कुमार मुकेश/हप्र
हिसार, 26 मार्च
हिसार के रोहनात गांव में 15 अगस्त, 1947 से 22 मार्च, 2018 तक करीब 70 साल के दौरान भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा क्यों नहीं फहराया गया, अब इसके पीछे की 164 साल पुरानी कहानी प्रदेश का हर स्कूली बच्चा जानेगा। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने स्वतंत्रता सैनानियों के रोहनात गांव की कहानी को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की घोषणा की है।
शनिवार शाम ‘दास्तान-ए-रोहनात’ नाटक देखने के बाद मुख्यमंत्री ने यह ऐलान भी किया कि रोहनात या इसके आसपास के गांव में रोहनात एकेडमी बनाई जाएगी, जहां विशेषकर सेना के लिए युवाओं को तैयार किया जाएगा। मार्शल आर्ट जैसी गतिविधियां सिखाई जाएंगी। रोहनात फ्रीडम ट्रस्ट को एक करोड़ रुपये देने की घोषणा कहते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह राशि गांव के बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर खर्च की जाएगी।
हिसार के चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के इंदिरा गांधी ऑडिटोरियम में देश प्रेम से भरा यह नाटक देखते हुए मुख्यमंत्री भावुक हो गए। वह स्वयं भी इसका हिस्सा बने और उन्होंने मंच पर तिरंगा फहराकर नाटक का समापन किया। मुख्यमंत्री को तिरंगा फहराते देख सभी को वह दिन याद आ गया, जब उन्होंने 2018 में पहली बार गांव रोहनात में तिरंगा फहराया था। इससे पहले गांव में तिरंगा नहीं फहराया जाता था। इसी पृष्ठभूमि पर आधारित इस नाटक का निर्देशन हिसार के नाट्यकर्मी मनीष जोशी ने किया, जबकि यशराज शर्मा ने इसको लिखा है। मुख्यमंत्री के साथ कृषि मंत्री जेपी दलाल, शहरी एवं स्थानीय विकास मंत्री डॉ. कमल गुप्ता, डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा, मेयर गौतम सरदाना भी मौजूद थे।
1857 के क्रांतिवीरों के गांव को अंग्रेजों ने किया था नीलाम
नाटक देखने से पहले मुख्यमंत्री ने कहा कि 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हो गया था, लेकिन रोहनात गांव के लोग अपने आप को आजाद नहीं मानते थे। उनकी अपने मन की पीड़ा थी, जब मुझे पता चला तो मैं 23 मार्च, 2018 को गांव गया और पहली बार तिरंगा फहराया।
यह थी पीड़ा : 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने रोहनात गांव को नीलाम कर दिया था। रोहनात के ग्रामीणों की पीड़ा थी कि देश आजाद होने के बाद भी उनके गांव की नीलामी को रद्द नहीं किया गया। उनका कहना था कि चाहे भारत आजाद हो गया है, लेकिन उनका रोहनात गुलाम है। गुलामी की प्रतीक नीलामी के निशान को धोया नहीं गया है। कुछ ग्रामीणों ने धीरे-धीरे करके अपनी जमीन वापस खरीदी, जबकि उनकी मांग थी कि सरकार उस नीलामी को रद्द करके उनकी जमीन दिलाए।
अब हर जिले में होगा मंचन….
