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बस हमारी तरह बोलते नहीं

जीवों की रोचक दुनिया
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बुद्धि केवल भाषा की मोहताज नहीं होती। प्रकृति के प्राणी—चुप, निर्बोध दिखते—दरअसल जटिल समझ, व्यवहार और संवेदना से भरे हैं। चाहे तोता हो या डॉल्फि़न, गिलहरी हो या कौवा—हर जीव अपने तरीके से सोचता, समझता और प्रतिक्रिया देता है। हमसे भिन्न, लेकिन बुद्धिमत्ता में कम नहीं।

के.पी.सिंह

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प्रकृति में सैकड़ों पशु-पक्षी समय-समय पर अपने व्यवहार से यह जताते रहते हैं कि वे भी इंसानों की तरह बुद्धिमत्ता रखते हैं।

अब इस जापानी तोते यूसूकी को ही लें। वह अपने पिंजरे से निकल भागने में सफल हो गया, मगर वह हमेशा के लिए कहीं नहीं गया, बल्कि कुछ दिनों बाद फिर से उड़कर अपने घर वापस आ गया। उसे अपने घर का पूरा पता अच्छी तरह से याद था। जिस दौरान वह अस्पताल में रहा, उसने अस्पताल के स्टाफ को कई गाने सुनाए।

यही हाल एक चतुर गिलहरी का भी रहा। हम देखते हैं कि मखमली पूंछ वाली गिलहरी मिट्टी को खोदकर उसमें दाने छिपाती है और फिर उस गड्ढे को ढक देती है। पांच में से एक बार वह सिर्फ ऐसा करने का अभिनय करती है। गिलहरी जमीन के भीतर दबे दानों को अपनी बुद्धिमानी से पहचानकर निकाल लेती है। इसके अलावा गिलहरी चीजें चुराकर खाने में भी चतुर होती है।

गिलहरी की तरह ही बंदर भी कुछ कम बुद्धिमान नहीं होते। ऐसा माना जाता है कि बंदरों का शब्दकोश काफी समृद्ध होता है। हाल ही में डिस्कवरी समाचार के एक लेख में बताया गया है कि कपि (नर वानर) का शब्दज्ञान अच्छा होता है। उनकी भाषा मनुष्य की भाषा से काफी मेल खाती है, लेकिन वे मनुष्य की तरह अपने विचारों की बेहतर ढंग से अभिव्यक्ति नहीं कर पाते।

व्हेल मछलियां भी बुद्धिमानी में किसी से पीछे नहीं हैं। वे बहुत अच्छा गाती हैं और अपने गानों की लय स्वयं तैयार करती हैं। हर साल नर व्हेल मछलियां एक जटिल, तीस मिनट की अवधि का गाना तैयार करती हैं। इस गाने की अपनी एक थीम होती है और यह गाना पिछले वर्ष की तुलना में पूरी तरह अलग होता है। यह उनकी एक वार्षिक प्रक्रिया होती है, जिससे व्हेल मछलियों की रचनात्मकता का पता चलता है।

इसी तरह, न्यूजीलैंड में एक बार एक डॉल्फिन मछली ने दो व्हेल मछलियों को संकट से उबारा, जिससे यह पता चला कि वे एक-दूसरे की मदद किस तरह करती हैं। जब दो व्हेल मछलियां तट पर आकर फंस गईं और वापस पानी में नहीं जा पा रही थीं, तब कुछ लोगों ने एक घंटे तक उन्हें पानी में वापस भेजने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सके। इसके बाद अचानक एक डॉल्फिन आयी, उसने तट पर व्हेल मछलियों के साथ संवाद स्थापित किया और उन्हें सुरक्षित पानी में वापस पहुंचने में सहायता की।

हाल ही में हुए विभिन्न सर्वेक्षणों से यह बात सामने आयी है कि नीलकंठ भी एक बुद्धिमान पक्षी होता है। नीलकंठ के दिमाग का आकार मटर के दाने जितना होता है, लेकिन इसकी गिनती बुद्धिमान पक्षियों में होती है। नीलकंठ की गर्दन पर छोटे-छोटे धब्बे होते हैं, जिन्हें शीशे में सिर्फ वही देख सकता है। नीलकंठ शीशे में खुद को देखकर अपनी पहचान कर सकता है। अभी तक माना जाता था कि केवल मनुष्य, नर वानर, हाथी और डॉल्फिन ही ऐसा कर सकते हैं। यानी, अपने आप को शीशे में पहचान सकना बुद्धिमत्ता की निशानी है। यही वजह है कि नीलकंठ इस विशेषता के कारण अद्भुत माने जाते हैं।

इसके अलावा, चिम्पैंज़ी भी ऐसा कर सकते हैं। यह खूबी इस बात का संकेत है कि उनका मस्तिष्क भी काफी विकसित होता है। हममें से जिन्होंने नीलकंठ के व्यवहार को बाग-बगीचों में देखा है, वे जानते हैं कि किस तरह नीलकंठ दूसरे छोटे पक्षियों के घोसलों को अपना बना लेते हैं, और कैसे वे दूसरे पक्षियों के घोंसलों में घुसकर उनकी चमकीली सजावटी चीजें चुराकर अपने घोसलों को सजाते हैं।

इसी तरह, कौवा भी विभिन्न वैज्ञानिकों के अनुसार बेहद बुद्धिमान होता है। वह अपनी गतिविधियों से अपने तेज दिमाग होने का परिचय कराता है। कौवा भोजन हासिल करने के लिए तरह-तरह की चालाकियां दिखाता है। वह भोजन इकट्ठा करने के लिए अपने साथियों के साथ दोस्ताना रिश्ते बनाता है, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर छीना-झपटी से भी पीछे नहीं हटता।

आमतौर पर किसी मंदबुद्धि के लिए ‘बर्ड ब्रेन’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन जब पक्षियों की तुलना जानवरों से की जाती है, तो पाया जाता है कि कई पक्षी जानवरों की तुलना में अधिक बुद्धिमान होते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण कौवा है।

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