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सहजता से झिझक दूर करके भरें आत्मविश्वास

शर्मीले बच्चे के मिक्सअप होने की दिक्कत
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कुछ बच्चे दूसरों की तुलना में ज्यादा शर्मीले होते हैं। घर में हों या बाहर- मिक्सअप नहीं होते। पेरेंट्स को चाहिये कि ऐसे बच्चे को डांटें नहीं, बल्कि उसे धीरे-धीरे मोटिवेट करें। उसे समय दें, बातचीत करें व गेम्स के जरिये भागीदार बनना सिखाएं। बच्चों की झिझक को कैसे आत्मविश्वास में बदलें, इसी विषय पर दिल्ली स्थित क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. पूजा आनंद शर्मा से रजनी अरोड़ा की बातचीत।

सिमी (6 साल) और रिनी (7 साल) दोनों अपने पेरेंट्स के साथ किसी रिश्तेदार की शादी में जाते हैं। वहां जाकर सिमी दूसरे बच्चों के साथ जल्द मिक्स हो जाती है, लेकिन रिनी अपने पेरेंट्स के पास ही रहती है। इनमें रिनी शर्मीले स्वभाव की है जो दूसरों के साथ जल्दी मिक्स नहीं होती। घर पर भी अगर कोई मेहमान आता है, तो वो उनसे बात नहीं करती, अपने कमरे में ही बैठी रहती है। प्रश्न उठता है कि क्या शर्मीला होना गलत है, बच्चों को कैसे सपोर्ट कर सकते हैं।

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शर्मीलापन या शाईनेस गलत नहीं है। कुछ बच्चे दूसरों की तुलना में ज्यादा शर्मीले होते हैं। लेकिन जरूरी नहीं कि जो बच्चे बात करने में झिझकते हैं- वे कॉन्फिडेंट न हों। क्योंकि ऐसे बच्चे अपने शारीरिक संकेतों और क्षमता को पहचानते हैं। वे दूसरों के कहे अनुसार न करके अपनी मर्जी से काम करते हैं। दूसरों से प्रभावित नहीं होते, क्योंकि वो जानते हैं कि उन्हें क्या चाहिए और किस स्थिति में कंफर्टेबल होगा। जानिये पेरेंट्स के लिए कुछ टिप्स कि वे कैसे अपने शर्मीले स्वभाव के बच्चे को सबके साथ मिक्स होना, फ्रैंडली एन्वायरमेंट में रहना सिखाएं ताकि वह सबके साथ बात कर सके।

दूसरों के सामने प्रेजेंट न करें

बच्चा अगर खुद में रहना पसंद करता है तो पेरेंट्स का उसे दूसरे के सामने कुछ सुनाने के लिए कहना गलत है। वह जब किसी को जानता नहीं हो, तो उस पर दबाव बनाने से और ज्यादा शर्माने लगेगा। वहां बैठे लोगों का सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बनने पर वह घबरा जाएगा। अगर वह मिक्स होने या कुछ परफॉर्म करने में कफर्टेबल नहीं हो, तो जबरदस्ती नहीं करें।

किसी तरह का लेबल न दें

अगर बच्चा हिचकता है, तो उसे किसी तरह का लेबल न दें- शर्मीला है, किसी से बात नहीं करता, किसी के सामने ही नहीं आता। ऐसा करने से बच्चे के मन में खुद को लेकर नेगेटिव फीलिंग आ सकती है कि शायद उसके साथ प्रॉब्लम ही है, पता नहीं कभी ठीक होगा भी या नहीं। दूसरों के साथ कभी खुल कर बात कर पाएगा या नहीं। इसके बजाय बच्चे को यह महसूस कराना ज्यादा अच्छा है कि वह जैसा भी है, ठीक है।

