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International Women's Day समानता के लिए बदलाव की बुनियाद बने परिवार

लैंगिक भेदभाव हिस्सेदारी बढ़ाने में बाधा
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देश-दुनिया के हर क्षेत्र में महिलाओं का योगदान उल्लेखनीय है लेकिन लैंगिक भेदभाव और असमानता की स्थितियां उनकी हिस्सेदारी बढ़ाने में बाधा है। उनके सशक्तीकरण के लिए ऐसा प्रेरणादायी पारिवारिक-सामाजिक ताना-बाना चाहिये जिसमें उन्हें हर स्तर पर प्रोत्साहन-प्रशंसा मिले। आत्मविश्वास के साथ उनकी काबिलियत जुड़ेगी तो वे कामयाबी की राह पर आगे बढ़ सकेंगी। परिवार के लोग बहू-बेटियों के काम को अहमियत देकर समानता को बढ़ावा दे सकते हैं।

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डॉ. मोनिका शर्मा

स्त्रियों की भागीदारी हर देश, समाज और परिवार में रेखांकित करने योग्य रही है। बावजूद इसके उनके व्यक्तित्व और विचारों के प्रति समावेशन यानी समानता का भाव नदारद रहा है। जिसके चलते तेज़ी से आगे बढ़ती दुनिया के हर कोने में ही आधी आबादी की तरक्की की गति जरा कम ही रही। लैंगिक भेदभाव और असमानता की स्थितियां स्त्रियों की हिस्सेदारी बढ़ाने में बड़ी बाधा बनती रही हैं। गौरतलब है कि इस वर्ष इंटरनेशनल वीमन्स डे की थीम 'सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए अधिकार-समानता और सशक्तीकरण' है। यह दिन स्त्रियों को शुभकामनाएं देने का विशेष दिन भर नहीं बल्कि उनके लिए समानता का परिवेश बनाने से जुड़ा संदेश लिए है। समग्र परिवेश में सार्थक बदलाव लाने के लिए आवश्यक है कि समानता की इस मुहिम को हर परिवार भी आगे बढ़ाये।

प्रेरणादायी परिवेश बनाना आवश्यक

सकारात्मक और प्रेरणादायी परिस्थितियां बेहतरी से जुड़े हर बदलाव को खाद-पानी देती हैं। अधिकारों और मानवीय मोर्चे पर बराबरी की बुनियाद बनाने वाली इस वर्ष की थीम तो आज ही नहीं, आने वाले कल के लिए भी एक प्रेरणादायी परिवेश बनाने से जुड़ी है। ऐसे सामाजिक-पारिवारिक ताने-बाने को तैयार करने का उद्देश्य लिए है, जिसमें महिलाओं को हर स्तर पर प्रोत्साहन देने का काम किया जाए। यह वैचारिक रूपरेखा व्यावहारिक धरातल पर एक बेहतर दुनिया के निर्माण का इरादा लिए है। समझना कठिन नहीं कि सामूहिक रूप से आधी आबादी के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल बनाने के लिए प्रेरित करने वाली परिस्थितियां आवश्यक भी हैं। आमतौर पर देखने में आता है कि घर हो या बाहर, स्त्रियों के उत्साह को सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलती है। बहुत सी सामाजिक बाधाएं और पारिवारिक नीति-नियम आधी आबादी के प्रति समान व्यवहार अपनाने में रुकावट बनते हैं। जबकि अपने प्रयासों के लिए प्रशंसा पाना किसी भी इंसान को सबसे अधिक प्रेरणा देता है। समाज हो, कार्यस्थल हो या घर हो - समग्र परिवेश में स्त्रियों को उनके अधिकार दिलाने और बराबरी की बुनियाद पक्की करने के लिए उनके उत्साह और हौसले को बल देने का भाव जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर स्त्री के अधिकार और समानता की ऐसी ही बातें रखने के लिए एक प्रभावी मंच के समान है। वीमन्स डे पर बराबरी चाहने की साझी आवाज़ दुनिया के हिस्से में गूंजती है। भारतीय समाज के परंपरागत ढांचे में पारिवारिक व्यवस्था इस भाव और बदलाव को सबसे अधिक बल दे सकती है।

