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Haryana News : मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल में किया पहला स्वैप Liver ट्रांसप्लांट

जटिल प्रक्रिया में दो अनजान परिवारों के बीच होता है अंगों का आदान-प्रदान
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फरीदाबाद स्थित मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में पहला स्वैप लिवर सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किए जाने के बाद जानकारी देते डा. पुनीत सिंगला। साथ हैं अन्य डाक्टर। -हप्र
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राजेश शर्मा/हप्र

फरीदाबाद, 21 नवंबर

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नयी उपलब्धि के रूप में मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद ने एक दुर्लभ और जटिल स्वैप लिवर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया है और ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन एवं हेल्थकेयर एक्सीलेंस में एक नई मिसाल कायम की है। इस जटिल प्रक्रिया में दो अनजान परिवारों के बीच डोनर अंगों का आदान-प्रदान किया जाता है ताकि मैचिंग की समस्या को दूर किया जा सके। यह हॉस्पिटल की इनोवेशन और रोगी केंद्रित देखभाल के प्रति अटूट समर्पण को दर्शाता है। इस सर्जरी का नेतृत्व लिवर ट्रांसप्लांट और सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के क्लिनिकल डायरेक्टर और एचओडी डॉ. पुनीत सिंगला के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम ने किया, जिन्होंने सावधानीपूर्वक योजना बनाकर ट्रांसप्लांट सर्जरी को अंजाम दिया। यह चिकित्सा उपलब्धि हॉस्पिटल की अत्याधुनिक सुविधाओं, एडवांस्ड तकनीक और मल्टीडिसीप्लिनरी सहयोग को प्रमुखता से दिखाती है।

स्वैप ट्रांसप्लांटेशन करवाने वाले दो परिवार क्रमश: पंजाब और हिमाचल प्रदेश से थे। पंजाब वाले मामले में डोनर प्राप्तकर्ता की पत्नी थी जिसका ब्लड ग्रुप बी था, जबकि उसके प्राप्तकर्ता पति का ब्लड ग्रुप ए था। कुल्लू हिमाचल प्रदेश के परिवार के मामले में डोनर प्राप्तकर्ता की बेटी थी और उसका ब्लड ग्रुप ए था, जबकि प्राप्तकर्ता पिता का ब्लड ग्रुप बी था। दोनों ही मामलों में डोनर और मरीजों के ब्लड ग्रुप बेमेल थे। इसलिए दोनों परिवारों को परामर्श दिया गया और लिवर ट्रांसप्लांट के लिए ब्लड ग्रुप के मिलान के लिए परिवार के सदस्यों की अदला-बदली के लिए सहमत किया गया। 45 वर्षीय शशि पाल सिंह और उनके परिवार को लिवर खराब होने की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके लिए तुरंत ट्रांसप्लांट की आवश्यकता थी। दो साल पहले प्लेटलेट्स की कम संख्या की नियमित जांच के दौरान, उन्हें लीवर सिरोसिस होने का पता चला था। उसकी हालत खराब हो गई और उसका वजन बढ़ने लगा। अन्य लक्षणों और टेस्ट रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए उन्हें लिवर प्रत्यारोपण की सलाह दी गई और उनकी बेटी सोनल सिंह, जो सिर्फ 23 वर्ष की थी, ने फैसला किया कि वह अपने लिवर का एक हिस्सा दान करेगी। शशि पाल में उनकी बेटी के ब्लड ग्रुप के खिलाफ एंटीबॉडी का स्तर बहुत अधिक पाया गया और इससे बेमेल प्रत्यारोपण की संभावना बढ़ गई। दूसरे मरीज अभिषेक शर्मा और उनके परिवार ने इसी तरह की समस्या के लिए डॉ. पुनीत सिंगला से संपर्क किया। अभिषेक 32 साल के हैं और डेढ़ साल पहले हेपेटाइटिस के बाद उनमें सिरोसिस का पता चला था। एक दिन वह बेहोश हो गए, उनका वजन लगातार कम होता गया और वे बहुत कमजोर हो गए। टेस्ट और रिपोर्टों से पता चला कि उन्हें लीवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता है। उनकी पत्नी अपने लीवर का हिस्सा दान करने के लिए तैयार थीं, लेकिन उनका ब्लड ग्रुप अलग था, जिससे दूसरे मरीज के लिए भी वही खतरा पैदा हो गया।

अंग प्रत्यारोपण में अत्यधिक बदलाव लाने वाला तरीका

क्लीनिकल डायरेक्टर एवं एचओडीए लिवर ट्रांसप्लांट और सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डॉ. पुनीत सिंगला कहते हैं, स्वैप लिवर ट्रांसप्लांट अंग प्रत्यारोपण में एक अत्यधिक बदलाव लाने वाला तरीका है, जो उन मरीजों के लिए अंतर को पाटता है, जहां डोनर मेल होने से जुड़ी चुनौतियों का सामना करते हैं। यह मेडिसिन में सहयोग और इनोवेशन की शक्ति की मिसाल देता है और मरीजों को जीवन में एक नया मौका देता है। हालांकि, स्वैप लिवर ट्रांसप्लांट करने से पहले डॉक्टरों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। डोनर और मरीज के सहमत होने के लिए सब कुछ विस्तार से समझाया जाता है।

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