Tribune
PT
About Us Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

दौलतपुरिया को जीत दोहराने की चुनौती तो भाजपा को सीट बचाने की

फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र जाट बाहुल्य सीट पर भाजपा-कांग्रेस में कांटे की टक्कर, इनेलो का प्रयास मुकाबला त्रिकोणीय बनाना
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
featured-img featured-img
बलवान सिंह दौलतपुरिया
Advertisement

मदनलाल गर्ग/हप्र

फतेहाबाद, 19 सितंबर

Advertisement

प्रदेश में फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र ऐसा हलका है, जिससे हरियाणा के तीनों लालों का गहरा संबंध रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल का पैतृक गांव मोहम्मदपुर रोही इसी हलके में है, यहां उनका बचपन व जवानी बीती। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की ससुराल भूथनकलां वर्ष-2005 तक फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र में रहा। परिसीमन के बाद यह गांव रतिया विधानसभा क्षेत्र में चला गया। सयुंक्त पंजाब के समय वर्ष 1962 में चौधरी देवीलाल पहली बार फतेहाबाद से ही विधायक बने थे। टिकट नहीं मिलने पर देवीलाल ने कांग्रेस से बगावत की और आजाद प्रत्याशी के तौर पर सफलता पाई थीं। बाद में चौधरी देवीलाल 1977 में फतेहाबाद के भट्टूकलां से विधायक चुने गए तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

इस बार फतेहाबाद हलके की चुनावी जंग में दस साल के बाद पुराने प्रतिद्वंद्वी एक बार फिर आमने-सामने डटे हैं। हालांकि इस बार दोनों के ही निशान व पार्टी बदल चुके हैं। फतेहाबाद हलके से कांग्रेस के बलवान सिंह दौलतपुरिया, भाजपा के दुड़ाराम, इनेलो की सुनैना चौटाला, जजपा के सुभाष गोरछिया व आम आदमी पार्टी के कमल बिसला चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। इनके अलावा बीस आज़ाद प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। आजाद प्रत्याशियों में काफी अरसे बाद पंजाबी समुदाय से राजिंद्र काका चौधरी ने ताल ठोंकी है। जबकि जाट बहुल्य सीट पर भाजपा को छोड़कर सभी प्रमुख पार्टियों ने जाट समुदाय से प्रत्याशी उतारे हैं। फिलहाल चुनावी मैदान में मुकाबला भाजपा व कांग्रेस में ही दिख रहा है। जिसे इनेलो त्रिकोणीय बनाने के प्रयास करती नजर आ रही है। कांग्रेस प्रत्याशी बलवान सिंह दौलतपुरिया जहां कांग्रेस की ‘हवा के घोड़े’ पर सवार है, तो भाजपा के दुड़ाराम को सरकार के प्रति एंटी इनकंबेंसी के अलावा निजी नाराजगी भी झेलनी पड़ रही है। 2019 के चुनाव में हाशिये पर चली गई इनेलो गंभीरता से चुनाव मैदान में उतरी है। उसकी गंभीरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि चौटाला परिवार की बहू चुनाव मैदान में हैं। इनेलो छिटक गए अपने समर्थकों व वोटरों को एकजुट करने में जुटी है। कांग्रेस में व्यापक गुटबाज़ी के चलते सैलजा गुट के बलवान सिंह दौलतपुरिया प्रत्याशी बनने में कामयाब हो गए।

जबकि कांग्रेस टिकट के प्रमुख दावेदारों में हुड्डा गुट से पूर्व विधायक प्रह्लाद सिंह गिल्लांखेड़ा बीते चुनाव में मात्र 33 सौ मतों से पिछड़े। टिकट की दौड़ में डॉ़ विरेंद्र सिवाच तथा पार्टी के राष्ट्रीय सचिव विनीत पूनिया भी शामिल थे। अब देखना यह है कि हुड्डा गुट के ये नेता कांग्रेस प्रत्याशी का कितना साथ देते हैं या फिर कांग्रेस को भितरघात का शिकार होना पड़ेगा। अभी तक किसी भी दावेदार ने खुलकर कांग्रेस प्रत्याशी का विरोध या समर्थन नहीं किया है।

