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अब हर महिला सीखे कार ड्राइव करना

किसी भी महिला के कार ड्राइव करने को लेकर कई लोगों की सोच संकुचित होती है। सड़क पर उन पर व्यंग्य-बाण आम बात है लेकिन हकीकत यह कि अच्छी या बुरी ड्राइविंग व्यक्तिगत है, महिला-पुरुष का भेद नहीं। आज हर...
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किसी भी महिला के कार ड्राइव करने को लेकर कई लोगों की सोच संकुचित होती है। सड़क पर उन पर व्यंग्य-बाण आम बात है लेकिन हकीकत यह कि अच्छी या बुरी ड्राइविंग व्यक्तिगत है, महिला-पुरुष का भेद नहीं। आज हर महिला के लिए अपनी कार ड्राइव करना उसकी जरूरत व ताकत, दोनों है।

अंतरा पटेल

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कार सर्विस के लिए मैकेनिक के पास गई हुई थी, इसलिए लेखिका ऑटो से अपने दफ्तर जा रही थी। ऑटो ड्राइवर ज़ोर-ज़ोर से हॉर्न बजा रहा था, लेकिन आगे जा रही कार, जिसे एक महिला चला रही थी, साइड ही नहीं दे रही थी। आखि़रकार खीझते हुए ऑटो चालक ने तंज़ कसा, ‘पापा की परी है।’ यह जुमला नकारात्मक व्यंग्य के तौरपर सोशल मीडिया की रील्स में प्रयोग किया जाता है, यह दिखाने के लिए कि सुंदर लड़कियां अक्ल से ‘पैदल’ होती हैं और अतार्किक ऊल-जलूल हरकतें करती हैं। जैसे कि लड़के बहुत बुद्धिमान होते हों! बहरहाल, जिस अपमानजनक लहजे में उसने ‘पापा की परी’ बोला था, उससे लेखिका को बहुत गुस्सा आया।

सभी जगह व्याप्त है ये सोच

बतौर लेखिका कुछ दिन पहले दफ्तर में एक पुरुष सहकर्मी ने कहा था, ‘सड़क पर महिला चालक नाक में दम होती हैं।’ यह सुनकर बहुत गुस्सा आया था। लेखिका भी अपनी कार ख़ुद ड्राइव करती है। पिछले 15-साल से ड्राइविंग लाइसेंस है। आत्मविश्वास के साथ कार ड्राइव करती है और आज तक न कोई एक्सीडेंट और न ही ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन किया। लेकिन अधिकतर पुरुष चालक महिला चालकों को बेकार ही समझते हैं। पीठ पीछे उनके बारे में भी यही राय रखी जाती है।

मानो यह केवल उनका ही हक हो...

यही वजह है कि जब हाल ही में लेखिका ने नई कार खरीदी थी तो व्हाट्सएप स्टेटस को इसके साथ अपडेट नहीं किया। नई कार की तस्वीर को उसके किसी फोन फ्रेंड ने नहीं देखा, दफ्तर में मिठाई भी नहीं बांटी, परम्परा के विपरीत। उसे डर था कि उसकी ड्राइविंग पर अनावश्यक सवाल उठाये जायेंगे, मज़ाक़ भी उड़ाया जा सकता था। दरअसल, कई पुरुषों को महिलाएं उन भूमिकाओं में अच्छी नहीं लगतीं जिन पर वे अपना एक्सक्लूसिव अधिकार समझते हैं।

सहेली के जवाब ने बढ़ाया हौसला

कार खरीदने के एक माह बाद लेखिका को अपने अपार्टमेंट से लगभग 20 किमी के फासले पर एक जगह जाना था। उस रात वह सो न सकी। तनाव में थी। सोचने लगी क्यों न अपनी नई कार को सेल कर दूं। इसके बावजूद सुबह वह कार ड्राइव कर सुरक्षित अपनी मंज़िल पर पहुंची। वापसी में उसकी एक सहेली भी कार में सवार थी। लेखिका ने उससे सवाल किया, ‘तुझे डर तो नहीं लग रहा कि मैं कार ड्राइव कर रही हूं?’ उसका जवाब था, ‘सिर्फ़ महिलाएं ही इस तरह से ख़ुद को कम आंकती हैं। कोई पुरुष कभी यह नहीं कहेगा कि वह अच्छा ड्राइवर नहीं है।’

बात सही साबित हुई

लेखिका याद करने लगी कि किसी पुरुष ने कभी कहा हो कि वह अच्छा ड्राइवर नहीं है। लेकिन ऐसा कोई पुरुष याद नहीं आया। सहेली ने कहा, ‘तुम अच्छा ड्राइव कर रही हो। निडर चलती रहो।’ मेरे हौसले में इज़ाफ़ा हुआ। इसके कुछ दिन बाद सहेली की बात सही साबित हुई। एक पुरुष सहकर्मी कार ड्राइव करना चाहता था और क्लच के अनुचित प्रयोग के कारण कार बीच में ही बंद हो गई। सहकर्मी का दावा था कि उसे ड्राइविंग का 20-साल का तजुर्बा है और अब उसे शर्म आ रही थी। लेखिका को हंसी आ गई, इसलिए नहीं कि उसका दावा एक्सपर्ट ड्राइवर होने का है बल्कि इसलिए कि वह महिलाओं को अच्छा ड्राइवर मानने के लिए तैयार नहीं है।

बड़े फायदे हैं इस शुरुआत के

लेखिका के मुताबिक, कोई महिला कार इसलिए नहीं खरीदती है कि वह एक्सपर्ट ड्राइवर होना साबित करे या फिर फार्मूला 1 रेस में शामिल होना है। वह कार अपने आराम के लिए खरीदती है, बिना लोन के, अपने आपको अधिक स्वतंत्र बनाने के लिए। ताकि उसकी मां या घर के किसी सदस्य को धूप या बारिश में कैब या ऑटोरिक्शा की प्रतीक्षा न करनी पड़े। इसलिए जो लोग यह समझते हैं कि कोई महिला अच्छी ड्राइवर नहीं है तो वो यह जान ले कि जब आधी रात में लेखिका की मां को मेडिकल इमरजेंसी की ज़रूरत पड़ी थी तो वह अपनी कार ड्राइव कर उन्हें अस्पताल ले गई थी और इस तरह उनकी जान बच गई। ऐसे में हर महिला को कार चलाना आना चाहिए। -इ.रि.सें.

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