नीर सूख गया कुए का, भर ग्या लाशां का ढेर, अनहोनी घट गी उस दिन, थी भगवान के घर भी अंधेर।
ऐसा नरसंहार देखकर कांप उठ्या ब्रह्मांड, पहले इसको रोहनात कहो, फेर जलियांवाला बाग।।
हिसार के क्रांतिकारी गांव रोहनात के क्रांतिकारियों की वीरगाथा पर आधारित नाटक दास्तान-ए-रोहनात की यह चार लाइनें गांव के गौरव की पूरी कहानी बयां करती है। नाटक देखने के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने घोषणा की है कि डीपीआर (जनसंपर्क निदेशालय) की तरफ से इस नाटक का मंचन 15 अगस्त, 2022 तक प्रदेश के हर जिले में किया जाएगा। नाटक की शुरुआत अंग्रेजों द्वारा किसानों को नील की खेती करने के लिए मजबूर करने और लगान लगाने के फैसले से जो किसानों पर असर पड़ा, उससे किया गया। इसके बाद बताया गया कि इस गांव में शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु जैसे स्वतंत्रता सैनानियों की ना सिर्फ एक तिगड़ी थी बल्कि रोहनात का कुआं भी जलियांवाला बाग के कुए की तरह कई स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी का गवाह बन चुका है।
इस गांव में आजादी की चिंगारी भड़काने वालों में बिरड़ा राम बैरागी, रूपराम खाती और नंदा जाट थे। यहां के लोगों की 1857 की क्रांति में भागीदारी देखकर ही अंग्रेजों ने इस गांव की 20850 बिग्गा जमीन को मात्र 8100 रुपये में 4 सितंबर, 1858 को नीलाम कर दिया।
इस गांव को उमरां गांव के हंसराज व अन्य ने खरीदा था।
इस घटना को कलाकारों ने इस तरह गीत की माला में पिरोया।
13 अप्रैल, 1857 को आया यह फरमान, 20 जुलाई, 1858 तक करनी थी धरती नीलाम।
सोच नहीं सकता था कोई, होया ईस्सा काम, 20850 बिग्गे सिर्फ 8100 में नीलाम।
गांव नीलाम करने के बाद जो हुआ, उसे यूं बयां किया गया-
सन 1858 में अंग्रेजों ने यह हाल किया, सारा गांव की कुर्की कर कै, लाशां के ढेर लगाए थे, कुछ तोप तै बांध दिए, कुछ फांसी पर लटकाए,
थी चीख पुकार सब जगह, हो रही थी हाय हाय, हांसी की सड़क करी लाल, लाल कर्या रंग लाल,
जय हो जय हो, जय हो रोहनात कर कै खून खराबा म्हारा, बर्बाद कर दिया म्हारा गांव,
मिटा सके ना जालिम फिर भी रोहनात का नाम, नहीं देश चौधर में कोई ईसा शरीकी गांव,
वीरां की इस धरती नै कोटि कोटि प्रणाम, तेरे इस बलिदान ने दे ना सकता कोई मात,
जय हो जय हो जय हो रोहनात।
अंग्रेजों के जुल्म की दास्तां
हांसी में लाला हुकुमचंद व मिर्जा मुनीर को उन्हीं के घर के सामने पेड़ पर फांसी लगा दी। भट्टू के नवाब मोहम्मद अजीम और 500 क्रांतिकारियों को जिंदा जला दिया गया। हिसार के नौ गांव पूरी तरह जला दिए गए। शहजादा आजम, जमालपुर के 135 लोगों को जिंदा जला दिया। मेवात में शत्रुधन व सरोज जाटव को अपनी जान गंवानी पड़ी। झज्जर रियासत के नवाब अब्दुल रहमान को अंग्रेजो ने फांसी पर लटका दिया, नौ गांव जला दिए, 88 लोग शहीद हुए। रोहतक में 100 लोग शहीद हो गए व रोहतक में विरासत अली नंबरदार को जिंदा जला दिया। सोनीपत में क्रांतिकारी उदमीराम को 35 दिनों तक पेड़ से बांधकर भूखा रखा गया और जान ले ली। गुरुग्राम जिले के 489, मेवात के 1019 लोगों को मारा गया। रेवाड़ी के 128 लोग मारे गए जिनमें 75 की ही पहचान हो पाई। फरीदाबाद में 165 की जान गई और 137 पहचाने गए। फरीदाबाद के 21 गांवों को पूरी तरह जला दिया। बहादुरगढ़ में 485 लोगों की जान गई और मात्र 29 लोगों की पहचान हुई। क्रांतिकारी नेता रामलाल जाट को उनके ही घर में फांसी दे दी। रोपड़ में मोहन सिंह को फांसी दे दी थी।