भाजपा ने दुड़ाराम पर खेला दांव

भाजपा ने एक बार फिर निवर्तमान विधायक दुड़ाराम पर भरोसा जताया है। हालांकि दुड़ाराम के एंटी इनकम्बेंसी की रिपोर्ट पार्टी के पास थी, लेकिन फतेहाबाद से कोई प्रभावशाली प्रत्याशी न होने तथा चचेरे भाई कुलदीप बिश्नोई की पैरवी ने दुड़ाराम को भाजपा का दोबारा प्रत्याशी बनवा दिया। भाजपा प्रत्याशी दुड़ाराम के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती सरकार के प्रति एंटी इनकम्बेंसी को कम करना तो है ही। इसके अलावा बीते पांच सालों में उनकी कार्यप्रणाली व खास समर्थकों के कारण दूर हुए अपनों को मनाना भी है क्योंकि भाजपा प्रत्याशी के पास विकास के नाम पर गिनवाने को कुछ नहीं है, जबकि उनके कार्यकाल में मंजूर हुए मेडीकल कॉलेज व कचरा प्रबंधन प्लांट का दूसरे हलके में शिफ्ट होने को विपक्ष मुद्दा बना रहा है।

इनेलो अभय ने परिवार की सुनैना चौटाला को उतारा चुनाव मैदान में

इनेलो से इस बार अभय चौटाला ने अपने ही परिवार की सुनैना चौटाला को चुनाव मैदान में उतारा है। सुनैना चौटाला पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल के छोटे बेटे प्रताप चौटाला की बहू है। सुनैना चौटाला 20 दिनों से हलके का दौरा करके लोगों की नब्ज टटोल रही थी, वे लोगों को पहले 25 सितंबर को उचाना में होने वाली देवीलाल जयंती के लिए न्यौता दे रही थी लेकिन अब वह पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतर चुकी है।

आजाद प्रत्याशियों में पंजाबी समुदाय से राजेंद्र काका ने ठोका खम

राजेंद्र काका चौधरी

जजपा ने सुभाष गोरछियां व आम आदमी पार्टी ने किसान नेता कमल बिसला को चुनाव मैदान में उतारा हैं। आजाद प्रत्याशियों में राजेंद्र काका चौधरी चुनाव मैदान में है जो पंजाबी समुदाय से हैं तथा शहर के पंजाबी समुदाय में उनकी अच्छी पैठ है। यदि पिछले तीन विधानसभा चुनाव देखे जाएं तो फतेहाबाद हलके में कांटे का मुकाबला रहा है।

कमल बिसला

जीत-हार का अंतर तीन हजार के आसपास

2009 से लेकर 2019 तक हुए तीन चुनाव में जीत और हार का अंतर 3 हजार के आसपास ही सीमित रहा है। 2009 में कांग्रेस से बगावत करके चुनाव मैदान में उतरे आजाद प्रत्याशी प्रह्लाद सिंह गिल्लांखेड़ा ने कांग्रेस के दुड़ा राम को 28 सौ मतों से हराया था। 2014 में इनेलो के बलवान सिंह दौलतपुरिया ने हजकां के प्रत्याशी दुड़ाराम को 35 सौ मतों से तथा 2019 के चुनाव में दुड़ाराम ने जजपा प्रत्याशी डॉ़ वीरेंद्र सिवाच को 33 सौ मतों से हराया था।

तीनों लालो से संबंध फिर भी औद्योगिक विकास में पिछड़ा

हरियाणा की सत्ता पर लंबे समय काबिज रहे तीनों लालों का फतेहाबाद से गहरा संबंध होने के वावजूद भी फतेहाबाद क्षेत्र शिक्षा व औद्योगिक रूप से पिछड़े इलाकों में आता है। फतेहाबाद एक समय में घर-घर खुले चप्पल उद्योग के कारण मिनी कानपुर कहलाता था तथा प्रदेश की प्रमुख कॉटन बेल्ट में आता था। जिस कारण फतेहाबाद में बड़े औद्योगिक घराने बिड़ला व जगजीत कॉटन फगवाड़ा की रूई की फैक्ट्रियां थी लेकिन तत्कालीन सरकार के लोगों का ट्रक यूनियनों पर कब्जा होने के कारण उनकी मनमानी तथा मॉल ढुलाई का भाव प्रदेश में सर्वाधिक होने के चलते यहां से कॉटन मिलें चली गई तथा फतेहाबाद भी धीरे-धीरे कॉटन से धान की ओर चला गया। सरकार के नुमाइंदों की अनदेखी के चलते चप्पल उद्योग भी बंद हो गए तथा भूना में खुली चीनी मिल भी निजी हाथों में जाने के बाद स्थाई तौर पर बंद हो गई।

Advertisement
×