विवेक शर्मा/ट्रिन्य
चंडीगढ़, 21 नवंबर
हर साल देश को 40 हजार दिल और डेढ़ लाख किडनी की जरूरत होती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट व पीजीआई समेत अन्य मेडिकल संस्थाओं के शोध के अनुसार गंभीर बीमारियों से जूझ लोगों के लिए प्रतिवर्ष 50 हजार फेफड़ों और 40-50 हजार लीवर और 2500 पेनक्रियाज (अग्नाश्य) की जरूरत होती है। अंग फेल होने की वजह से हर साल 3 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। दस लाख लोगों में से 232 की जान किडनी नहीं मिलने की वजह से हर साल जा रही है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार हर साल 4 लाख के करीब सड़क दुर्घटना में जान गंवाते हैं। डेढ़ से दो लाख लोगों की स्ट्रोक के कारण मौत हो जाती है, लेकिन ज्यादातर मृतकों के परिजन अंगदान के लिए अपनी सहमति नहीं देते।
पीजीआई चंड़ीगढ़ में इस समय 2500 मरीजों को तुरंत किडनी की जरूरत है, लेकिन डोनर नहीं मिल रहे। डोनर के इंतजार में मरीजों का एक-एक दिन साल के बराबर बीत रहा है। चंडीगढ़ पीजीआई अब तक 450 मरीजों में किडनी ट्रांसप्लांटेशन करके उनको नयी जिंदगी दे चुका है। इसके अलावा 15 मरीजों के दिल, 76 का लीवर, 28 पेनक्रियाज, दो के लंग्स ट्रांसप्लांटेशन कर चुका है। अभी भी पेनक्रियाज के करीब 50 मरीज ऐसे हैं जिन्हें डोनर का इंतजार है।
अब हमें समझ आ गया…
डॉक्टर साहब ! मेरे पति का दिल्ली के अस्पताल में कैंसर का ऑपरेशन हुआ है। मेरे बेटे का पेनक्रियाज का ट्रांसप्लांटेशन होना है। बस उसकी जिंदगी आपके ही हाथों में है। आप तो हमारे लिए भगवान हो। एक तरफ पति और दूसरा तरफ बेटा। दोनों की जान को खतरा है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। आप जल्द ही ट्रांसप्लांटेशन कर दो। महिला को ढांढस देते हुए डॉक्टर ने कहा अभी हमारे पास डोनर नहीं है, कुछ कहा नहीं जा सकता। इतना सुनते ही महिला और उसके साथ आई बेटी के आंसू निकल गए। उन्होंने कहा कि डॉक्टर साहब कुछ तो करो, बताओ कितना इंतजार करना होगा। फिर से डॉक्टर ने कहा, जैसे ही डोनर मिलता है, मैं कोई व्यवस्था कराता हूं तब तक आप डायलिसिस कराते रहो। डोनर मिलने पर ही कुछ होगा। इसमें छह महीने से लेकर साल तक लग सकता है। डॉक्टर साहब, हमें पता चल गया है कि अंगदान का कितना महत्व होता है, हमारे साथ बीत रही है। मैंने तो अपने शरीर के एक-एक अंग का दान करने का फार्म भी भर दिया है।
फरीदाबाद से अपनी बेटी और बीमार बेटे को साथ लेकर आई महिला की पीजीआई के रीनल ट्रांसप्लांट विभाग के प्रमुख प्रो़ आशीष शर्मा के साथ बातचीत के कुछ अंश….
