Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

फिलहाल ओबरॉय ग्रुप ही चलाएगा प्रतिष्ठित वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल

हिमाचल पर्यटन विकास निगम ढूंढ रहा ग्लोबल बोलीदाता
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement
ज्ञान ठाकुर/हप्रशिमला, 19 अप्रैल

हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने भले ही प्रतिष्ठित वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल की लड़ाई जीत ली है और अब यह होटल प्रदेश सरकार का हो गया है, लेकिन सरकार के पास इसे चलाने के लिए फिलहाल कोई विशेषज्ञता नहीं है। ऐसे में प्रदेश में राज्य सरकार की ओर से आतिथ्य सत्कार का काम देख रहा हिमाचल पर्यटन विकास निगम इस फाइव स्टार होटल को चलाने के लिए ग्लोबल बोलीदाता ढूंढ़ रहा है जो फिलहाल उसे नहीं मिला है।

Advertisement

फलस्वरूप यह प्रतिष्ठित होटल फिलहाल ओबरॉय ग्रुप के ही कब्जे में रहेगा और अगले कम से कम 6 महीने इस होटल का संचालन ओबेरॉय ग्रुप ही करेगा। इस दौरान हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम इस होटल को चलाने के लिए ग्लोबल बोलीदाता ढूंढ़ेगा और यदि इसमें सफलता मिलती है तो फिर इस होटल को उसे बोलीदाता के हवाले कर दिया जाएगा। तब तक ओबराय ग्रुप हिमाचल प्रदेश सरकार के खजाने में हर महीने दो करोड़ रुपए की राशि देगा। ग्लोबल टेंडर के लिए एक संस्था का सहारा लिया जा रहा है।

हिमाचल प्रदेश सरकार ने लंबी लड़ाई के बाद वाइल्ड फ्लॉवर हॉल होटल को अपने अधीन लिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसी साल 31 मार्च और 1 अप्रैल को सरकार ने इसे अपने अंडर ले लिया था। इसके बाद ओबराॅय ग्रुप के अधिकारी सरकार के पास पहुंचे। 2 अप्रैल से ओबराॅय ग्रुप से सरकार ने एक एमओयू साइन किया, जिसमें ओबराॅय ग्रुप ने हर माह सरकार को दो करोड़ रुपए देने का करार किया। होटल वाइल्ड फ्लाॅवर हॉल में 85 कमरे हैं, जिनमें न्यूनतम किराया 30,400 रुपए और अधिकतम 2.60 लाख रुपए है। जो धनराशि सरकार को दी जानी है वह कमरों की औसत बुकिंग के आधार पर निकाली गई है।

गौरतलब है कि हिमाचल सरकार और ईस्ट इंडिया होटल्स कंपनी में संपत्ति को लेकर विवाद है। वर्ष 1993 में होटल में आग लगी थी। इसे फिर से फाइव स्टार होटल के रूप में विकसित करने के लिए सरकार ने ईस्ट इंडिया होटल्स के साथ करार किया था। कंपनी को चार साल में होटल बनाना था। ऐसा न करने पर कंपनी को दो करोड़ रुपये जुर्माना प्रति वर्ष सरकार को अदा करना था। सरकार ने 1996 में कंपनी के नाम जमीन ट्रांसफर कर दी। छह वर्ष में कंपनी होटल का काम पूरा नहीं कर पाई। सरकार ने वर्ष 2002 में करार रद कर दिया। जिसके बाद कोर्ट में यह मामला चला।

Advertisement
×