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काम्यकेश्वर तीर्थ पर स्नान करने से होती है मोक्ष की प्राप्ति

गांव कमोदा स्थित मंदिर में रविवारीय शुक्ला सप्तमी मेला 4 को
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कुरुक्षेत्र के गांव कमोदा स्थित श्री काम्यकेश्वर महादेव मंदिर। -हप्र
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विनोद जिन्दल/हप्र

कुरुक्षेत्र, 2 मई

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गांव कमोदा स्थित काम्यकेश्वर महादेव मंदिर व तीर्थ पर 4 मई को रविवारीय शुक्ला सप्तमी मेला लगेगा। तीर्थ में शुक्ला सप्तमी के शुभ अवसर पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। शुक्रवार को तीर्थ में स्वच्छ जल भरा गया। ग्रामीणों द्वारा मेले की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। मंदिर को लड़ियों से सजाया गया और मंदिर पर रंग-रोगन का कार्य पूर्ण हो चुका है। मेले की तैयारियों को लेकर जयराम संस्थाओं एवं इस तीर्थ के परमाध्यक्ष श्री ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज का विशेष सहयोग है। धार्मिक मान्यता के अनुसार रविवारीय शुक्ल सप्तमी के दिन तीर्थ में स्नान करने से मोक्ष व पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। महर्षि पुलस्त्य और महर्षि लोमहर्षण ने वामन पुराण में काम्यकवन तीर्थ की उत्पति का वर्णन किया है। इसमें बताया कि इस तीर्थ की उत्पति महाभारत काल से पूर्व की है। वामन पुराण के अध्याय-2 के 34वें श्लोक के काम्यकवन तीर्थ प्रसंग में स्पष्ट लिखा है कि रविवार को सूर्य भगवान पूषा नाम से साक्षात रूप से विद्यमान रहते हैं। इसलिए वनवास के समय पांडवों ने इस धरा को तपस्या हेतु अपनी शरणस्थली बनाया। द्यूत-क्रीड़ा में कौरवों से हारकर अपने कुल पुरोहित महर्षि धौम्य के साथ 10 हजार ब्राह्मणों के साथ यहीं रहते थे। उनमें 1500 के लगभग ब्राह्मण श्रोत्रिय-निष्ठ थे, जो प्रतिदिन वैदिक धर्मानुष्ठान एवं यज्ञ करते थे।

पांडवों को सांत्वना देने श्रीकृष्ण काम्यकेर्श्वर तीर्थ पधारे थे

ग्रामीण सुमिद्र शास्त्री ने बताया कि मंदिर में बैसाख माह में 4 मई को रविवारीय शुक्ला सप्तमी मेला लगेगा। उनके अनुसार इसी पावन धरा पर पांडवों को सांत्वना एवं धर्मोपदेश देने हेतु महर्षि वेदव्यास, महर्षि लोमहर्षण, नीतिवेता विदुर, देवर्षि नारद, वृहदर्श्व, संजय एवं महर्षि मारकंडेय पधारे थे। द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण अपनी धर्मपत्नी सत्यभामा के साथ पांडवों को सांत्वना देने पहुंचे थे। पांडवों को दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचाने के लिए और तीसरी बार जयद्रथ के द्रोपदी हरण के बाद सांत्वना देने के लिए भी भगवान श्रीकृष्ण काम्यकेर्श्वर तीर्थ पर पधारे थे। पांडवों के वंशज सोमवती अमावस्या, फल्गू तीर्थ के समान शुक्ला सप्तमी का इंतजार करते थे।

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