कोरोना काल में भले ही बॉलीवुड में सन्नाटा सा पसरा दिख रहा हो, लेकिन सियासत की दुनिया में खूब चहल-पहल है। वर्तमान में दोनों गलियारों-बॉलीवुड और राजनीति की कहानी भले ही विपरीत दिख रही हो, लेकिन बतौर फिल्मी विषय बॉलीवुड में ‘राजनीति’ खूब चमकी है, कुछ किंतु-परंतु के साथ ..
केवल तिवारी/यशपाल वालिया
इस वक्त देश में माहौल चुनाव का है। यानी राजनीति का चरम। कोरोना काल में बड़ी-बड़ी रैलियों की जगह या तो डोर टू डोर कैंपेन चल रहा है या फिर सोशल मीडिया के जरिये प्रचार-प्रसार। ऐसे में अगर बात करें बॉलीवुड की तो यहां भी राजनीति विषय को खूब पसंद किया गया है। सर्वविदित है कि जनमानस पर फिल्में गहरा असर डालती हैं। यह असर इसलिए कि कहीं न कहीं फिल्मों के सब्जेक्ट हमारे-आपके बीच से ही तय होते हैं। राजनीति भी इससे अछूती नहीं। सियासत से जुड़ी अच्छी-बुरी घटनाओं, राजनेता और व्यवस्था-अव्यवस्था पर बॉलीवुड में खूब फिल्में बनी हैं। बॉलीवुड ही क्यों इसके अलावा भी जैसे दक्षिण भारतीय फिल्मों और अन्य भाषाओं में राजनीतिक मसलों पर खूब फिल्में बनीं। कहीं-कहीं तो राजनीतिक हस्तियों पर गीत भी लिखे और गाये गए। हालांकि इन फिल्मों की कहानियों के काल्पनिक होने का दावा किया गया, लेकिन इस दावे के बावजूद विवाद और आरोपों का इनसे नाता बना रहा। आइये बात करते हैं राजनीति विषय पर बनीं कुछ बॉलीवुड फिल्मों की-
राम मुखर्जी द्वारा निर्देशित ‘लीडर’ पॉलिटिकल ड्रामा फिल्म थी जो साल 1964 में रिलीज हुई थी। इसी फिल्म का गीत था-‘अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं।’ आम चुनावों में धनपति किस तरह अपना डमी प्रत्याशी खड़ा करते हैं और राष्ट्र के नाम सर्वस्व न्योछावर करने वाले को कैसे रास्ते से हटाते हैं, इसका शानदार फिल्मांकन किया गया है लीडर के कथ्य में। आजादी के बाद बनी यह मूवी शशाधर मुखर्जी ने प्रोड्यूस की थी। इसमें दिलीप कुमार, वैजयंती माला और जयंत ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं। इसी कड़ी में वर्ष 1975 में गुलजार द्वारा निर्देशित फिल्म ‘आंधी’ आयी। राजनीतिक गलियारों में चर्चा में रही इस फिल्म के गीत भी खूब पसंद किये गये। इसमें आरडी बर्मन का संगीत और किशोर-लता की जोड़ी की आवाज़ थी। इनके अलावा यह फिल्म एक और वजह से चर्चित बनी, वह थी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन की कुछ घटनाओं का इस फिल्म के साथ साम्य। इस मूवी का कांग्रेस ने विरोध किया। रिलीज तो हो गयी, लेकिन कुछ महीने बाद बैन कर दी गयी। इसके बाद जनता पार्टी की सरकार आयी तो इसे फिर रिलीज किया गया। इस फिल्म में लीड रोल में थे सुचित्रा सेन और संजीव कुमार। इस फिल्म को बेस्ट फिल्म का फिल्म फेयर अवार्ड मिला। आंधी के कुछ साल बाद फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ आयी जो विवादों में रही। इसकी कहानी के जरिये राजनीति पर करारा व्यंग्य किया गया। इसके निर्देशक अमृत नहाटा थे जो सांसद भी रहे। इमरजेंसी के बाद हुए चुनावों में यह फिल्म बड़ा मुद्दा बनी। साल 1974 में अमृत नाहटा द्वारा बनाई गई इस फिल्म पर 1975 में रोक लगा दी गई। साल 1977 में यह दोबारा बनी जिसमें राज किरण, सुरेखा सीकरी और शबाना आजमी मुख्य भूमिकाओं में थे। सिलसिला थमा नहीं और वर्ष 1984 में रिलीज हुई फिल्म ‘आज का एमएलए’। इसमें राजेश खन्ना और शबाना आजमी ने अभिनय किया। यह नारायण राव दसारी के निर्देशन में बनी थी। नाम के अनुरूप कहानी में राजनीतिक नेतृत्व व सिस्टम की असलियत दिखाई गयी। वहीं साल 1993-94 में दर्शकों के समक्ष आयी फिल्म ‘सरदार’ को केतन मेहता ने निर्देशित किया था। इसकी कहानी महान स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्र के भौगोलिक एकीकरण के