मोतियाबिंद आंखों की एक सामान्य लेकिन गंभीर स्थिति है, जिसमें दृष्टि धीरे-धीरे धुंधली होने लगती है व लेंस सफेद परत में बदल जाता है। समय रहते इलाज न किया जाए, तो नौबत दृष्टिहीनता तक आ सकती है। अक्सर लोग मोतियाबिंद के शुरुआती संकेत अनदेखे करते हैं जो हानिकारक है। मोतियाबिंद से जुड़ी जानकारी, सावधानी व उपचार को लेकर पीजीआई, चंडीगढ़ के पूर्व नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अशोक गुप्ता से विवेक शर्मा की बातचीत।
अगर आप भी आंखों की रोशनी में आ रहे बदलाव को केवल उम्र का असर मानकर नजरअंदाज कर रहे हैं तो यह लापरवाही आपकी दृष्टि के लिए गंभीर साबित हो सकती है। मोतियाबिंद (कैटरैक्ट) आंखों की एक सामान्य लेकिन गंभीर स्थिति है, जिसमें लेंस पर धीरे-धीरे धुंधलापन आने लगता है और वक्त के साथ यह सफेद परत में बदल जाता है। यदि समय रहते इलाज न किया जाए, तो यह स्थायी दृष्टिहीनता का कारण बन सकता है। यदि मोतियाबिंद पूरी तरह पक जाए, तो उसका ऑपरेशन न केवल जटिल हो जाता है, बल्कि दृष्टि की बहाली की संभावना भी कम हो सकती है। इसलिए ज़रूरी है कि इसकी पहचान शुरुआती अवस्था में ही हो, ताकि सर्जरी सरल, सुरक्षित और प्रभावी ढंग से की जा सके। मोतियाबिंद वह स्थिति है जब आंख का प्राकृतिक लेंस धीरे-धीरे धुंधला या अपारदर्शी होने लगता है। इस धुंधलेपन के कारण रोशनी सही तरीके से आंख के भीतर स्थित रेटिना तक नहीं पहुंच पाती, जिससे व्यक्ति को चीजें धुंधली, फीकी या दोहरी दिखाई देने लगती हैं। यह रोग धीरे-धीरे विकसित होता है और कई बार शुरुआती अवस्था में इसके लक्षण स्पष्ट नहीं होते। लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे मोतियाबिंद बढ़ता है, दृष्टि पर इसका प्रभाव साफ़ तौर पर महसूस होने लगता है।
ये हैं वजहें मोतियाबिंद होने की
मोतियाबिंद कई कारणों से हो सकता है, जिनमें कुछ प्रमुख हैं : बढ़ती उम्र यानी 40 वर्ष की आयु के बाद मोतियाबिंद विकसित होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। वहीं मधुमेह (डायबिटीज) रोगियों में मोतियाबिंद तेज़ी से विकसित हो सकता है। इसके अलावा आंख में पहले लगी चोट या ऑपरेशन के कारण लेंस पर असर पड़ सकता है।
धूम्रपान और शराब का सेवन आंखों की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाकर मोतियाबिंद की आशंका को बढ़ाती हैं। अत्यधिक धूप में रहनाआंख के लेंस को प्रभावित करता है। वहीं यदि परिवार में किसी सदस्य को यह रोग रहा हो, तो जोखिम अधिक होता है।
लक्षण न करें नजरअंदाज
अक्सर लोग मोतियाबिंद के शुरुआती संकेतों को उम्र बढ़ने या चश्मे के नंबर में बदलाव का सामान्य असर मानकर अनदेखा कर देते हैं। लेकिन यदि समय पर लक्षणों पर ध्यान न दिया जाए, तो यह दृष्टि को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। मसलन, धुंधला दिखाई देना, प्रकाश के चारों ओर चमकदार घेरे (हॉलो) दिखना, एक ही वस्तु की दोहरी छवि बनना, रात में गाड़ी चलाने में परेशानी, तेज रोशनी में आंखों का चुंधियाना, बार-बार चश्मे का नंबर बदलना। अगर इनमें से कोई भी लक्षण नजर आएं, तो तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से जांच करानी चाहिए।
जांच की प्रक्रिया और उसकी जरूरत
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक गुप्ता के अनुसार, आंखों की बीमारियां अक्सर धीरे-धीरे बढ़ती हैं। जब तक लक्षण स्पष्ट होते हैं, तब तक नुकसान काफी हद तक हो चुका होता है। इसलिए 40 वर्ष की आयु के बाद हर व्यक्ति को साल में कम से कम एक बार नेत्र जांच अवश्य करानी चाहिए खासकर जब डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर हो। नेत्र जांच की प्रक्रिया में स्लिट लैम्प एग्ज़ामिनेशन, विजन एसेसमेंट ,रेटिना जांच व इंट्राओक्युलर प्रेशर टेस्ट होते हैं।
अब डरने की बात नहीं
मोतियाबिंद का एकमात्र इलाज सर्जरी है। पहले यह सर्जरी बड़ी कटिंग और टांकों के साथ होती थी, लेकिन अब तकनीक ने इस प्रक्रिया को बेहद सरल और सुरक्षित बना दिया है। फेकोइमल्सीफिकेशन तकनीक, फेमटोसेकंड लेजर के अलावा आईओएल जैसे विकल्प मौजूद हैं ।
बचाव के कुछ आसान उपाय
मोतियाबिंद को रोका नहीं जा सकता, लेकिन शुरुआत को टालना संभव है वहीं बढ़ने की गति को धीमा किया जा सकता है। इसके लिए धूप में यूवी प्रोटेक्शन वाला चश्मा पहनें। विटामिन ए, सी, ई और ज़िंक युक्त आहार लें। आंखों की सेहत के लिए गाजर, पालक, आंवला, बादाम, और दालें फायदेमंद हैं। धूम्रपान और शराब से दूरी बनाएं। स्क्रीन टाइम को सीमित करें और नियमित ब्रेक लें। हर 20 मिनट पर 20 सेकंड के लिए 20 फुट दूर देखें। ठंडे पानी से आंखों को धोएं। हर साल एक बार नेत्र जांच जरूर कराएं। मोतियाबिंद से जुड़े कुछ भ्रम भी हैं जैसे मोतियाबिंद दवा से ठीक हो सकता है लेकिन सच यह है कि अभी तक मोतियाबिंद की दवा नहीं है, सर्जरी ही इलाज है। दूसरी गलतफहमी है कि ऑपरेशन के बाद आंखें कमजोर हो जाती हैं पर असल में ऑपरेशन के बाद दृष्टि सामान्य हो जाती है।
देरी बिल्कुल न करें
विशेषज्ञ कहते हैं कई बार मरीज जब हमारे पास आते हैं, तब तक मोतियाबिंद बहुत ज्यादा बढ़ चुका होता है। उन्हें ऑपरेशन से डर लगता है, लेकिन नई तकनीकों ने इसे इतना आसान बना दिया है कि अब 15 मिनट में मरीज घर जा सकता है। डरने की कोई जरूरत नहीं, जरूरत है तो समय पर पहचान और इलाज की। कई सरकारी अस्पतालों में मोतियाबिंद की निःशुल्क जांच और ऑपरेशन की सुविधा उपलब्ध है।
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