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पिथौरागढ़ के वर्षा-देवता की पनाह

मोस्टामानू
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उत्तराखंडी पर्वतों की गोद में बसा मोस्टामानू मंदिर एक अद्भुत तीर्थ है, जहां वर्षा-देवता की लोक-श्रद्धा, चमत्कारी पत्थर और ऋषि पंचमी मेला भक्तों को शांति प्रदान करते हैं।

यूं तो देश-दुनिया में ऐसे तीर्थस्थलों की कमी नहीं है जहां भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, लेकिन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ शहर के पास स्थित मोस्टामानू को खुशहाली और समृद्धि देने वाले देवता के रूप में माना जाता है। मोस्टामानू को जल और वर्षा का देवता भी कहा जाता है। पूरे क्षेत्र में इन्हें वर्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है तथा माना जाता है कि यह इंद्र के पुत्र हैं और माता कालिका इनकी माता हैं। मान्यता है कि मोस्टामानू को इंद्र ने भूलोक में अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया है ताकि वह अपना भोग प्राप्त कर सकें।

मोस्टामानू मंदिर उत्तराखंड के महत्वपूर्ण दिव्य स्थलों में शुमार है। वर्षभर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, किन्तु सावन‑भादों में ये संख्या बढ़ जाती है, क्योंकि वर्षा के दिनों में पूजा‑अर्चना का विशेष महत्व होता है। यह मंदिर पिथौरागढ़ से लगभग सात किलोमीटर दूर, किले के निकट स्थित है। मंदिर परिसर से पिथौरागढ़ की नैनीसैनी हवाई पट्टी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यहां आने वाले भक्त न केवल असीम शांति का अनुभव करते हैं, बल्कि अपनी इच्छा मोस्टा देवता से कहते हैं और उन्हें विश्वास है कि वह पूरी होती है।

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स्थानीय निवासियों के अनुसार, मोस्टामानू मूलतः एक संत थे, जिनका नाम मुस्तमानव था। ये नेपाल से भारत आए थे और मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मान्यता के आधार पर यह मंदिर संभवतः काठमांडू के बाबा पशुपतिनाथ मंदिर की प्रतिकृति प्रतीत होता है। मंदिर का द्वार आकर्षक है और अंदर शिव परिवार की मूर्तियां स्थापित हैं। एक विशेष तथ्य यह है कि मंदिर में एक पत्थर रखा है, जिसे श्रद्धापूर्वक शिवजी को याद करते हुए उठाया जा सकता है; अन्यथा उसे कोई भी शारीरिक बल से नहीं उठा पाता। यह पत्थर बैजनाथ मंदिर के पत्थर से तुलनीय बताया जाता है, जिसे उठाने के लिए शिव की प्रसन्नता आवश्यक होती है।

उत्तराखंड की सोर घाटी की इस देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक वर्ष ऋषि पंचमी पर तीन दिवसीय मेला आयोजित होता है (कभी‑कभी दो दिन भी)। इस दौरान मोस्टा देवता का डोला हर्ष एवं श्रद्धा के साथ निकाला जाता है। कहा जाता है कि इस मेले के दौरान मोस्टा देवता अवतरित होते हैं। स्थानीय निवासियों का यह भी कथन है कि मोस्टा देवता के साथ चौंसठ योगिनी, बावन वीर और आठ सहस्र मशान रहते हैं, और एक तूफान भुंटनी भी इनके वश में है।

मान्यता है कि यदि यह देवता प्रसन्न नहीं होते, तो अनिष्ट होने में देर नहीं लगती। मोस्टा को क्षेत्र का रक्षक देवता माना जाता है। जब किसी घर में संतान होती है या नवविवाहित जोड़ी आशीर्वाद के लिए यहां आती है, तब मंदिर की देखरेख स्थानीय सेना के जवान करते हैं। श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर घंटी अर्पित करके श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग के साथ‑साथ एक ट्रैकिंग मार्ग भी है, जो जंगल और खंडहरों से होकर गुजरता है। यह मार्ग रोमांचक होने के साथ‑साथ खतरनाक भी है, क्योंकि इसमें जोंक और अन्य जीवों का खतरा रहता है।

कैसे जाएं और कहां रुकें

पिथौरागढ़ उस मार्ग में आता है जिससे आदि कैलास के लिए मार्ग निकलता है। यहां तक पहुंचने के लिए आप काठगोदाम या टनकपुर रेलमार्ग का इस्तेमाल कर सकते हैं या दिल्ली से सीधे बस सेवा का लाभ उठा सकते हैं। टनकपुर से दूरी लगभग 140 किलोमीटर है। आसपास पंतनगर हवाई पट्टी है, जो लगभग 240 किलोमीटर दूर है। सड़क मार्ग अच्छी स्थिति में है, इसलिए वाहन से भी पहुंचा जा सकता है। रुकने के लिए सभी दर्जों के होटल व होम‑स्टे उपलब्ध हैं। गर्मियों में वन‑वृष्टि की संभावना के कारण थोड़े गर्म कपड़े साथ रखना उचित रहता है।

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