चरचा हुक्के पै
संकटमोचक बने ताऊ
अपने सांघी वाले ताऊ को कांग्रेस हाईकमान ‘संकटमोचक’ मानकर चल रही है। कई बार ऐसे मौके आए हैं, जब नेतृत्व ने विपरित हालात में उनकी ड्यूटी लगाई है। हिमाचल प्रदेश के हालिया घटनाक्रम में भी कर्नाटक के वरिष्ठ नेता डीके शिवकुमार के साथ पार्टी ने सांघी वाले ताऊ को भी पर्यवेक्षक बनाकर भेजा। ताऊ लगातार दो दिन शिमला में रहे और वहां ‘अस्थिर’ हो चुकी सरकार को ‘स्थिर’ करने की कोशिश की। ताऊ के हिमाचल में कांग्रेस के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं के साथ पुराने और घनिष्ठ संबंध रहे हैं। माना जा रहा है कि इन्हीं संबंधों की वजह से ताऊ की ड्यूटी लगाई गई ताकि वे आपसी टकराव को दूर कर सकें। बहरहाल, शुरुआत तो हो गई है। अब यह देखना रोचक रहेगा की ताऊ और डीके शिवकुमार की जोड़ी कथित ‘ऑपरेशन लॉट्स’ को कब तक और कितना कंट्रोल कर पाने में सफल होते हैं। इससे पहले हिमाचल में कांग्रेस को मिले बहुमत के बाद विधायक दल के नेता के चयन के लिए भी ताऊ को पर्यवेक्षक बनाकर हिमाचल भेजा गया था।
सेठजी ‘चाणक्य’ की भूमिका में
हरियाणा में आम आदमी पार्टी वाले ‘सेठजी’ भी राजनीति के ‘चाणक्य’ साबित हो रहे हैं। पार्टी के दिल्ली वाले ‘लालाजी’ के साथ नजदीकी बढ़ाने में दूसरों को काफी पीछे छोड़ चुके सेठजी अब धर्मनगरी – कुरुक्षेत्र से लोकसभा की टिकट हासिल करने में भी कामयाब हो गए हैं। राज्यसभा कार्यकाल पूरा होने के बाद जब उन्हें दोबारा से मौका नहीं मिला तो यह माना जा रहा था कि सेठजी के ‘दिल्ली’ में नंबर कम हो रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं था। यह भी पार्टी की सोची-समझी रणनीति थी, इसका खुलासा तब हुआ जब उन्हें लोकसभा प्रत्याशी घोषित किया गया। बताते हैं कि प्रदेश में एक्टिव कैथल जिले वाले एक दूसरे नेताजी भी लोकसभा चुनाव लड़ने की कोशिश में थे, लेकिन बात नहीं बन पाई। इससे पहले ‘सेठजी’ हरियाणा की ‘प्रधानगी’ हासिल करके भी कइयों के मंसूबों पर पानी फेर चुके हैं। बताते हैं कि सिरसा वाले डॉक्टर साहब को भी ‘प्रधानगी’ का वादा किया था, लेकिन ऐन-मौके पर बाजी सेठजी मार गए। इसी नाराजगी के चलते डॉक्टर साहब ने खुद को भगवा रंग में रंगना ही बेहतर समझा।
ऐसे निकल गया कांटा
हरियाणा की राजनीति में ‘कांटा’ शब्द खूब चर्चाओं में रहता है। जींद उपचुनाव में जब रणदीप सिंह सुरजेवाला चुनाव लड़ रहे थे तो उस समय महेंद्रगढ़ वाले बड़े पंडितजी यानी प्रो़ रामबिलास शर्मा ने पूर्व सीएम हुड्डा का नाम लेते हुए मंच से कहा था, हुड्डा साहब इस उपचुनाव में आपका कांटा निकल जाएगा। उन्होंने पहले ही कह दिया था कि रणदीप चुनाव नहीं जीत सकेंगे। इसी तरह से जब 2019 में खुद हुड्डा ने सोनीपत से लोकसभा चुनाव लड़ा तो पंडितजी ने फिर सुरजेवाला व दूसरे कांग्रेसियों को कहा कि इस बार उन सभी का कांटा निकल जाएगा। प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में इन दिनों कुमारी सैलजा काफी आक्रामक हैं। वे विधानसभा चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर चुकी हैं। हुड्डा के खासमखास पूर्व विधायक नरेश सेलवाल ने 2 मार्च को उकलाना में जनआक्रोश रैली का आयोजन किया हुआ था, लेकिन किसान आंदोलन के चलते प्रशासन ने इसकी इजाजत नहीं दी। इसे ही कहते हैं, बिना कुछ किए कांटा निकल जाना। सैलजा समर्थकों की मानें तो इस बार वे उकलाना से ही विधानसभा चुनाव लड़ सकती हैं।
