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जहां देवता रथ से आते हैं भक्तों से मिलने

चिथैरे उत्सव
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दक्षिण भारत के सबसे भव्य सांस्कृतिक आयोजनों में शामिल मदुरै का चिथैरे उत्सव, मीनाक्षी और सुंदरेश के दिव्य विवाह का प्रतीक है। अप्रैल-मई में आयोजित यह उत्सव रथ यात्राओं, धार्मिक अनुष्ठानों और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से सजीव हो उठता है। श्रद्धा, परंपरा और उमंग का यह मेल देश-विदेश के हजारों भक्तों को मदुरै खींच लाता है।

धीरज बसाक

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अगर तमिलनाडु के किसी प्रतिनिधि सांस्कृतिक उत्सव की बात करें तो निश्चित रूप से वह मदुरै का चिथैरे उत्सव है। आमतौर पर अप्रैल और मई महीनों के बीच मनाया जाने वाला यह उत्सव मीनाक्षी मंदिर में आयोजित होता है और यह देवी मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्व के विवाह का भव्य प्रतीक है, जिसमें पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा की ही तरह की भव्य रथ यात्रा निकलती है। इस उत्सव में कई दिनों तक समा बांध देने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं। भगवान शिव-पार्वती के इस विवाह उत्सव में भगवान विष्णु के कल्लाझगर (अलागर) अवतार की भी कुछ झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं, खासकर उनकी वैगई नदी में प्रवेश की घटनाओं को।

इस साल मदुरै का यह चिथैरे उत्सव 29 अप्रैल से शुरू होकर 12 मई तक चलेगा। सबसे पहले दिन यानी 29 अप्रैल को उत्सवों का आरंभ करने के लिए ध्वजारोहण या कोडियत्रम होगा, जो कि मीनाक्षी मंदिर में उत्सवों के शुरुआत का प्रतीक होता है। इसके तहत ध्वज फहराया जाता है। इसके बाद 6 मई को देवी मीनाक्षी का राज्याभिषेक होता है, जिसे पट्टाभिषेकम कहा जाता है। इस दिन उन्हें विधिवत मदुरै की रानी के रूप में अभिषेकित किया जाता है। 8 मई को मीनाक्षी (देवी पार्वती का एक रूप) और सुंदरेश्वर (भगवान शिव) का दिव्य विवाह सम्पन्न होता है, जिसे थिरूकलायनम कहते हैं। इसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इसके बाद 9 मई को रथ यात्रा या थेरोट्टम शुरू होती है, जिसमें देवी और भगवान के विशाल रथों को भक्तगण वैसे ही खींचते हैं जैसे पुरी में भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के रथ खींचे जाते हैं। इस रथ यात्रा में भाग लेने के लिए सिर्फ तमिलनाडु से ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं और रथ खींचते हैं।

अंतिम दिन यानी 12 मई को कल्लाझगर यानी भगवान विष्णु का वैगई नदी में प्रवेश होता है। इसी के साथ ही सालभर से इंतजार किये जा रहे मदुरै के चिथैरे उत्सव का समापन होता है। उत्तर भारत के लोगों को इस महत्वपूर्ण उत्सव को उसी तरह के उत्सव के रूप में लेना चाहिए, जिस तरह पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है या कई जगहों में गंगा दशहरा के दिन विभिन्न देवी-देवताओं की झांकियां निकलती हैं। चिथैरे उत्सव उसी प्रकार का एक भव्य आयोजन है, जिसमें धार्मिक अनुष्ठान, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सामाजिक सहभागिता का संगम होता है। इस उत्सव में अगर आप देश के किसी भी हिस्से से भाग लेने के लिए मदुरै जाना चाहते हैं तो उत्सव के बहुत पहले ही अग्रिम बुकिंग करा ले।

इस उत्सव में अच्छी तरह से भाग लेना चाहते हैं तो मीनाक्षी मंदिर, वैगई नदी के आसपास या अलागर कोविल के पास के होटलों को चुनें, वहां से हर दिन उत्सव में भाग लेने के लिए बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है, वरना इस शहर में उत्सव के पखवाड़े में इस कद्र भीड़ होती है कि पैर पर पैर पड़ता है। आमतौर पर यहां मार्च के आखिरी सप्ताह और अप्रैल के पहले सप्ताह के बीच 90 प्रतिशत से ज्यादा आवास की बुकिंग हो जाती है। यहां होटलों के अलावा होम स्टे और बड़ी संख्या में गेस्ट हाउस बने हुए हैं। जहां तक मदुरै पहुंचने की बात है तो यह देश के कई बड़े शहरों मसलन चेन्नई, बंगलुरु और दिल्ली से सीधे हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। रेलमार्ग से भी यह देश के प्रमुख शहरों से सीधे जुड़ा है, जबकि चेन्नई से मदुरै तक कार या बस से भी बहुत आसानी से यात्रा की जा सकती है। चूंकि अप्रैल और मई के महीनों मंे यहां काफी ज्यादा गर्मी पड़ती है। इसलिए अगर ठंडी जगहों से आ रहे हों तो इधर बहुत कपड़े लेकर न आए, आमतौर पर 40 डिग्री या इससे ज्यादा तापमान रहता है। ऐसे में सूती कपड़े, सनस्क्रीन, पानी की बोतल और प्राथमिक चिकित्सा किट का साथ होना जरूरी होता है। एक अच्छा-सा रेन कोट और छाता होना भी जरूरी है।

यहां आपको धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान में सीधे सरीक होने का रोमांचक अनुभव तो मिलता ही है, साथ में यहां कई तरह के व्यंजन और पेय पदार्थ भी खाने पीने को मिलते हैं। जिगरथंडा एक स्थानीय ठंडा पेय है, जो यहां खूब पीया जाता है। साथ ही दक्षिण भारत के कुछ मशहूर व्यंजन जैसे इडियप्पम और परोट्टा का भी यहां आनंद ले सकते हैं। साथ ही यहां के स्थानीय बाजार पुथु मंडपम और ईस्ट मासी स्ट्रीट पर खरीदारी कर सकते हैं। इ.रि.से.

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