बात करने को न करें फोर्स

पेरेंट्स बच्चे को अपने साथ ले जाते हुए अक्सर उसे अच्छा बर्ताव करने या दूसरों से बोलने के लिए बार-बार न कहें। घर में किसी मेहमान के आने पर बात न करने पर गुस्सा होना या डांटना गलत है। ऐसे में बच्चे के मन में डर बैठ जाता है कि पता नहीं क्या है, दूसरों से बात करना इतना जरूरी क्यों है। उसका आत्मविश्वास कम होता जाएगा और वह आपके साथ जाना भी अवॉयड करेगा। उसे प्यार से समझाना बेहतर है।

फीलिंग को दें सपोर्ट

सभी बच्चे या इंसान एक जैसे नहीं होते। अपनी निगेटिव जजमेंट को अलग रखकर उसे यह विश्वास दिलाना चाहिए कि अगर वह शर्मीले स्वभाव का है, तो गलत नहीं है। अगर उसे दोस्तों के साथ मिलने-खेलने में झिझक हो रही है, तो उसे सपोर्ट करते हुए कुछ समय दें। जब वो खुद बच्चों के साथ जाना चाहे, तभी जाए। धीरे-धीरे दूसरों से घुलना-मिलना शुरू कर देता है। ऐसे ही उसकी सोशल स्किल्स में बढ़ोतरी होगी।

अंदर का डर निकालें

बच्चे को पढ़ाई के साथ पाठ्येतर गतिविधियों में शामिल होने के लिए मोटिवेट करना चाहिए। कई बार बच्चा स्कूल में डांस, सिंगिंग या नाटक कम्पीटीशन में भागीदारी करना चाहता है। लेकिन अगर पेरेंट्स उसका हौसला तोड़ते हैं कि वो किसी से बोलता तो है नहीं, ऐसे कम्पीटीशन कैसे करेगा। इससे बच्चे के मन में कॉम्प्लेक्स आ सकता है।

ज्यादा रोक-टोक न करें

बच्चे पर ज्यादा नज़र न रखें कि वो कहां जा रहा है, किससे बात कर रहा है, क्या कर रहा है। रेगुलर पार्क लेकर जाएं और वहां के खुले एन्वायरमेंट में उसे बच्चों के साथ खेलने दें। उसे विश्वास दिलाएं कि आप उसे बार-बार देख नहीं रहे हैं या डिस्टर्ब नहीं कर रहे हैं। बच्चे को जब लगेगा कि आप ध्यान नहीं दे रहे हैं तो वह दूसरे बच्चों के साथ मिक्स हो जाएगा।

बेसिक सोशल स्किल की सीख

बच्चे को आई कॉन्टेक्ट बनाना, हाथ मिलाना, स्माइल करना, विनम्रता से बात करना जैसी बेसिक सोशल स्किल्स सिखा सकते हैं। आप गेम्स के माध्यम से भी इन्हें सिखा सकते हैं जैसे उसके पसंदीदा दो टॉयज को लेकर इंटरेक्शन गेम्स खेल सकते हैं। एक-दूसरे के साथ बात करने का रोल-प्ले गेम्स खेल सकते हैं।

असहज स्थिति के लिए करें तैयार

पेरेंट्स को बच्चे को यह जरूर सिखाना चाहिए कि जब वह किसी स्थिति में असहज महसूस करता है, तो उसे उससे भागना नहीं चाहिए। बल्कि उस स्थिति का सामना करने के लिए प्रयास करना चाहिए। पॉजिटिव अनुभवों से बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ेगा।

क्वालिटी टाइम व संवाद

अक्सर पेरेंट्स खासकर वर्किंग पेरेंट्स अपने-अपने कामों में बिजी रहते हैं। बच्चे मोबाइल या लैपटॉप में गेम्स खेलने में बिजी रहते हैं। ऐसे में जरूरी है कि बच्चों के साथ फ्रैंडली बात करें, उनके डेली रूटीन के बारे में जानें। घर के कामों में या किसी निर्णय लेने में उनकी सलाह लेनी चाहिए। इससे बच्चों की झिझक कम होगी। बच्चा जितना ज्यादा पेरेंट्स से अपने मन की बात कह पाएगा, उतना ज्यादा रिलेशनशिप मजबूत होगी।

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