सितारों की मनमानी से फिल्मों को हानि
बड़ी हिंदी फिल्मों की विफलता सोचने पर विवश करती है। कई फिल्में फ्लॉप रहीं। बड़े हीरो की मनमानी इसकी वजह है। वे निर्देशन, संगीत में अपने लोग ले आते हैं। टैलेंटेड लोग आ नहीं पाते व क्रिएटिव पक्ष कमजोर हो जाता है। एक्टर्स की अधिक फीस, महंगे टिकट भी हानिकारक हैं।
असीम चक्रवर्ती
इन दिनों बॉलीवुड की हालत वाकई में बहुत खराब है। हाल ही में कई बड़ी फिल्मों ने सिने जगत को हताश किया। इन दिनों फिल्मों की लगातार विफलता ने बॉलीवुड की चूलें हिला दीं। वैसे इसके कई कारण हैं। फिल्म जगत के शुभचिंतक मानते हैं, इसकी सबसे बड़ी वजह सितारे हैं। वे चाहें तो हर फिल्म का भविष्य संवार सकते हैं।
आमिर ने की नई शुरुआत
नए दौर के हीरो में आमिर को भरोसेमंद एक्टर माना गया है। पिछले दिनों अपनी एक-दो फिल्मों की विफलता से उन्होंने सबक लिया है। पर अब उनकी एक फिल्म ‘सितारे ज़मीन पर ’का रिस्पॉन्स संतोषजनक रहा है। इसमें उनके अलावा सारे कलाकार नए थे। आमिर ने बतौर प्रोड्यूसर इसका बजट मात्र बीस करोड़ रखा व फिल्म 100 करोड़ कमाई कर गई।
‘मां’ का भरोसा
दूसरी ओर, अभिनेत्री काजोल की मेन लीड से सजी अजय देवगन बैनर की हालिया रिलीज फिल्म ‘मां ’ ने ठीक-ठाक बिजनेस कर राहत दी है। खासकर, जब बॉलीवुड में फ्लॉप फिल्मों का पतझड़ चल रहा है। वैसे 25 करोड़ में बनी इस फिल्म का बजट स्पेशल इफेक्ट्स की वजह से बढ़ा है। पर ट्रेड पंडित मानते हैं कि इसकी कमाई 75 करोड़ तक जाएगी।
सितारों की पहल जरूरी
सर्वे बताते हैं कि सितारों की बेमतलब दखलअंदाजी से फिल्म के हर पक्ष को गहरा झटका लगा। तकनीकी पक्ष को जाने दें, तो आज फिल्म के हर क्रिएटिव पक्ष को अपनी सलाह से खराब कर सकते हैं। अधिकांश फिल्मों में अच्छा संगीत, कहानी और स्क्रिप्ट, निर्देशन कम ही देखने को मिलता है। बड़े स्टार अपने लोगों की एंट्री करवा देते हैं। जिसके चलते एक अरसे से न के बराबर गुणी संगीतकार, स्क्रिप्ट राइटर या निर्देशक सामने नहीं आ पा रहे। सिर्फ अक्षय कुमार यदा-कदा कहानी पर ‘बैठते’ हैं लेकिन दूसरे स्टार इस मामले में चूक रहे हैं। जबकि जुबली कुमार, शम्मी कपूर, राज कपूर, मनोज कुमार जैसे पुराने दौर के कई ऐसे हीरो थे, जो अपनी फिल्मों के गानों की सिटिंग में खास तौर पर बैठते थे। दूसरी ओर, कई प्रोड्यूसर फिल्म का बजट बढ़ाने में सितारों की भारी-भरकम फीस को भी वजह मानते हैं। अब वे पारिश्रमिक के अलावा निर्माण में हिस्सेदारी भी लेते हैं। तब दूसरे निर्माता की कमाई बहुत कम रह जाती है।
छोटे हीरो पर लगाम
राजकुमार राव, कार्तिक आर्यन, आयुष्मान खुराना जैसे कई छोटे हीरो ने भी ज़रा सफलता मिलते ही पंख फैलाने शुरू कर दिए हैं। इनकी वजह से कोई भी फिल्म पचास करोड़ के बजट को पार करने लगी है। कुछ सालों पहले तक चार-पांच करोड़ में इनकी फिल्में बन जाती थीं। तब इन्हें 25-50 लाख तक फीस मिलती थी। ज्यादा फीस लेना शुरू कर दिया, इनकी फिल्में फ्लॉप होने लगीं। राजकुमार राव की कुछ फिल्में जैसे ‘भूल चूक माफ ’और नई फिल्म ‘मालिक’ की रिपोर्ट भी अच्छी नहीं।
हीरोइनों के तेवर ढीले
फिल्मोद्योग में एक दौर था, जब हीरोइनों का अलग डंका बजता था। मगर पिछले कुछ वर्षों में तारिकाओं की गरिमा पर असर पड़ा। आज फिल्मों में ज्यादातर हीरोइनों का उपयोग बतौर खानापूर्ति हो रहा है। कुछ प्रतिभाशाली तारिकाएं न के बराबर फिल्में कर रही। दीपिका, अनुष्का आदि फिल्मों से दूर हैं। कियारा आडवाणी, सारा अली खान आदि की फिल्मों में मांग थी, पर उन्होंने इतर गतिविधियों में ज्यादा रुचि ली।
कॉरपोरेट भी कम जिम्मेदार नहीं
बॉलीवुड की इस हालत की वजह कई ट्रेड विश्लेषक कॉरपोरेट की बेवजह दखलअंदाजी भी मानते हैं। कॉरपोरेट से ही फिल्म निर्माण के लिए वित्तीय जरूरत पूरी होती है, इसलिए ये फिल्म के हर पक्ष में अपनी सलाह देते हैं। कहानी, संगीत, निर्देशन में इनके अतार्किक सुझावों का क्या मतलब? रोबदार प्रोड्यूसर को ढूंढना अब नामुमकिन लगता है। बुजुर्ग प्रोड्यूसर न के बराबर फिल्में बना रहे हैं। वहीं मल्टीप्लेक्स कम बजट की फिल्मों के महंगे टिकट रखते हैं। इस वजह से भी दर्शक विमुख हुए।
लाने पड़ेंगे अच्छे स्क्रिप्ट राइटर्स
अच्छे लेखकों की लंबी फेहरिस्त है, जो काम के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कमाल अमरोही, राही मासूम रज़ा, गुलज़ार जैसे अच्छे लेखकों का फिल्मों की सफलता में बड़ा योगदान था। इसी श्रेणी में गुणी गीतकारों को लाया जा सकता है ।