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चुनावी नतीजों से हरियाणा में भी बदलेंगे समीकरण

अनेक नेताओं के राजनीतिक भविष्य का होगा फैसला
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 1 दिसंबर

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मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार हरियाणा को भी बेसब्री है। प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा-जजपा गठबंधन के अलावा विपक्षी पार्टियों – कांग्रेस, इनेलो व आम आदमी पार्टी की नज़रें भी इन नतीजों पर हैं। पांच राज्यों के चुनावी परिणाम आने वाले लोकसभा चुनावों पर भी असर डाल सकते हैं। हरियाणा से सटा होने की वजह से राजस्थान के चुनाव नतीजे प्रदेश के सियासी समीकरणों को बदलने वाले हो सकते हैं।

इतना ही नहीं, तीनों ही प्रमुख राज्यों में हरियाणा के कई नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। हालांकि हरियाणा में विधानसभा चुनावों में अभी करीब 11 महीने का समय है, लेकिन इससे पहले होने वाले लोकसभा चुनाव काफी अहम होंगे। इन चुनावों के लिए भी राजनीतिक दलों को अपना रोडमैप नये सिरे से तैयार करना पड़ सकता है। भाजपा जहां राजस्थान में बदलाव के सपने संजोये हुए है वहीं उसे लगता है कि मध्य प्रदेश में एक बार फिर से भाजपा रिपीट कर सकती है।

वहीं प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इस उम्मीद है कि मध्य प्रदेश इस बार कांग्रेस का साथ देगा और राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की नीतियों पर लोग मुहर लगाएंगे। हालांकि एग्जिट पोल आ चुके हैं और इनके अपने-अपने अनुमान हैं। कहीं राजस्थान में भाजपा को आगे बताया जा रहा है तो कहीं मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर बताई जा रही है। अभी तक के रुझानों में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आसानी से वापसी करती हुई नजर आ रही है। राजस्थान का बड़ा एरिया हरियाणा से सटा हुआ है। ऐसे में इस राज्य के चुनावों का असर हरियाणा की राजनीति पर पड़ सकता है। हरियाणा के लिए राजस्थान इसलिए भी अहम है क्योंकि यहां सत्तारूढ़ भाजपा की गठबंधन सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जजपा) भी राजस्थान में करीब दो दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ रही है। हालांकि शुरुआत में जजपा की कोशिश थी कि भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जाए, लेकिन राजस्थान में भाजपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का मन बनाया।

राजनीति के जानकारों की अपनी-अपनी राय हैं। कुछ कहते हैं कि जजपा के मैदान में आने का फायदा राजस्थान में भाजपा को हो सकता है। वहीं कुछ का तर्क है कि जजपा की वजह से भाजपा कुछ सीटों को खो भी सकती है। अगर इस तरह के नतीजे आते हैं और भाजपा को कहीं लगता है कि जजपा की वजह से उसे नुकसान हुआ है तो हरियाणा में दोनों पार्टियों के रिश्तों पर भी असर पड़ सकता है। पूर्व में भी कई बार गठबंधन को लेकर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के ‘दबाव’ के चलते प्रदेश इकाई की कोशिशें सिरे नहीं चढ़ पाईं।

हुड्डा, किरण चौधरी ने किया था प्रचार

राजस्थान में पूर्व सीएम व विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व मंत्री व तोशाम विधायक किरण चौधरी सहित कई अन्य नेताओं ने भी राजस्थान में प्रचार किया था। किरण चौधरी को तो कांग्रेस नेतृत्व ने राजस्थान चुनावों के लिए कार्डिनेटर नियुक्त किया हुआ था। इसी तरह से कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला की प्रतिष्ठा मध्य प्रदेश में दांव पर लगी है। कर्नाटक में जीत के बाद नेतृत्व ने सुरजेवाला को एमपी का भी चार्ज सौंपा था। अगर मध्य प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में आती है तो रणदीप का पार्टी नेतृत्व के सामने राजनीतिक कद बढ़ेगा और रणदीप को इसका फायदा हरियाणा में भी मिल सकता है। इसी तरह से पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया हुआ है। सैलजा के चार्ज वाले प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता वापसी नजर आ रही है। इससे साफ है कि सैलजा की गांधी परिवार से नजदीकियां और भी बढ़ सकती हैं। इनेलो प्रधान महासचिव व ऐलनाबाद विधायक अभय सिंह चौटाला ने भी राजस्थान में प्रचार किया था। वहीं बिश्नोई बाहुल्य सीटों पर पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई ने भाजपा प्रत्याशियों के लिए माहौल बनाने की कोशिश की।

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