधिसूचित की गई है या नहीं। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए, यदि नियुक्ति अधिसूचित नहीं की गई है, तो राज्य सरकार हलफनामा दायर कर कोर्ट को बताए कि ऐसा क्यों नहीं किया गया है।

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कोर्ट ने यह भी स्पष्ट करने को कहा है कि राज्य सरकार द्वारा रेरा के अध्यक्ष को लेकर की गई चयन समिति की सिफारिशों को रोकने का विशिष्ट कारण क्या है। कोर्ट ने इस जनहित याचिका में दिए तथ्यों का अवलोकन करने पर पाया कि

प्रबोध सक्सेना ने हिमाचल प्रदेश रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (एच.पी. रेरा) के अध्यक्ष पद के लिए आवेदन किया था। याचिकाकर्ता अतुल शर्मा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मांग की है कि मुख्य सचिव के रूप में प्रबोध सक्सेना को छह महीने का सेवा विस्तार प्रदान करने वाले 28 मार्च 2025 के सेवाविस्तार आदेश को रद्द करने के आदेश जारी किए जाएं।

प्रार्थी द्वारा कोर्ट के समक्ष रखे तथ्यों के अनुसार 21 अक्तूबर 2019 को विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम राउज एवेन्यू कोर्ट, नई दिल्ली ने प्रबोध सक्सेना के खिलाफ दायर सीबीआई आरोपपत्र का संज्ञान लिया गया है। प्रार्थी का कहना है कि 23 जनवरी 2025 को सीबीआई ने पत्र जारी कर इस बात की पुष्टि की है कि प्रबोध सक्सेना के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया है और आपराधिक मुकदमा लंबित है। दागी होने के बावजूद 28 मार्च 2025 को भारत सरकार, कार्मिक मंत्रालय ने प्रबोध सक्सेना को 30 सितंबर 2025 तक मुख्य सचिव के रूप में छह महीने का विस्तार दे दिया।

प्रार्थी का आरोप है कि आपराधिक मुकदमा लंबित होने के बावजूद, प्रबोध सक्सेना का नाम संदिग्ध सत्यनिष्ठा की सूची में शामिल नहीं किया गया, जो कि संविधान के अनुच्छेद 123 का उल्लंघन है। आरोप है कि प्रबोध सक्सेना को सेवा विस्तार को मंजूरी देते समय केंद्र सरकार के समक्ष पूरी सतर्कता रिपोर्ट नहीं रखी गई थी। प्रार्थी का कहना है कि प्रशासनिक सुधारों पर संसदीय समिति ने भ्रष्टाचार की जांच का सामना कर रहे नौकरशाहों को बचाने के लिए सेवा विस्तार के दुरुपयोग के बारे में चिंता जताई है। यह आरोप लगाया गया है कि मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (वित्त) के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, प्रबोध सक्सेना ने अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग किया। सरकार सेवा विस्तार देने से पहले सीवीसी, राज्य सतर्कता और डीओपीटी के साथ अनिवार्य परामर्श लेने में विफल रही, जिससे डीओपीटी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ। मामले पर अगली सुनवाई 15 मई को निर्धारित की गई है।

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