निस्संदेह, नवरात्र नारी-शक्ति को प्रतिष्ठित करने का पर्व है। इसके आध्यात्मिक-सामाजिक निहितार्थ यही हैं कि हम अपने आस-पास रहने वाली उन बेटियों के संघर्ष का सम्मानपूर्वक स्मरण करें जिन्होंने अथक प्रयासों से समाज में विशिष्ट जगह बनायी। साथ ही वे समाज में दूसरी बेटियों के लिये प्रेरणास्रोत भी बनीं। दैनिक ट्रिब्यून ने इसी कड़ी में उन देवियों के असाधारण कार्यों को अपने पाठकों तक पहुंचाने का एक विनम्र प्रयास किया है, जो सुर्खियों में न आ सकीं। उनका योगदान उन तमाम बेटियों के लिये प्रेरणादायक होगा जो अनेक मुश्किलों के बीच अपना आकाश तलाशने में जुटी हैं।
– संपादक
जीवन विजेता : सच्ची लगन से रास्ते हुए आसान
नवरात्र पर्व हमें जीवन विजेता जैसे खिलाड़ियों के संघर्ष को याद करने का मौका देता है। जीवन विजेता वूशु खेल में रशिया मॉस्को इंटरनेशनल वूशु प्रतियोगिता में रजत पदक जीत चुकी हैं। जीवन विजेता वर्ष 2013 से वूशु खेल अभ्यास कर रही हैं। पिता के मार्गदर्शन और वूशु प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के अंतर्गत लगातार 7 साल से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पदक प्राप्त कर रही हैं। पिता दीपक कुमार लोट जिला वूशु संघ के सचिव व हरियाणा के सीनियर कोच हैं। माता भी कराटे ताइक्वांडो व वूशु में राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी रही हैं तथा वूशु में एनआईएस सर्टिफिकेट कोर्स कर चुकी हैं। वह दिल्ली पब्लिक स्कूल में पंजाबी की अध्यापिका हैं। बड़ी बहन वूशु कोच रीता रानी ने भी जीवन विजेता के बेसिक प्रशिक्षण में अहम भूमिका निभाई। इसके चलते आज जीवन विजेता खेल प्राधिकरण भोपाल में प्रशिक्षण कर रही हैं। वह अपनी कामयाबी का श्रेय अपने माता पिता, अपने वूशु प्रशिक्षकों, बहन रीता रानी वूशु कोच को देती हैं।
रजनी : नेक इरादों से सपने किए साकार
गांव सौथा निवासी रजनी राणा ने 4 साल पहले वूशु खेल अभ्यास शुरू किया। उन्होंने 28 से 31 मार्च तक होने वाली पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी वूशु प्रतियोगिता में एक साथ 2 ब्राउंज मेडल जीते हैं। इसी प्रकार गत फरवरी में रशिया मॉस्को इंटरनेशनल वूशु प्रतियोगिता में 2 कांस्य पदक प्राप्त किए। सीनियर नेशनल वूशु प्रतियोगिता में भी रजनी ब्राउंज मेडल जीत चुकी हैं। इससे पहले रजनी पंजा खेल का भी अभ्यास कर चुकी हैं, लेकिन कामयाबी वूशु खेल में मिली। परिवार आर्थिक रूप से बहुत कमजोर है। पिता उदय सिंह मजदूरी करके परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। रजनी परिवार की बड़ी बेटी है। उनके अलावा एक छोटी बहन एक छोटा भाई है। इनकी भी बहुत सी जिम्मेदारी रजनी पर हैं। रजनी कामयाबी का श्रेय माता पिता, सचिव दीपक कुमार लोट और कोच रीता रानी व नरेश कुमार को देती हैं।
माफी : हौसले के आगे विकलांगता पस्त
पिछले दिनों भुवनेश्वर में हुई राष्ट्रीय पैरा एशियन एथलेटिक्स स्पर्धा में माफी ने कांस्य पदक जीता। कैथल की पहली खिलाड़ी माफी ने टी-46 कैटेगरी में भाग लेकर 400 मीटर दौड़ में रजत पदक हासिल किया है। 16 वर्षीय अंतर्राष्ट्रीय पैरा खिलाड़ी माफी रोहेड़ा गांव की हैं। प्रशिक्षक डॉ. सतनाम सिंह ने बताया कि माफी ने साल 2018 में पंचकूला में हुई राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स में 400 मीटर दौड़ में कांस्य पदक और चार गुणा 400 रिले दौड़ में रजत पदक हासिल किया था। अपनी सफलता से माफी ने उन्हें भी करारा जवाब दिया है जो बेटियों के नाम माफी, काफी, भतेरी रखते थे। इस होनहार खिलाड़ी का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उससे पहले दो बहनें जन्म ले चुकी थीं। छह भाई-बहनों में माफी तीसरे नंबर की है। परिवार में पिता शीशपाल, मां सुनीता, बड़ी बहन अंजू, मंजू, छोटी बहन नैंसी, भाई मनीष और सबसे छोटी बहन प्रीति हैं। पांच साल की उम्र में चारा काटने वाली मशीन में माफी का बायां हाथ आधा कट गया। बाद में माफी की मेहनत ने कमाल कर दिखाया।
संकलन : ललित शर्मा, कैथल