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जहां है रस्क में रस और राहों में कहानियों के किस्से

देहरादून
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देहरादून केवल उत्तराखंड की राजधानी ही नहीं, बल्कि इतिहास, प्रकृति, शिक्षा और स्वाद का संगम है। शांत पहाड़ों की ओट में बसा यह शहर बेकरी की खुशबू, स्कूलों की प्रतिष्ठा और झरनों की ताजगी से भरपूर है।

‘देहरा देहरा दून, देहरा दून दून, देहरा देहरा दून, देहरा दून दून... मैनी रोड्स टेक यू देयर, मैनी डिफ्रेंट वेज..’ ब्रिटिश रॉक बैंड बीटल्स ने जॉर्ज हैरिसन के गीत को 1968 में आवाज देकर धूम मचा दी थी। गीत उस जमाने की दून की जिप्सी जीवनशैली को दर्शाता है। इसे देहरादून की तारीफ़ ही कहेंगे, क्योंकि इसके अलावा बीटल बैंड ने भारत के किसी अन्य शहर पर गीत नहीं गाया। उधर ‘स्कंद पुराण’ में, देहरादून को भगवान शिव के ‘केदार खंड’ के नाम से पुकारा गया है। है प्राचीन शहर। वहां आज भी अंग्रेजों के जमाने के बंगले कम नहीं हैं। बोगनवेलिया के फूलों से सजे बाग-बगीचे और शिवालिक पर्वत माला की ओट में जंगलों को छूते बंगलों के परिसर वाकई दिलकश हैं।

दून घाटी के बीचोंबीच बसा छोटा-सा शांत-सा शहर देहरादून उत्तराखंड की राजधानी है। उत्तर में शिवालिक पर्वत, पश्चिम में यमुना और पूरब में गंगा से घिरा है। देहरादून की गर्मियां दिल्ली जैसी गर्म नहीं हैं। मॉनसून के दौरान, शहर के ऊपर गरजते बादलों की बहार छा जाती है। देहरादून के सूर्यास्त को निहारना भी कम हसीन नहीं है। जबकि सर्दी के महीनों की ठिठुरन तो भूलाए नहीं भूलती। दून मानो हर मौसम में बुलाता है। और फिर, देहरादून देश के शीर्ष स्कूलों का घर है। दून स्कूल, वेलहम स्कूल फॉर गर्ल्स, वेलहम स्कूल फॉर बॉयज, होप टाउन गर्ल्स स्कूल वगैरह में देश-विदेश से छात्र-छात्राएं पढ़ने आते हैं।

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मॉडर्न दून लाइब्रेरी

सैकड़ों युवा इसमें बैठकर अध्ययन-अनुसंधान करते हैं, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। साल भर का सदस्यता शुल्क केवल 300 रुपये है, तीन मंजिला भवन में दो रीडिंग रूम, एक रेफरेंस रूम और 40 हजार से ज्यादा किताबें हैं।

देखने लायक बहुत कुछ

देहरादून के म्यूजियम विश्व विख्यात हैं। साइकिलिंग टूर शहर की सौगातों में शुमार है और नेचर वॉक के जरिए कुदरत को नजदीक से निहारने और महसूस करने का बखूब मौका मिलता है। ‘फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की सैर साइकिल पर सबसे बढ़िया होती है क्योंकि दिलरुबा माहौल को जानने का इससे बेहतर तरीका और नहीं है। यह फॉरेस्ट साइंस यानी वन विज्ञान की बारीकियों भरी दुनिया को जानने का जरिया है। इसके परिसर की शान ऐसी है कि बॉलीवुड की कई फ़िल्मों में दिखता रहता है। यही नहीं, एक और नामी म्यूजियम ‘इंडियन मिलिट्री अकेडमी’ का है, जिसे सैलानी दूर- दूर से देखने आते हैं।

देहरादून और आसपास पिकनिक के पुराने ठिकानों की भरमार है। गढ़ी कैंट इलाके में यमुना की सहायक टोंस नदी के किनारे शिव जी के टरकेश्वर महादेव मंदिर की बड़ी मान्यता है। सबसे खास है सहस्रधारा। शहर से केवल 16 किलोमीटर परे राजपुरा गांव में है। गंधक का झरना बहता है, जो औषधीय गुणों से भरपूर है। झरने तले नहाना त्वचा रोगों के लिए उत्तम बताया जाता है। पहाड़ी से गिरते- बहते जल को कुदरती तरीके से संचित किया गया है। यहीं एक पहाड़ी के भीतर कुदरतन तराशी छोटी-छोटी गुफाएं हैं। इनके भीतर जाएं, तो ऊपर से रिमझिम फुहारें तन-मन को आनंद से सराबोर कर देती हैं।

नामी बेकरी का शहर

देहरादून के करीब-करीब मध्य में घंटा घर स्थित है। छह मुखी है और आजादी से पहले से खड़ा है। शहर की चारों खास सड़कें—पलटन बाजार रोड, राजपुर रोड, चकराता रोड और हरिद्वार रोड, यहीं मिलती हैं। घंटा घर के आसपास सभी सड़कों पर पब्लिक यातायात के तौर पर ऑटो चलते हैं, जिन्हें ‘विक्रम’ कहते हैं। पुराने और बड़े बाजारों में पलटन बाजार खास है। देहरादून बासमती चावल के लिए मशहूर है। यह बाजार बासमती चावल, मसाले और ऊनी कपड़ों की दुकानों के लिए जाना जाता है। शहर की शानदार सड़कों में राजपुर रोड नम्बर वन है।

