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भीड़-भाड़ से मुक्त, सुकून का हमजोली

कसौली
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हिमाचल प्रदेश की शिवालिक पहाड़ियों में बसा कसौली एक शांत, सुरम्य और कम भीड़भाड़ वाला हिल स्टेशन है। शिमला से लगभग 75 किलोमीटर दूर यह जगह अंग्रेजी छावनी, अखरोट के पेड़ों, पुरानी माल रोड और पहाड़ी दृश्यों की सादगी से भरी है। दिल्ली से आसानी से पहुंचा जा सकने वाला यह ठिकाना सुकून की तलाश वालों के लिए आदर्श है।

अमिताभ स.

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हिमाचल प्रदेश के शिवालिक पहाड़ियों पर बसा है कसौली। समुद्र तल से 6400 फुट की ऊंचाई पर है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी और पहाड़ों की रानी शिमला से करीब 75 किलोमीटर परे है। कसौली से नज़र आते पंजाब के हरे-भरे खेतों-मैदानों का नज़ारा मंत्रमुग्ध कर देता है। ​कसौली की बड़ी खासियत है कि शिमला, मसूरी और नैनिताल जैसी बेइंतिहा भीड़भाड़ की चपेट में आने से आज तक बचा रहा है। इस लिहाज़ से, इसे बेशक कम लोकप्रिय हिल स्टेशन कह सकते हैं, फिर भी, इसकी हिमाचली खूबसूरती आज भी दाद देने लायक है।

तो ज्यादा सोचना क्या? कसौली से रू-ब-रू होने पहुंच जाएं- दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं है और सुकून भरा भी कितना है? अखरोट के पेड़ों के बीच ​बाकी कई हिल स्टेशन की तरह कसौली को अंग्रेजों ने ही अपना ठंडा ठिकाना बनाया। तब मकसद था कि नजदीकी सुबाथू छावनी में रहते फौजियों के लिए आराम और सुकून की दिलकश जगह बनाना। हू-ब-हू वैसी ही जैसी आज के शहरी तरोताज़ा होने वीकेंड पर वहां पहुंच जाते हैं। फिर दो-चार दिन बाद नए जोश-खरोश के साथ काम पर लौट आते हैं।

कुसोवली बन गया कसौली

पुराने जमाने में, कसौली जब कुसोवली था, तब अंग्रेज ऊंचे पहाड़ों पर तांगों या घोड़ों पर सवार होकर पहुंच जाते थे। इससे भी पहले जब टेढ़े- मेढ़े रास्ते नहीं बने थे, तब छावनी तक पहुंचने में ट्रेकिंग करनी पड़ती थी। ​घोड़ों पर सवार हो कर अखरोट के पेड़ों के बीच से गुजरना तब और अब भी उमंग से भरता रहा है। अप्रैल से जून के मध्य तो और भी रोमांचक हो उठता है, जब पेड़ों पर अखरोट पूरे शबाब पर होता है। कसौली से साढ़े 5 किलोमीटर ऊपर सनावर हिल पर चढ़ाई चढ़कर, फिर धर्मपुर तक उतरना अखरोट की खुशबू से तन-मन महका देती है।

एक अन्य वॉक वाया गड़खल बैकुंठ रिजोर्ट तक जाती है। इस रास्ते से जलपान के गिने-चुने ठिकाने मिल जाते हैं। ​घने और पुराने अखरोट के दरख्तों के बीच आबोहवा तन को मदमस्त कर देती है, तो पक्षी-परिन्दों का मधुर कलरव मन को। ऐसी नायाब सौगातों से सराबोर कसौली अंग्रेजी के जाने-माने लेखक खुशवंत सिंह के दिल के करीब था। वह बार-बार खिंचे आते थे। बताते हैं कि वह जब-जब दिल्ली से ऊब जाते, तब-तब लिखने के लिए यहीं कॉटेज में डेरा डाल लेते थे।

लोअर माल, अपर माल

ज्यादातर हिल स्टेशनों की तरह कसौली की माल रोड का भी जलवा है। इसे दो हिस्सों में बांटा गया है- अपर माल और लोअर माल। रोज सुबह और शाम लोअर से अपर माल की पैदल सैर की जा सकती है। यहां बाकी ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं है। जगह-जगह रैलिंग लगा कर, नज़ारों का दीदार करने की जगहें बनाई गई हैं। यहां से सुदूर पहाड़ों की चोटियों को निहारना दिलकश लगता है।​ ​अपर माल से घूमते-घुमाते मंकी प्वाइंट तक जा सकते हैं।