नायक सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन पर बेस्ड है। फिल्म में लौहपुरुष पटेल के आज़ादी की लड़ाई में योगदान और भारतीय राजनीति में उनकी भूमिका को विस्तार से उतारा गया है। परेश रावल ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई थी। सियासत पर बनी फिल्मों की लिस्ट बिना ‘नायक’ अधूरी ही होगी। नायक आमतौर पर सभी ने देखी होगी। कई तो सिस्टम सुधारने के लिए इसे देख जोश में आये होंगे। एस. शंकर द्वारा निर्देशित यह फिल्म राजनीति समेत व्यवस्था के भ्रष्टाचार, पैंतरेबाजी को जनता के सामने लाती है। यह फिल्म साल 2001 में रिलीज़ हुई थी। अनिल कपूर, अमरीश पुरी व परेश रावल ने इसमें दमदार भूमिकाएं निभायीं। एक जर्नलिस्ट इंटरव्यू के दौरान मुख्यमंत्री की चुनौती स्वीकार करके एक दिन के लिए सीएम बन जाता है। वह उस एक ही दिन में इस तरह से एक्शन मोड में काम करता है कि जनता को लगता है कि व्यवस्था के जंग को किसी ने साफ करने की कोशिश की है। उसे सीएम बनाने की मांग उठती है। लेकिन उस एक दिन के बाद उस जर्नलिस्ट को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। नये चुनाव में वह मुख्यमंत्री बनता है। लंबे संघर्ष के बाद अंत में सच की जीत होती है। सियासत व सियासत दान निर्देशकों व दर्शकों के प्रिय विषय बने रहे। ऐसे में साल 2003 में रिलीज़ हुई थी मधुर भंडारकर निर्देशित फिल्म ‘सत्ता।’ सियासत के जो पक्ष जनता से छुपा लिये जाते हैं, इस फिल्म में उन्हीं पहलुओं को उजागर किया गया है। कहानी राजनीति में भ्रष्ट नेताओं, अंडरवर्ल्ड, बिजनेसमैन और भ्रष्ट पुलिस कर्मियों के नैक्सस का पर्दाफाश करती है। फिल्म की कहानी में एक लड़की अनुराधा नौकरी की तलाश में दिल्ली से मुंबई आती है। उसकी मुलाकत होती है विवेक चौधरी से जो जल्द ही मुख्यमंत्री बन जाता है। दोनों में प्यार पनपता है और फिर शादी होती है। इसके बाद अनुराधा के पति को मर्डर केस में जेल होती है। उसे राजनीति में जाना पड़ता है जहां वह व्यवस्था, समाज की असलियत से दो-चार होती है। रवीना टंडन, अतुल कुलकर्णी व गोविंद नामदेव इस फिल्म के मुख्य सितारे हैं। इसी फेहरिस्त में ‘सरकार’ नामक मूवी है जो पॉलिटिकल क्राइम थ्रिलर थी व महानायक अमिताभ बच्चन अभिनीत। यह साल 2005 में बड़े पर्दे पर उतरी। इसमें एक प्रभावशाली व्यक्ति सरकार पर एक राजनेता के मर्डर का झूठा इल्जाम लगता है व जेल होती है। बाद में उसका बेटा उसकी जगह लेता है। इसका निर्देशन रामगोपाल वर्मा ने किया था। बाद में इसका सीक्वल ‘सरकार राज’ भी बना। इसी लिस्ट में अगला नाम प्रकाश झा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘राजनीति’ का है जो एक पारिवारिक राजनीति ड्रामा फिल्म है। साल 2010 में रिलीज इस मूवी में रणबीर कपूर, अर्जुन रामपाल, नाना पाटेकर, मनोज वाजपेयी और कटरीना कैफ जैसे कई बड़े कलाकार हैं। कहानी में एक राजनीतिक परिवार का लड़का यूएस में पढ़ रहा है। राजनीति से उसका कोई लेना-देना नहीं। लेकिन परिस्थितिवश उसे भारत लौटना पड़ता है। वह युवक अनमना होते हुए भी राजनीति में सक्रिय होता है और यहीं से शुरू होती है चालों-कुचालों की पॉलिटिक्स। इसी तरह पीपली लाइव भी पॉलिटिकल ज़ोनर की फिल्म है। व्यवस्था में किसान के जीवन की कोई कद्र नहीं, इसी थीम पर बनी है 2010 में प्रदर्शित फिल्म पीपली लाइव। हंसाने वाली प्रकृति की इसकी कहानी में व्यंग्य गहरा छिपा है। फिल्म में एक किसान की आत्महत्या पर राजनीति होती है। सरकार उस किसान को मुआवज़ा देने से कैसे बचती फिरती है यह स्टोरी में है। इसके निर्माता हैं आमिर खान, लेखन और निर्देशन अनुषा रिज़वी का है। फिल्म में रघुवीर यादव, नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी, मलाइका शेनौए और कई नये कलाकारों ने अभिनय किया।
