भिवानी, 18 जनवरी (हप्र)
पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के लिए क्रीमीलेयर मानदंड को लेकर हरियाणा सरकार असंवैधानिक अधिसूचनाएं जारी कर पिछड़ा वर्ग के अधिकारों पर डाका डाल रही है, जिससे पिछड़ा वर्ग में आक्रोश बढ़ता जा रहा है, जो आने वाले समय में आंदोलन का रूप ले सकता है। राष्ट्रीय कुम्हार महासभा के प्रवक्ता गणेशीलाल वर्मा ने पिछड़ा वर्ग के लोगों की बैठक को संबोधित करते हुए यह बात कही। वर्मा ने कहा कि 2016 एवं 2018 की अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट ने 24 अगस्त 2021 को असंवैधानिक मानते हुए रद्द कर दिया था, लेकिन हरियाणा सरकार ने 17 नवंबर 2021 को एक बार फिर केवल आर्थिक आधार पर आरक्षण की अधिसूचना जारी कर पिछड़ा वर्ग पर कुठाराघात किया है।
केंद्र व हरियाणा सहित सभी राज्यों में सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी फैसले के अनुरूप भारत सरकार की 1993 की अधिसूचना द्वारा निर्धारित क्रीमीलेयर मानदंड लागू है, जिसके अनुसार संवैधानिक पदों पर नियुक्त व्यक्ति, सीधी भर्ती से क्लास-वन अधिकारी, दोनों पति-पत्नी क्लास दो अधिकारी, सीधी भर्ती से क्लास दो अधिकारी जो 40 साल से कम उम्र में क्लास वन में पदोन्नत हो, क्रीमीलेयर की श्रेणी में आता है, जबकि अन्य सभी कर्मचारी, किसान, कुशल श्रमिक, छोटे दुकानदार आदि जिनकी कुल आय आठ लाख से कम हो, वे नॉन क्रीमीलेयर श्रेणी में आते हैं, लेकिन हरियाणा सरकार ने पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को समाप्त करने की नीयत से 2016 और फिर 2018 की अधिसूचना द्वारा क्रीमीलेयर मानदंड के लिए सभी स्रोतों से प्राप्त कुल वार्षिक आय की सीमा छह: लाख रुपये कर दी, जिसमें वेतन आय, किसानों की कृषि आय तथा कुशल श्रमिकों की आय को भी शामिल कर दिया, जिससे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के बच्चे भी आरक्षण से वंचित हो गए। महासभा प्रवक्ता ने मांग की कि कहा कि सरकार पिछड़ा वर्ग पर अत्याचार करना बंद करे और यूजी मेडिकल में दाखिला प्रक्रिया को देखते हुए तुरंत सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप केंद्र की तर्ज पर 1995 वाली अधिसूचना जारी कर 2016 से पूर्व की स्थिति बहाल करे।