देहरादून जाएं, तो पुरानी सब्जी मंडी से सटे मोती बाजार की गली में ‘मामा जी कतलंबे छोले वाला’ की रेहड़ी पर जाकर, कतलंबे-छोले खाना तो बनता है। कुरमुरे-करारे कतलम्बे आलू-छोले-घिया के कोफ़्ते की मिक्स सब्जी, प्याज के राईदार अचार के संग पेश करते हैं। यह पारम्परिक मुल्तानी पकवान है, और पूरी-भठूरे से बिल्कुल हट कर हैं। चाइनीज, इंडियन और कॉन्टिनेंटल फूड के लिए सर्वश्रेष्ठ रेस्टोरेंट ‘कुमार’स’ है, तो उधर ‘मोती महल’ रेस्टोरेंट के भारतीय व्यंजनों की भी तारीफ़ है। एक अन्य सड़क लेटन रोड पर ‘युदुपी’ साउथ इंडियन रेस्टोरेंट का डोसा-इडली की क्या बात है।

देहरादून अपनी काबिल-ए-तारीफ बेकरी के लिए सारे देश में जाना जाता है। राजपुर रोड स्थित ‘एलोरा’स होमएड्स’ नाम की बेकरी शॉप 1953 से है और देहरादून की सबसे मशहूर व पुरानी है। इनके कुकीज, बिस्कुट और रस्क ही नहीं, देसी घी की टॉफियां सैलानी पैकेट के पैकेट खरीद-खरीद कर साथ ले जाते हैं। पलम केक तो कमाल के हैं। अखरोट-खजूर के केक भी खूब पसन्द किए जाते हैं। बटर-पिस्ता बिस्कुट और मिल्क रस्क भी देहरादून की सौगातें हैं। सरराइज बेकर्स, दून बेकरी और स्टैंडर्ड बेकरी भी पुरानी और खास हैं।

गुरुद्वारा पांवटा साहिब

देहरादून घूमने जाने वाले ज्यादातर लोग गुरुद्वारा पांवटा साहिब में जरूर जाना चाहते हैं। गुरुद्वारा पांवटा साहिब देहरादून से करीब 44 किलोमीटर परे है। यमुना के तट पर है और देहरादून से नजदीक होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश की सरहद में है। सिख इतिहास के मुताबिक मुगल बादशाह द्वारा गुरु तेग बहादुर जी का सिर कलम करने के बाद, सिख पंथ के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी यहीं रहे थे। अमृतसर, दमदमा और आनन्दपुर साहिब की तरह पांवटा साहिब भी सिख धर्म का पूज्यनीय गुरुद्वारा है।

इतिहास में दर्ज है कि 17वीं सदी के दौरान, मुगल बादशाह औरंगजेब को भनक लग गई कि उनका बड़ा भाई दारा शिकोह सिखों के सातवें गुरु हर राय जी की शरण में गया हुआ है। बादशाह के आग्रह पर, गुरु हर राय जी ने अपने बड़े बेटे राम राय को सारी जानकारी देने दिल्ली जाने को कहा। राम राय ने इंकार कर दिया, तो गुरु ने उसे बेदखल कर दिया। फिर राम राय ने दून घाटी में अपना डेरा डाल लिया। तभी से पूरा इलाका ‘डेरा’ से बिगड़ते-बिगड़ते ‘देहरा’ यानी देहरादून कहलाने लगा। यहीं झंडा मोहल्ला में राम राय जी का गुरुद्वारा है।

दूरी और आसपास

देहरादून उत्तराखंड की राजधानी है। दून घाटी के बीचोंबीच बसा है। दिल्ली से देहरादून की सड़क दूरी करीब 242 किलोमीटर है। सड़क से करीब 6 घंटे में पहुंचते हैं। सड़क से बेहतर शताब्दी ट्रेन रहती है। ट्रेन से पहुंचने में 5 घंटे लगते हैं। जबकि उड़ान से 50 मिनट में नजदीकी एयरपोर्ट जॉली ग्रांट उतारते हैं। आगे 45 मिनट सड़क सफ़र से देहरादून

पहुंचते हैं।

आसपास ज़रा-ज़रा दूरी पर सैर-सपाटे के एक से एक शहर हैं। हरिद्वार महज 52 किलोमीटर दूर है, तो ऋषिकेश तो और भी कम-करीब 45 किलोमीटर ही। करीब 37 किलोमीटर के टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी रास्ते तय कर पहाड़ों की रानी मसूरी में होते हैं। अगले साल तक देहरादून से मसूरी आने-जाने का सफर महज बीसेक मिनट में तय होने की संभावना है। देश की सबसे लंबे रोपवे का निर्माण जारी है। इससे एक दिशा में हर घंटे 1,300 यात्री सफर कर सकेंगे। और ज़रा ज्यादा दूर 95 किलोमीटर की सड़क दूरी पर एक और दिलकश ठिकाना चकराता है।

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