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सौराष्ट्र का सांस्कृतिक हृदय

ऐतिहासिक जामनगर
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जामनगर, गुजरात का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर है, जो शाही जडेजा वंश से जुड़ा हुआ है। यहां के अद्भुत मंदिर, वास्तुकला और प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यह शहर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसके ऐतिहासिक स्थल और पर्यावरणीय धरोहर भी विशेष रूप से पहचाने जाते हैं।

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राजेंद्र कुमार शर्मा

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र का एक प्रमुख शहर है जामनगर, जो अपने शानदार इतिहास, क्रिकेट के क्षेत्र में योगदान और एशिया की सबसे बड़ी पेट्रो रिफाइनरी के लिए प्रसिद्ध है। बहुत समय पहले, जामनगर अरब सागर तट के नजदीक होने के कारण, एक मछली व्यवसाय के शहर के रूप में और कपड़ों के रंगने की टाई-डाई और बांधनी की पारंपरिक तकनीकों का एक प्रसिद्ध केंद्र रहा है।

जामनगर का राजसी इतिहास

जामनगर राजघराने का इतिहास जडेजा वंश के राजा जाम रावल से जुड़ा हुआ है। जामनगर शहर की स्थापना शासक जाम रावल ने अपनी राजधानी के रूप में 1540 ई. में की थी, जो रंगमती और नागमती नदियों के संगम पर बसा था। इसके राजसी इतिहास के कारण इसे जामों का शहर कहा गया। जाम शब्द का अर्थ राजा या सरदार होता है। इस खिताब का सबसे पहले उपयोग जाम रावलजी जडेजा ने किया था। इस शहर पर भगवान कृष्ण के यादव वंश के वंशज जडेजा राजपूत राजाओं का शासन रहा है।

राजवंश क्रिकेट से नजदीकियां

प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेटर और जामनगर के भावी जाम अजय जडेजा जामनगर शाही परिवार से ही संबंध रखते हैं। प्रतिष्ठित दलीप ट्रॉफी और रणजी ट्रॉफी का नाम भी कुमार दलीपसिंह और कुमार रंजीत सिंह के नाम पर रखा गया है जिनका संबंध जडेजा वंश से ही रहा है। क्रिकेटर अजय जडेजा के पिता दौलतसिंह जडेजा, वर्तमान जाम साहेब शत्रुसाल्य सिंह के चचेरे भाई हैं।

औद्योगिक और पर्यटन स्थल

जामनगर खिजड़ा पक्षी अभयारण्य, गागा वन्यजीव अभयारण्य और पीटर स्कॉट नेचर पार्क पारिस्थितिकी तंत्र के लिए प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त संगमरमर से निर्मित जैन मंदिर, लाखोटा टॉवर लाखोटा झील, रंजीतसागर बांध, प्रताप विलास पैलेस, रतन बाई मस्जिद, बेदी बंदरगाह आदि जामनगर के अन्य प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। भारत का एकमात्र समुद्री अभयारण्य, मरीन नेशनल पार्क, जामनगर के पास, पिरोटन के कोरल रीफ द्वीप पर स्थित है।

44 मंदिर का समूह

बद्री केदारनाथ महादेव मंदिर के पुजारी के अनुसार जामनगर के जडेजा शासकों द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं को समर्पित 44 मंदिरों का निर्माण करीब 200 वर्षों पूर्व करवाया गया था। ये मंदिर भगवान शिव, भगवान कृष्ण, भगवान राम सहित अन्य हिन्दू देवी-देवताओं को समर्पित है। इन्हीं में से दो मंदिर, टाऊन हॉल सर्किल के नजदीक ही स्थित हैं जिनमें से एक बद्री केदारनाथ महादेव तथा दूसरा मंदिर नीलकंठ महादेव का मंदिर है।

बेहतरीन वास्तुकला के मंदिर

बद्री केदारनाथ महादेव मंदिर का प्रवेश द्वार इतिहास की सुंदर वास्तुकला को संजोए हुए है। बताते है महाराजा कुमार रणजीत सिंह यूरोपीय वास्तुकला से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने शहर को यूरोपीय शैली के अनुसार फिर से डिजाइन किया करवाया था, जिसकी छाप इन मंदिरों पर भी दिखाई देती है। मंदिर के मुख्य द्वार पर उड़ते हुए फरिश्ते, यूरोपीय वास्तुकला का शानदार ऐतिहासिक अवशेष हैं।

शिल्पियों का मूर्ति कौशल

मंदिर के गर्भ गृह तक पहुंचने के लिए दो खूबसूरत लकड़ी पर नक्काशी के दरवाजों से गुजर कर, नक्काशीदार सफेद धातु के दरवाजे को पार करके, शिवलिंग के दर्शन करने को मिलते है। शिवलिंग के ठीक सामने नंदी महाराज विद्यमान है। महादेव मंदिर के अंदर भगवान हनुमान की मूर्तियां मंदिर के मुख्य द्वार के दोनों ओर ऐसे स्थित है, मानों वे महादेव के द्वारपाल बनकर, मंदिर को सुरक्षा प्रदान कर रहे हों। दोनों ही मंदिर एक ही बड़े से परकोटे के भीतर स्थित है। इस मंदिर के बड़े-बड़े नक्काशीदार स्तंभों, जिन पर देवी-देवताओं की मूर्तियां को बड़ी बारीकी और सुंदरता से उकेरा गया है, जो मंदिर निर्माण के शिल्पियों के मूर्ति कौशल का जीता-जागता उदाहरण है।

धरोहर सहेजने की जरूरत

हिंदू देवी-देवताओं के इन ऐतिहासिक मंदिरों को बचाने की कवायद करना जरूरी है। ये मंदिर धार्मिक महत्व के साथ-साथ ऐतिहासिक और अपनी वास्तुकला की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। चित्र लेखक

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