इन परिवारों से लें सीख
इस संसार में कुछ लाेग ऐसे भी हैं, जाे मरकर भी दूसरों के काम आ जाते हैं। जाते-जाते भी उन परिवारों को रोशन कर देते हैं, जिनसे वे कभी मिले ही नहीं। आओ हम भी ऐसे लोगों से सीख लेकर दूसरों की जिंदगी बचाने का बीड़ा उठाएं।
कैथल के 54 साल के अश्वनी कुमार का 14 अगस्त को कैथल में एक रोड एक्सीडेंट हुआ था। 17 अगस्त को पीजीआई में उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया। डॉक्टरों ने परिवार से अश्वनी के अंगदान करने का आग्रह किया। परिवार को महसूस हुआ कि उनके ‘अपने’ के अंग किसी के काम आएंगे ताे वे यही समझेंगे कि उनके परिवार का सदस्य अभी भी जिंदा है। परिवार के फैसले से 7 लोगों को नया जीवन मिला।
पंचकूला के रहने वाले आईटी पेशेवर 36 वर्षीय निपुण जैन को पीजीआई ने 30 अक्तूबर को ब्रेन डेड घोषित किया था। निपुण जैन का शोक संतप्त परिवार आगे आया और अंगदान के लिए अस्पताल के अधिकारियों से संपर्क किया। मृतक निपुण की दोनों किडनी पेनक्रियाज और कोर्निया दान कर चार मरीजों को नई जिंदगी दी गई।
पति के ब्रेन डेड घोषित होने पर यमुनानगर की रानो देवी ने साहसिक कदम उठाया और अपने पति मनोहर सिंह के हृदय, लीवर, किडनी और दोनों कॉर्निया को दान करने का फैसला लिया। उनके इस फैसले ने पांच लोगों को नया जीवन दिया। हृदय को छोड़ सभी अंग चंडीगढ़ में जरूरतमंद मरीजों में प्रत्यारोपित कर दिए गए हैं।
ज्यादा डोनर नहीं मिलने से दिक्कत
पीजीआई रीनल ट्रांसप्लांट विभाग के प्रमुख प्रो़ आशीष शर्मा का कहना है कि अंगदान नहीं होने की वजह से मरीजों की जान बचानी काफी मुश्किल होती है। सबसे ज्यादा अंगदान की जरुरत किडनी, लीवर, दिल, फेफड़े, पेनक्रियाज (अग्नाश्ाय) के मरीजों को होती है, लेकिन इन्हें अंगदान दुर्घटना में जान गंवाने वाला या फिर जिसका ब्रेन डेड हो चुका है, वो ही कर सकता है। पीजीआई में ब्रेन डेड घोषित हो चुके मरीजों के परिजनों को अंगदान कराने के लिए काफी कोशिश की जाती है। इसके लिए तीन ट्रांसप्लांटेशन कोर्डिनेटर राजेंद्र कौर, रमन और पारूल तुरंत परिजनों से बात शुरू कर देती है। काफी कोशिश करने के बाद केवल 40 से 45 प्रतिशत मृतकों के परिजन ही अंगदान की सहमति देते हैं।
ये हैं चुनौतियां
डॉक्टर आशीष शर्मा के अनुसार ब्रेन डेड हो चुके परिजनों को मनाना आसान नहीं होता। पहले तो वो ये मानने को तैयार नहीं होते कि उनका परिजन ठीक नहीं होगा। ब्रेन डेड घोषित होने के बाद ज्यादा मरीज के परिजन वेंटिलेटर से हटाकर घर ले जाते हैं। दूसरे अंधविश्वास के कारण उन्हें लगता है कि यदि शरीर का कोई अंगदान कर दिया तो वो अगले जन्म में उन्हें पूरा शरीर नहीं मिलेगा। इसके अलावा कुछ परिजनों को अंतिम संस्कार की जल्दी होती है वो अंगदान में होने वाली प्रक्रिया से बचना चाहते हैं। इसके अलावा अंगदान के लिए मृतक या ब्रेन डेड हो चुके मरीज की पत्नी की सहमति जरूरी होती है। बिना सहमति के अंगदान नहीं किए जा सकते।
अंगदान में पीजीआई सर्वश्रेष्ठ अस्पताल
पीजीआई चंडीगढ़ को वर्ष 2020 में देश के सर्वश्रेष्ठ अस्पताल का अवार्ड मिला था। पीजीआई ने अंगदान को बढ़ावा दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने पीजीआई चंडीगढ़ की तारीफ करते कहा था कि संस्थान लाखों लोगों को जीवन प्रदान कर रहा है। साथ ही चौथी बार लगातार अंगदान में शीर्ष पर है।
पीजीआई ने दी जिंदगी
पीजीआई में ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन शुरू होने से अब तक का ब्योरा
किडनी- 450
लिवर- 76
हृदय – 15
पेनक्रियाज- 28
फेफड़े- 2
कार्निया- 7969
ट्रांसप्लाटेंशन सेंटरों की देशभर में कमी
