संध्या सिंह
अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी, जो कि एक गैरलाभकारी चिकित्सा संस्था है, उसके मुताबिक डांस यानी नृत्य गंभीर हृदय रोगी को भी जीवनदान दे सकता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि डांस सामान्य जीवन की कितनी सकारात्मक गतिविधि है। समाजशास्त्रियों से लेकर मनोचिकित्सकों तक और हृदय रोग विशेषज्ञों से लेकर सामान्य लोगों तक का मानना है कि नृत्य हमारे फिट रहने का सबसे आसान और सरस तरीका है। यही जागरूकता लाने के लिए हर साल 29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाया जाता है, क्योंकि यह तारीख आधुनिक बैले डांस के जनक जीन जॉर्जेस नोवरे का जन्मदिन है। साल 1727 को नोवरे इसी दिन पैदा हुए थे। इसलिए साल 1982 से इस दिन को विश्व नृत्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। हर साल नृत्य दिवस की एक थीम होती है और उस थीम का एक सांकेतिक महत्व होता है। जैसे साल 2023 में अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस की थीम थी- नृत्य : दुनिया के साथ संवाद करने का एक तरीका। जबकि इस साल नृत्य दिवस की थीम है- थियेटर और शांति की संस्कृति यानी साल 2024 के नृत्य दिवस की थीम विश्व रंगमंच को समर्पित है।
शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य में मददगार
अगर हम नृत्य की इस शृंगारिक और भावनात्मक दुनिया का अहसास न भी कर सकें, तो भी नृत्य अपने आपमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। इसलिए डांस का महत्व सिर्फ इस लिहाज से भी बहुत ज्यादा होता है। हालांकि नृत्य की अपनी एक सामाजिक दुनिया भी है और वह कम प्रभावशाली या कम महत्व की नहीं है। लेकिन ज्यादातर आम लोगों के लिए नृत्य के सर्वाधिक फायदे शारीरिक और मानसिक ही होते हैं। यह अलग बात है कि आज के दौर में नृत्य एक बड़ा कारोबार और कई रचनात्मक कलाओं का केंद्र है। जितनी भी परफोर्मिंग आर्ट हैं, नृत्य उन सबका नाभि बिंदु है। लेकिन नृत्य के ये संदर्भ उन कुछ रचनात्मक लोगों से ही हैं, जो नृत्य के लिए समर्पित हैं और नृत्य की लय को जीवन की लय मानते हैं। आम लोगों के लिए नृत्य शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का खजाना है। अमेरिकी हृदय स्वास्थ्य विशेषज्ञ नृत्य को मांसपेशियों की ताकत, भावनात्मक सहन शक्ति और फिटनेस की अपार संभावनाओं वाला केंद्र मानते हैं। मेडिकल निष्कर्षों के मुताबिक, डांस करने से 70 से 80 फीसदी तक हृदय बिना और कुछ किए स्वस्थ रहता है। डांस करने से दो दर्जन लाइफ स्टाइल बीमारियां जैसे चिंता, डिप्रेशन, हाईपरटेंशन और एंजाइटी आपके पास नहीं फटकतीं। नृत्य करने से आत्मविश्वास में सर्वाधिक बढ़ोतरी होती है। यह आपकी संज्ञानात्मक मेधा में वृद्धि करता है। डांस करने से शरीर में एक लयात्मकता आती है और भरपूर लचीलापन न सिर्फ शारीरिक अंगों में बल्कि स्वभाव और संवेदना में भी दिखता है। डांस हमेशा आपके नये दोस्त बनाता है और आपके अंदर रचनात्मकता, आत्म अनुशासन और सहयोगात्मक रूप से काम करने की क्षमता विकसित करता है।
नृत्य से सौंदर्यबोध और सृजनात्मकता
यह तो कहने की बात ही नहीं है कि डांस आपके भीतर सौंदर्य बोध को पैदा करता है। वैसे भी कहते हैं कि डांसर की आंखें दुनिया का सृजन देखती हैं। अमेरिका में हुए एक शोध के मुताबिक, प्रतिदिन एक घंटे तक डांस करने वाले लोग बहुत मुश्किल से किसी आपराधिक घटना में शामिल पाये जाते हैं। नियमित डांस करने वाले लोगों के दिलो-दिमाग में ऐसे हार्मोन पैदा ही नहीं होते, जो उन्हें किसी भी तरह की आक्रामकता या अपराध की तरफ उन्मुख करें। डांस में इस तरह की सकारात्मकता और संवेदना होती है। यूं भी नृत्य के अभ्यासी अपनी कला में इतने गहरे तक उतरते हैं कि उन्हें कुछ गलत विचार या फिर गतिविधि सूझने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। साथ ही यह भी कि हर डांस करने वाला व्यक्ति करीब-करीब सभी रचनात्मक कलाओं में रुचि लेता है। क्योंकि डांस उसके मन की कंडीशन और ‘स्टेट ऑफ माइंड’ यानी मनःस्थिति को संवेदना से भर देता है। इसलिए कहते हैं डांस करने वाले के दिमाग में कार्टीसोल का स्तर बेहद कम होता है और ऑक्सीटोसिन का स्तर बढ़ता है यानी फील गुड हार्मोन पैदा होते हैं। इसलिए इंसान की धरती पर सबसे खूबसूरत गतिविधि को डांस कहते हैं।
तन-मन की लय
रेगुलर डांस करने वाले लोगों का शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य तो बेहतर होता ही है, उन्हें कभी ऑस्टियोपोरेसिस का खतरा नहीं रहता। नृत्य के अभ्यास के दौरान सक्रिय रहने के चलते स्वाभाविक व्यायाम भी तो होता है जिससे रोग पास फटकेंगे ही नहीं। कहते हैं डांस जानने वालों को संगीत की जानकारी स्वतः ही हो जाती है। क्योंकि डांस करने वालों का शरीर ही नहीं, मन भी लय में रहता है और लय संगीत के साथ सहजता से आत्मसात हो जाती है। दुनिया में डांस के अलावा दूसरी ऐसी कोई सक्रिय गतिविधि नहीं है, जिसमें तन और मन एक लय में रहें। इससे दिल और फेफड़ों की स्थिति बेहतर रहती है। कभी नृत्य के अभ्यासी के शरीर का वजन नहीं बढ़ता और डांस सीखने से बाकी सारी कलाएं अपने आप एक समर्पित नर्तक के नजदीक आ जाती हैं।
दुनिया में यूं तो इंसान के अंदर चेतना विकसित होने के साथ ही, उसमें डांस जैसी गतिविधि की खोज कर ली थी। लेकिन नृत्य की शास्त्रीयता की खोज सबसे पहले भारत में ही हुई है। इसलिए भारत में नृत्यों की अपनी एक क्लासिक परंपरा है जैसा दुनिया में और कहीं नहीं है। भारत अकेला वह देश है जहां नृत्य शारीरिक गतिविधि नहीं बल्कि आध्यात्मिक मनोयोग है, इसलिए नृत्य को महायोग भी कहा गया है।
-इ.रि.सें.