जितेंद्र अग्रवाल/हप्र
अम्बाला शहर, 20 फरवरी
सहकारी समितियों से जुड़े ग्रामीण अंचल के दूध उत्पादक किसान लागत मूल्य बढ़ने से आर्थिक तबाही के कगार पर हैं। वहीं, गलत नीतियों के चलते आम उपभोक्ताओं की जेब भी सरेआम कट रही है। वीटा इन सहकारी समितियों से वर्तमान में 6.59 रुपये प्रति फैट के हिसाब से दूध खरीद रहा है जबकि आम उपभोक्ताओं को महंगे भाव पर बेच दोहरी कमाई से अपना खजाना भर रहा है। किसानों का कहना है कि लागत में बढ़ोतरी के अनुसार दूध के दाम नहीं बढ़ाये जाने से या विशेष राहत नहीं मिलने से वे दूध उत्पादन का काम छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे। अम्बाला प्लांट के पास करीब 725 सहकारी समितियों के माध्यम से रोजाना औसतन 1.10 लाख लीटर दूध आता है। वीटा के कारण अन्य ब्रांड और निजी डेरी संचालक भी रिटेल दाम घटाने को तैयार नहीं हैं। निजी डेरी संचालक 3 से 4 फैट तक का दूध ही 55 रुपये से 60 रुपये प्रति लीटर बेच रहे हैं।
”वीटा की गुणवत्ता के मामले में अपनी विशेष साख होने के बावजूद इससे जुड़े किसानों के लिए दूध उत्पादन अब घाटे का सौदा बनकर रह गया है। लागत बढ़ जाने से और बिक्री मूल्य पर्याप्त नहीं मिलने से किसान अपने पुश्तैनी काम को बंद करने की सोचने लगे हैं। वर्तमान में दूध का भाव किसान को 10 रुपये प्रति फैट की दर से मिलना चाहिए अन्यथा किसान बर्बाद हो जाएंगे।
-जयपाल, चेयरमैन, द अम्बाला डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव मिल्क
प्रोड्यूसर्ज यूनियन ।
”वीटा दूध की मांग सबसे ज्यादा है लेकिन उत्पादों के दाम तय करने का काम मुख्यालय करता है। दूध उत्पादक किसानों के दाम भी मुख्यालय ने ही तय करने होते हैं। दूध के रिटेल भाव में कटौती अथवा किसानों से खरीद भाव बढ़ाने का कोई प्रस्ताव संज्ञान में नहीं है। वीटा अपने उपभोक्ताओं को शुद्ध और पौष्टिक उत्पाद उपलब्ध करवाने में कटिबद्ध है।
-सर्वजीत सिंह, सीईओ, अम्बाला प्लांट