पुष्पा गिरिमाजी
मैंने बड़ी उम्मीदों के साथ निवेश किया था कि मुझे भी फ्लैट मालिक बनने का मौका मिल जाएगा, लेकिन बिल्डर अपने वादे के मुताबिक परियोजना को पूरा नहीं कर पाया और दी गयी तारीख के चार साल बाद भी वह फ्लैट दे पाने में विफल रहा। इसलिए, मैंने उपभोक्ता अदालत के जरिये ब्याज और मुआवजे के साथ अपने पैसों की वापसी की मांग की। चूंकि यह राशि 1 करोड़ रुपये से अधिक थी, इसलिए मैंने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज कराई क्योंकि उस समय, 2019 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू नहीं था और 1986 के कानून के अनुसार, राष्ट्रीय आयोग के पास उन शिकायतों की सुनवाई का अधिकार क्षेत्र था, जिनकी कीमत 1 करोड़ रुपये से अधिक थी। अब मुझे बताया गया है कि नए कानून के अनुसार, मुझे अपनी शिकायत राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के पास ले जाने की आवश्यकता है और मेरी जैसी कुछ शिकायतों को इस आधार पर राष्ट्रीय आयोग द्वारा पहले ही खारिज कर दिया गया है। क्या ये सही है?
कृपया इस बात से आश्वस्त रहें कि आपको अपनी शिकायत राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के पास नहीं ले जानी है। 20 जुलाई, 2020 से पहले दर्ज की गई सभी शिकायतें, नए 2019 उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत बदले गए आर्थिक क्षेत्राधिकार से प्रभावित नहीं होंगी। यह सच है कि 18 जून, 2020 को राष्ट्रीय आयोग में स्थापित उपभोक्ता शिकायत-नीना अनेजा बनाम जय प्रकाश एसोसिएट्स-को शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने 30 जुलाई, 2020 को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि बदले हुए आर्थिक क्षेत्राधिकार को देखते हुए अब इसे मामले की सुनवाई का कानूनी अधिकार नहीं रहा। साथ ही इसे 2019 के कानून के अनुसार उपयुक्त फोरम में दायर किया जाना चाहिए। इसके साथ ही इसने 5 अक्तूबर, 2020 के अपने आदेश के माध्यम से उपभोक्ता द्वारा दायर समीक्षा याचिका को भी इसी आधार पर खारिज कर दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च, 2021 के अपने आदेश के माध्यम से राष्ट्रीय आयोग के इन आदेशों को खारिज कर दिया और कहा कि आयोग मामले की सुनवाई करेगा। इसलिए राष्ट्रीय आयोग आपके मामले की भी सुनवाई करेगा और आपको फोरम बदलने की जरूरत नहीं है।
निष्प्रभावी अधिनियम 1986 के तहत, जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के पास उन शिकायतों की सुनवाई करने का आर्थिक क्षेत्राधिकार था जहां वस्तु या सेवाओं का मूल्य और मुआवजा 20 लाख रुपये तक था; राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग 20 लाख रुपये से अधिक और 1 करोड़ रुपये तक की शिकायतों पर विचार कर सकता है।
राष्ट्रीय आयोग उन शिकायतों पर निर्णय ले सकता था जहां वस्तु या सेवाओं का मूल्य और मांगे गए मुआवजे का मूल्य 1 करोड़ रुपये से अधिक हो। हालांकि, नए कानून के तहत, आयोगों के आर्थिक क्षेत्राधिकार में काफी वृद्धि की गई और इसी वजह से भ्रम की स्थिति पैदा हुई है। जिला आयोग अब उन शिकायतों पर विचार करेगा जहां वस्तु या सेवाओं का मूल्य 1 करोड़ रुपये तक है (नए कानून में मुआवजे की राशि का कोई संदर्भ नहीं है), राज्य आयोग 1 करोड़ रुपये से अधिक और 10 करोड़ रुपये तक की शिकायतों की सुनवाई करेगा।
क्या आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विवरण साझा कर सकते हैं?
आपके मामले की ही तरह यह भी एक बिल्डर के खिलाफ केस था। इस मामले में उपभोक्ता बिल्डर को भुगतान किए गए 53.84 लाख रुपये 18 फीसदी ब्याज के साथ वापस करने की मांग कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने विचार किया कि क्या नए कानून में बदली गई आर्थिक क्षेत्राधिकार संभावित या पहले की तरह लागू होगा और इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत के कई निर्णयों को देखने के बाद, निष्कर्ष निकाला कि ‘2019 के अधिनियम के 20 जुलाई, 2020 को शुरू होने से पहले सभी कार्यवाही जारी थीं। और ये कार्यवाही 1986 के अधिनियम (राष्ट्रीय आयोग, राज्य आयोग और जिला आयोग) के अनुरूप जारी रहेंगी और 2019 के अधिनियम के तहत स्थापित मंचों के लिए निर्धारित आर्थिक क्षेत्राधिकार के संदर्भ में स्थानांतरित नहीं होंगी।’यह 20 जुलाई से पहले 1986 के अधिनियम के तहत राज्य आयोगों के समक्ष दायर मामलों पर भी लागू होता है (नीना अनेजा बनाम जय प्रकाश एसोसिएट्स, 2020 का सीए संख्या 3766-3767 आदेश की तारीख-16 मार्च, 2021)।