आगे 4 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर श्री बाबा बालक नाथ मन्दिर के दर्शन होते हैं। भक्त अपने बच्चों की खुशहाली के लिए पूजा-अर्चना करते हैं। यहां से नजारे भी कम हसीन नहीं है। दूर-दूर तक फैले जंगलों से भरे हरे-भरे पहाड़ और गहरी खाइयां देखते ही बनती हैं। साफ मौसम के रोज दूर से सतलुज नदी को भी देखने का मौका मिलता है। यही नहीं, यहीं से धौलाधार पहाड़ों पर लिपटी दूधिया बर्फ की चद्दार और चांदनी भी देखी जा सकती है। ​पिकनिक के लिए भी आजू-बाजू खासमखास जगहें हैं। जंगलों में किस्म-किस्म के परिन्दें हैं और हिरण भी दिखाई देते हैं। लकड़बग्घा भी यदा-कदा दिख जाते हैं।

बन-गुलाब जामुन

माल रोड पर एक स्वीट्स के बन-गुलाब जामुन खाने तो बनते हैं। हलवाई की दुकान 1976 से बन-गुलाब जामुन से रिझा रही है। बन को काट कर, एक तरफ गर्मागर्म चाश्नी भरते हैं, ऊपर गर्म लंबा गुलाब जामुन रखते हैं, फिर उसके तीन-चार टुकड़े कर देते हैं। ऊपर से दूसरे को कवर करके, तवे पर सेकते हैं। गर्म-गर्म पेश करते हैं। ठंडे मौसम में बेहद स्वादिष्ट लगता है।

वैसे, कसौली में ज्यादा रेस्टोरेंट्स नहीं हैं। ज्यादातर सैलानी बाज़ार में डेली नीड स्टोर्स से ब्रेड, बटर, जैम, हेम वगैरह ले जाकर, खुद ही सैंडविच बना कर खा सकते हैं।

टिम्बर ट्रेल का मेल

कसौली के आते-जाते रास्ते में है परवाणू। यहीं टिम्बर ट्रेल रिजोर्ट का लुत्फ उठा सकते हैं। केबल कार राइड का सुहावना सफर खासा मजेदार है। करीब 1.8 किलोमीटर रोप-वे सफर तय कर हिल टॉप पर टिम्बर ट्रेल हाइट्स पर होते हैं। ​कसौली से महज़ 19 किलोमीटर दूर छोटा-सा पहाड़ी शहर डगशई है। ओक यानी बलूत के जंगलों में पैदल घूमना-फिरना कुदरत के नजदीक होने का अहसास जगाता है। अंग्रेजों के जमाने में भी लोग ठंडक की तलाश में डगशई आते रहे हैं। इसीलिए यहां इंग्लिश आर्किटेक्चर के डिजाइन के बंगलों की कतारें देख सकते हैं।

कब जाएं

दिल्ली से कसौली करीब 300 किलोमीटर दूर है। सड़क के रास्ते पहुंचने में करीब 6 घंटे लगते हैं। ट्रेन से जाएं, तो करीब साढ़े 3 घंटे कर रेल सफर, फिर आगे डेढ़ घंटा सड़क से लगता है। यानी कुल 5 घंटे। तकरीबन 50 मिनट की उड़ान और डेढ़ घंटे का सड़क मार्ग तय कर भी दिल्ली से कसौली पहुंच सकते हैं। नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन दोनों चंडीगढ़ ही हैं।

सालभर कभी भी कसौली घूमने-फिरने जा सकते हैं। गर्मियों में भी ठंडक रहती है, लेकिन दिन कभी-कभार ज़रा गर्म होता है। सर्दियों में कड़ाके की ठंड पड़ती है। हालांकि बर्फ नहीं गिरती।

मॉनसून के दौरान भी हल्की बारिशें होती हैं। इसलिए मॉनसून में भी कसौली का सैर-सपाटा खलता नहीं है।

मौसम के लिहाज़ से, कसौली घूमने के लिए अक्तूबर बेशक ठीक है, लेकिन इस दौरान होटलों की बुकिंग मिलना मुश्किल होता है। कारण? असल में, यहां स्थित लॉरेंस स्कूल की फाउंडेशन डे सेलिब्रेशंस के सिलसिले में बड़ी तादाद में अभिभावक शरीक होने आते हैं, जिससे ज्यादातर होटल फुल हो जाते हैं। इसलिए अक्तूबर में कसौली घूमने न जाना ही बेहतर है।

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