हरियाणा और पंजाब में ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के लिए संसाधनों की भी कमी है। जिलों में डोनेट सेंटर न होने की वजह से भी अंगदान कम होते हैं। यदि यहां कोई अंगदान करना भी चाहे तो संसाधन उपलब्ध नहीं होते। पूरे देश में निजी व सरकारी मिलाकर इस समय किडनी के 240 सेंटर, लीवर के 125, हार्ट के 25, लंग्स ट्रांसप्लांटेशन के केवल 10 और पेनक्रियाज के 13 ही सेंटर है। हरियाणा-पंजाब के लोगों के लिए पीजीआई चंडीगढ़ में यह सुविधा है। पीजीआई की ओर से मेडिकल कॉलेज 32 में ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन केंद्र खोलने की दिशा में काम किया जा रहा है।
हाईकोर्ट ने दिए थे आदेश
हरियाणा और पंजाब ने लागू नहीं की सिफारिशें
ऑर्गन डोनेशन को लेकर चंडीगढ़ स्थित पीजीआई के डॉक्टरों की कमेटी की सिफारिशों पर 2019 में हाईकोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ प्रशासन को विचार करने के निर्देश दिए थे। हाईकोर्ट ने इस एक्ट को कड़ाई से लागू करने के आदेश भी दिए थे, लेकिन दो वर्ष बीत जाने के बाद भी इस संबंध में दोनों राज्य सरकारों ने उचित कदम नहीं उठाए।
ये होना था
अंगदान के महत्व को समझाने के लिए इसका पाठ स्कूलों में 10वीं 11वीं और 12वीं कक्षा में अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाए। इसके साथ ही जीते जी अंगदान करने वालों के डोनर कार्ड बनाए जाएं और उन्हें यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर दिया जाए।
नेशनल लेवल पर इन लोगों को पंजीकृत किया जाए, जिससे और लोगों को भी प्रोत्साहन मिले। कमेटी ने हाईकोर्ट को अपनी सिफारिश में कहा कि अंगदान को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। ऐसे में स्वयंसेवी और धार्मिक संस्थाओं को इस मामले में साथ जोड़कर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।
रिपोर्ट में कहा गया कि पंजाब हरियाणा व चंडीगढ़ के हर उस अस्पताल जिसमें आईसीयू की सुविधा उपलब्ध है, वहां ब्रेन डेड डिक्लेरेशन को जरूरी किया जाए। इससे रोगी के परिवार को समय मिल सकेगा कि वह चाहे तो अस्पताल में एडमिट पेशेंट के अंगदान कर सकें। जिन अस्पतालों में आईसीयू की सुविधा ज्यादा बेहतर नहीं है उन्हें दूसरे अस्पतालों तक पहुंचने के लिए फ्री सुविधा दी जाए।
प्रत्येक अस्पताल के आईसीयू के बाहर भी अंगदान के लिए हेल्पलाइन नंबर और सभी जरूरी नियमों को डिस्प्ले किया जाए।
कमेटी ने रिपोर्ट में अंगदान के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर की नियुक्ति करने की सिफारिश भी की है । इसमें कहा गया कि अंगदान बहुत ही संवेदनशील मामला है, जहां परिवार की भावनाएं जुड़ी हुई हैं ऐसे में ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर अहम भूमिका निभा सकते हैं और लोगों को समझा सकते हैं कि इससे और लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है।
कमेटी ने ऑर्गन आर द स्टिंग के लिए अस्पतालों को एफिलिएटेड करने की सिफारिश भी की है। इस सारे मामले में पुलिस की भूमिका तय करने की जरूरत पर जोर दिया गया।
कोर्ट की अवमानना का डालेंगे केस
ऑर्गन डोनेशन को लेकर एडवोकेट रंजन लखनपाल ने 2016 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। उन्हीं की याचिका पर हाईकोर्ट ने पीजीआई की कमेटी बनाई थी। इसके बाद कमेटी की सिफारिशों को लागू करने को कहा था। एडवोकेट रंजन लखनपाल का कहना है कि पंजाब और हरियाणा सरकारों ने हाईकोर्ट के आदेश पर अभी तक कोई काम नहीं किया है। अब वो जल्द ही हाईकोर्ट में कोर्ट की अवमानना का केस डालेंगे ताकि जल्द ही पीजीआई कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जा सके।
ब्रेन डेड