चला गया बिल्लू भाई का साथी
इनेलो प्रदेशाध्यक्ष और बहादुरगढ़ के पूर्व विधायक नफे सिंह राठी का जाना सबसे अधिक ‘बिल्लू’ भाई साहब के लिए पीड़ादायक है। उनके लिए यह बहुत बड़ी राजनीतिक क्षति है। राठी पिछले दो वर्षों से जिस तरह से पार्टी को संभाले हुए थे, उससे बिल्लू भाई साहब का काम काफी आसान हो गया था। राठी की मैनेजमेंट के चलते उन्हें (बिल्लू) को किसी तरह की टेंशन नहीं थी। बिल्लू की हरियाणा परिवर्तन यात्रा से लेकर रैलियों तक में राठी की मैनेजमेंट काफी चर्चाओं में रह चुकी है। ऐसे में ‘बिल्लू’ भाई साहब संगठन से फ्री होकर पार्टी को मजबूत करने की मुहिम में जुटे थे। राठी के जाने की वजह से अब बिल्लू भाई साहब के सामने सबसे बड़ी चुनौती नये प्रधान का चयन होने वाला है। वर्तमान में इनेलो में चंद ही ऐसे असरदार चेहरे हैं, जो इस तरह से काम कर सकें।
हरी झंडी का इंतजार
पिछले सवा चार वर्षों से सत्तारूढ़ भाजपा में बतौर गठबंधन सहयोगी शामिल जननायक जनता पार्टी (जजपा) वाले भाई लोगों की दुविधा बढ़ी हुई है। वैसे तो जजपा एनडीए का पार्ट है, लेकिन अभी तक यह स्थिति स्पष्ट नहीं है कि दोनों पार्टियां मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगी या नहीं। बेशक, हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच हुए चुनावी गठबंधन के बाद भाजपा-जजपा गठबंधन को लेकर भी जजपाई आशावान हैं। वहीं दूसरी ओर, भाजपा की ओर से अभी तक इस तरह के कोई संकेत नहीं दिए गए हैं। अलबत्ता भाजपा ने सभी दस सीटों के प्रत्याशियों के लिए चयन प्रक्रिया शुरू कर दी है। कांग्रेस ने आप को एक लोकसभा सीट दी है। इसी फार्मूले के तहत जजपा भी एक सीट पर चुनाव लड़ने को राजी है। माना जा रहा है कि एनडीए में शामिल सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग के फार्मूले पर चर्चा होने के दौरान ही हरियाणा पर भी चर्चा होगी। सो, तब तक इंतजार के सिवाय कोई दूसरा चारा भी नहीं है।
बराला का बढ़ा कद
भाजपा वाले पूर्व प्रधान का सियासत में कद लगातार बढ़ता जा रहा है। अपने काका का उन पर पूरा विश्वास और आशीर्वाद है। 2019 में चुनाव हारने के बाद काका ने उन्हें हरियाणा पब्लिक एंटरप्राइजेज ब्यूरो का चेयरमैन लगा दिया। पिछले साल उन्हें किसानों के लिए बनी अथॉरिटी की भी कमान दे दी। राज्यसभा की खाली हुई एक सीट पर भी बराला का चयन हुआ। अब काका की पसंद से उन्हें लोकसभा चुनाव प्रबंधन कमेटी का संयोजक भी नियुक्त कर दिया है। बराला पर काका की पूरी कृपा बनी हुई है। हालांकि कई भाई लोगों को बराला का बढ़ता कद रास नहीं आ रहा है, लेकिन चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे। वैसे बराला भी काका के भरोसे पर खरा उतरते हैं। ऐसे में दोनों की ट्यूनिंग भी गजब की है।
-दादाजी