हौसले संग आगे बढ़ें स्त्रियां

महिलाएं सदा से ही अपनी हर भूमिका को एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व के रूप में जीती आई हैं। मां, पत्नी, सहकर्मी ही नहीं, आस-पड़ोस में बसे किसी परिवार की सदस्य के रूप में भी। अपनों-परायों, सभी को उनकी बातें और बर्ताव प्रेरणा देता रहा है। स्त्रियों की उपस्थिति हर हाल में बेहतरी की ओर बढ़ने का संबल देती रही है। पीड़ादायी यह है कि स्त्रियां खुद अपना संबल नहीं बन पातीं। हर फ्रंट पर अपनी ही अनदेखी करती हैं। अपनी हिस्सेदारी पर अधिकार जमाने में पीछे रह जाती हैं। काबिलियत के बावजूद कामयाबी की राह पर बढ़ने से हिचकती हैं। यही कारण है कि भारतीय परिवेश में ही नहीं, वैश्विक स्तर पर भी उनके लिए न्यायसंगत और समानता के भाव से भरा समाज नहीं बन पाया है। आवश्यक है कि स्त्रियां स्वयं आगे आएं। मानसिक बल और सामाजिक अपनेपन को अपने सशक्त व्यक्तित्व की बुनियाद बनाएं। मां, परवरिश के मोर्चे पर बेटी को मजबूत मन की धनी बनाकर तो बेटियां मां का मन समझकर एक-दूजे का संबल बन सकती हैं। यूं ही दूसरे सम्बन्धों में भी खींचतान के बजाय साथ देने की सोच हर स्त्री के लिए सहयोगी परिवेश बना सकती है। एक महिला किसी दूसरी महिला की मददगार बन सकती है।

लैंगिक समानता को बढ़ावा

स्त्रियों के प्रति पूर्वाग्रह, रूढ़िवादिता और भेदभाव के रहते लैंगिक समानता वाले विश्व की कल्पना नहीं की जा सकती। इसीलिए महिलाओं को सही मायने में भागीदार बनाने के लिए उनकी उम्र, क्षमता और शारीरिक छवि से परे विविधता को खुले मन से स्वीकारना जरूरी है। हर स्त्री के व्यक्तित्व और विचारों को मान देना जरूरी है। इसमें घर-परिवार के लोग भी व्यक्तिगत रूप से बहू-बेटियों का मन समझने, उनके काम को महत्व देने और उनकी भागीदारी को अहमियत देकर लैंगिक समानता के भाव को बढ़ावा दे सकते हैं। असमानता से जूझने के लिए भी स्त्रियां एक-दूजे का हाथ थामें। बेटी के जन्म पर अपराधबोध या दूसरे घर से आई बहू को अधिकार देने में भेदभाव करने की मानसिकता से खुद स्त्रियों को भी बाहर आना होगा। व्यवस्थागत नियमों के साथ ही घर-परिवार में भी परिवर्तन लाने होंगे, ताकि सकारात्मक बदलावों को गति दी जा सके। इस वर्ष के विषय में समाहित एक भाव 'एक्सीलरेट एक्शन' भी है। जिसके तहत लैंगिक समानता से जुड़े सभी पहलुओं पर ठोस कदम उठाने का आह्वान किया गया है। यह विचार आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और पारिवारिक स्तर पर प्रभावी योजनाओं की वकालत करते हुए महिलाओं का जीवन बेहतर बनाने का उद्देश्य लिए है। बदलाव के लिए गंभीरता से प्रयास किये जाएं व उन्हें रफ्तार भी दी जाए।

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