ब्रेन डेड होने पर ही हृदय, लीवर, किडनी, आंत, फेफड़े और अग्न्याशय (पेनक्रियाज) जैसे प्रमुख अंगों का दान किया जा सकता है। हालांकि, अन्य ऊतक जैसे कॉर्निया, हृदय वाल्व, त्वचा, हड्डी आदि केवल प्राकृतिक मृत्यु की स्थिति में ही दान किए जा सकते हैं।
स्थिति
जब किसी व्यक्ति का दिमाग काम करता है तो ब्रेन स्टेम रिफ्लेक्सिस रुक जाता है। मस्तिष्क में इन क्रियाओं के फिर से शुरू होने की संभावना नहीं है। ऐसे व्यक्ति के शरीर के अन्य अंग दवाओं और वेंटिलेटर द्वारा सुचारु रूप से चलते रहते हैं। ऐसे रोगी को ब्रेन डेड कहा जाता है। इस प्रक्रिया की वैज्ञानिक रूप से पुष्टि करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार, चार डॉक्टरों की एक समिति द्वारा छह घंटे के अंतराल पर एपनिया टेस्ट और ब्रेन स्टेम का रिफ्लेक्स टेस्ट दो बार किया जाता है।
प्रक्रिया
इसमें मरीज के ब्लड सैंपल, मरीज के ब्रेन फंक्शन की जांच की जाती है। जब दो परीक्षणों के बाद यह पुष्टि हो जाती है कि मस्तिष्क फिर से काम नहीं करेगा, तो रोगी को ब्रेन डेड घोषित कर दिया जाता है। अंगदान के दौरान रोगी के शरीर से आवश्यक अंगों को निकालने तक रोगी का रक्तचाप और श्वास नियमित रूप से वेंटिलेटर और दवाओं के माध्यम से चलता रहता है।
एक व्यक्ति 8 लोगों को दे सकता है नया जीवन
डॉक्टरों के मुताबिक मौत के बाद अंगदान करके एक व्यक्ति कम-से-कम आठ लोगों की जान बचा सकता है। ब्रेन डेड मरीज की किडनी, लीवर, फेफड़ा, पेनक्रियाज, छोटी आंत, वॉयस बॉक्स, हाथ, यूट्रस, ओवरी, फेस, आंखें, मिडिल ईयर बोन, स्किन, बोन, कार्टिलेज, तंतु, धमनी व शिराएं, कोर्निया, हार्ट वाल्व, नर्व्स, अंगुलियां और अंगूठे दान किए जा सकते हैं।
ये लोग नहीं कर सकते अंगदान
जिसे कैंसर, डायबिटीज जैसी घातक बीमारी नहीं है, वह व्यक्ति अंगदान कर सकता है। कैंसर और एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति, सेप्सिस या इन्ट्रावेनस दवाओं का इस्तेमाल करने वाले अंगदान नहीं कर सकते। जीवित रहते हुए आप लीवर, गुर्दा, फेफड़े के एक भाग का दान कर सकते हैं। अग्नाश्ाय का एक भाग दान किया जा सकता है। आंत का एक हिस्सा दान किया जा सकता है।
किडनी : जरूरत : डेढ़ लाख
मिल रही : 7936
प्रत्यारोपण कितने समय तक : 12 घंटे के अंदर
दिल : जरूरत : 40 हजार
मिल रहे : 241
प्रत्यारोपण कितने समय तक : 4-5 घंटे के अंदर
लीवर : जरूरत : 40-50 हजार, मिल रहे : 1945
प्रत्यारोपण कितने समय तक : 6 घंटे के अंदर
पेनक्रियाज़ : जरूरत : 2500
मिल रही : 25
प्रत्यारोपण कितने समय तक : 6 घंटे
फेफड़े : जरूरत : 50 हजार
मिल रही : 191
मरने के बाद भी दूसरे के काम आना सबसे बड़ा धर्म
इस धरती पर मनुष्य योनि किसी-किसी को ही मिलती है। हमें अपने जीवनकाल में सभी की मदद करनी चाहिए। इससे बड़ी क्या बात है कि हमारे अंग किसी दूसरे के काम आएं। सनातन धर्म में मरने के बाद भी किसी के काम आना सबसे बड़ा धर्म है। संतों का कभी भी दाह संस्कार नहीं किया जाता, हम लोग जलसमाधि लेते हैं ताकि जीव हमारे शरीर को खाकर तृप्त हो सकें। हमारा मृत शरीर किसी के काम आए। यह मिथक है कि अंगदान करने से अगले जन्म में पूरा शरीर नहीं मिलेगा। सनातनियों को आगे आकर अंगदान करने चाहिए।
-जगतगुरु राम दिनेशाचार्य, अयोध्या
समाज से अंधविश्वास की जंजीरें तोड़ने की जरूरत
अंधविश्वास को खत्म करने के लिए व्यक्ति की सोच बदलना जरूरी है। कुछ लोग मानते हैं कि हिंदू धर्म में जब तक पूरे शरीर का अंतिम संस्कार न हो उन्हें मोक्ष नहीं मिलता। लोगों की सोच बदलने के लिए जरूरी है कि अस्पतालों में लोगों को समझाने के लिए कोर्डिनेटर रखे जाएं ताकि वो लोगों के मन से अंधविश्वास की जंजीरें तोड़ने में कामयाब हो सकें। इसके अलावा धर्मगुरुओं को भी लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित करना चाहिए।
-प्रो. सीआर ड्रोलिया, मनोवैज्ञानिक