साल 2016 में बनी डाक्युमेंट्री फिल्म एन इनसिग्नीफिकेंट मैन भी सियासी सूची में है। यह फिल्म खुशबू रांका और विनय शुक्ला द्वारा निर्देशित है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के बाद अस्तित्व में आयी आम आदमी पार्टी की विकास यात्रा, सत्ता प्राप्ति और दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जीवन पर यह केंद्रित है। इसे नवंबर 2017 में रिलीज किया गया। आनंद गांधी इसके सह-निर्माता हैं। और अब जिक्र करें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन, कार्यों को लेकर बनी ओमंग कुमार द्वारा निर्देशित मूवी का। फिल्म पीएम नरेंद्र मोदी साल 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के महज एक दिन बाद रिलीज हुई। पहले इसे चुनावों के दौरान रिलीज किया जा रहा था, लेकिन विपक्ष ने इसका विरोध किया कि आचार संहिता लागू है। इसलिए तत्काल रिलीज रोक दी गयी और परिणाम आते ही इस फिल्म को रिलीज किया गया। इस फिल्म में अभिनेता विवेक ओबेरॉय ने पीएम नरेंद्र मोदी का किरदार निभाया। बॉलीवुड की राजनीति आधारित फिल्मों में ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ भी प्रमुख है। इसकी कहानी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राजनीतिक जीवन की घटनाओं के साथ साम्य रखती है। यह मूवी 2019 में रिलीज हुई। उनके मीडिया सलाहकार की किताब पर आधारित इस फिल्म को लेकर विवाद के स्वर भी उठे। अनुपम खेर ने इस फिल्म में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का किरदार निभाया था।
बॉलीवुड से इतर भी…
भारतीय राजनीति पर बनी फिल्मों का किस्सा हॉलीवुड मूवी गांधी के जिक्र के बिना अधूरा ही कहा जाएगा बेशक कुछ लोग इसे खांटी राजनीतिक मूवी न भी मानें। यह फिल्म साल 1982 में यूके, अमेरिका व भारत में रिलीज हुई जो राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी के जीवन को आधार बनाकर निर्मित की गयी। अहिंसक आंदोलन के नेता के जीवन, कार्यों और फलसफे पर बनी इस मूवी का निर्देशन रिचर्ड एटनबरो द्वारा किया गया। इसमें बेन किंग्सले गांधी बने वहीं रोहिणी हट्टंगड़ी कस्तूरबा की भूमिका में थीं। यह फिल्म भारतीय और ब्रिटेन की फ़िल्म निर्माता कंपनियों द्वारा मिलकर बनायी गयी थी व हिंदी में डबिंग करके दर्शकों तक पहुंचाई। बड़े बजट की इस फिल्म में भारतीय सितारों के अलावा विदेशी स्टार भी चमचमाये। इसके अलावा बॉलीवुड से इतर बनीं भारतीय पॉलिटिकल फिल्मों में ‘थलाईवी’ का नाम न लें तो भूल ही कही जाएगी। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्व़ जे जयललिता के जीवन पर केन्द्रित निर्देशक विजय की इस फिल्म में पर्दे पर दिखीं अभिनेत्री कंगना रणौत। यह जयललिता के अभिनय से राजनीति में जाने, छाने और उतार-चढ़ाव की कहानी है। थलाइवी’ हिंदी, तमिल और तेलुगु में बनी। इसकी कहानी में अम्मा या जयललिता की सियासी जिंदगी में उनके विरुद्ध कथित षड्यंत्रों, विधानसभा में हाथापाई आदि शामिल हैं।
राजनीति में चमके कई सितारे सिनेमा और राजनीति का रिश्ता एकतरफा नहीं। फिल्म बनाने वालों ने राजनीति से कहानियां, पात्र लिये तो भारतीय राजनीति ने भी अभिनेता-अभिनेत्रियाें काे अपनी ओर खींचा। कुछ पार्टियों ने शामिल किये तो कुछ ने पार्टियां ही बना लीं। कई सियासत के शिखर पर पहुंचे। सांसद, विधायक व मंत्री बनकर भी बहुतेरों ने सेवा-सियासत की। कई प्रयोग के तौर पर आये और टिके नहीं। राजेश खन्ना, सुनील दत्त, अमिताभ बच्चन, एमजीआर और जयललिता, विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, जया बच्चन, जयप्रदा, शत्रुघ्न सिन्हा, सनी देओल आदि। यहां सितारों की फेहरिस्त और भी लंबी है।