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Effect of Mobile and Social Media खुली प्रेम की नयी दुनिया पर परंपरा की चुनौती भी

मोबाइल व साेशल मीडिया के यूज से गांव-शहर में सिमटता फासला
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प्रकृति की गोद में मौजूद एक प्रेमी युगल
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मोबाइल फोन व सोशल मीडिया ने कई मामलों में गांव-शहर का अंतर लगभग खत्म कर दिया है। मसलन नगरों कीे तरह ग्रामीण युवाओं व महिलाओं को आजादी दी है जो जिंदगी के अहम फैसलों में भी दिखती है। मोबाइल क्रांति के चलते युवाओं को हासिल प्रेम व प्रेम विवाह की सुविधा और ग्रामीण समाज में उसमें खड़ी की जा रही बाधाएं टकराव-तनाव का सबब बन रही हैं। अब वेलेंटाइन डे जैसे मौके भी वहां तनाव का विषय हैं।

लोकमित्र गौतम

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सालों पहले किसान नेता शरद जोशी हिंदुस्तान को आर्थिक नजरिये से दो पहचानों में बांटा करते थे। इंडिया बनाम भारत। वह मानते थे कि इंडिया से भारत दशकों, दशक पीछे है, जहां इंडिया रॉकेट युग में जी रहा है, वहीं भारत बैलगाड़ी युग में जीने के लिए मजबूर है। लेकिन पिछली सदी के 90 के दशक के मध्य में आया मोबाइल और इस 21वीं सदी में हुई डाटा क्रांति ने कुछ मामलों में भारत और इंडिया के बीच की दूरियां बहुत हद तक मिटा दी हैं। इस गैप को सोशल मीडिया ने 90-95 फीसदी तक पाट दिया। आज जिस तरह शहर की युवा पीढ़ी मोबाइल से चिपकी रहती है, उसी तरह से गांव के नौजवान भी। गांव और शहर के बीच पहले जीवनशैली में इतनी ज्यादा समानता कभी नहीं थी जब तक मोबाइल व सोशल मीडिया ने हमारे खाने-पहनने से लेकर सोचने, समझने तक की दुनिया में हस्तक्षेप नहीं किया था। आज कोई ऐसा फैशन नहीं है जो सोशल मीडिया के जरिये शहर के साथ-साथ गांव न पहुंचता हो। नई-नई आदतें और इमोशन भी अब गांव-शहर के युवाओं के बीच समान हैं। आज के दौर में महानगरों से ज्यादा वेलेंटाइन डे जैसे मौकों पर उत्तेजना गांवों के युवाओं में देखी जाती है। एक जमाने तक गांव-शहर में स्पष्ट दूरियां थीं। लेकिन मोबाइल क्रांति के बाद ग्रामीण समाज विशेषकर प्रेम और शादियों को लेकर नये तनाव से गुजर रहा है। मोबाइल ने गांवों में पुरानी-नई पीढ़ी के बीच तनाव पैदा कर दिया है। दरअसल, वेलेंटाइन डे जैसे मौकों से जुड़ी भावनाओं ने ग्रामीण समाज में उथल-पुथल मचा दी है।

प्रेम और विवाह अब नये सामाजिक तनाव

भारत के गांव जो कभी पारंपरिक रीति-रिवाजों और सामुदायिक नियंत्रण से संचालित होते थे, अब मोबाइल तकनीक के चलते वैयक्तिक निर्णयों के दौर से गुजर रहे हैं। मोबाइल फोन ने पहली बार ग्रामीण युवाओं को ही नहीं महिलाओं को भी जबर्दस्त स्वतंत्रता दी है और उनकी यह आजादी बहुत सारे फैसलों में दिखती है। मोबाइल के चलते युवाओं को हासिल हुई प्रेम करने की सुविधा और ग्रामीण समाज में उस प्रेम को विवाह के रूप में परिवर्तित होने में पैदा की जा रही बाधाओं ने बहुत भारी तनाव पैदा कर दिया है। खबरें बेशक कम ही सामने आयें लेकिन मोबाइल क्रांति के बाद गांवों में युवाओं के बीच प्रेम और प्रेम विवाह लड़ाई-झगड़े और हत्याओं का कारण बनकर उभरे हैं। गांवों में 40 फीसदी से ज्यादा युवा मनमर्जी की शादी और प्रेम करने का इजहार कर चुके हैं। उनके मां-बाप यह स्वीकार करने के तनाव में है।

डिजिटल युग में प्रेम की परिभाषा

आज शहरी और ग्रामीण प्रेम में बहुत फर्क नहीं रह गया। दोनों ही जगह 90 फीसदी प्रेम मोबाइल और व्हाट्सएप के जरिये हो रहा है। इसलिए उनके नतीजे एक जैसे हैं। गांवों में भी डिजिटल प्रेम पारंपरिक मासूमियत को विदा कर रहा है। एक जमाना था जब गांवों में प्रेम प्रसंग के मौके मुश्किल से मिलते थे। समाज ही एक तरह से प्रेम के विरोध में निगरानी पर डटा रहता था। लेकिन अब मोबाइल फोन, व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम ने गांवों के युवाओं को भी न सिर्फ प्रेम के इजहार की खुली दुनिया मुहैया करायी है बल्कि अब गांव के युवा भी शहरी लड़कियों से ही नहीं बल्कि सुदूर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की लड़कियों से भी इश्क लड़ा रहे हैं। गांवों में ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से आकर लड़कियों ने शादियां की हैं, तो मानना पड़ेगा कि डिजिटल युग के प्रेम में किसी तरह की निगरानी कामयाब नहीं हो रही।

चैटिंग, स्नैपिंग का जमाना

पहले प्रेम चोरी चोरी, चुपके चुपके होता था। फिर उससे आगे पत्र व्यवहार के जरिये भी चोरी-छुपे ही बढ़ता था। लेकिन सीधे चैटिंग, वीडियो कॉलिंग और स्काइ स्नैपिंग का दौर है। जिस पर कोई भी पहरा कारगर नहीं। पहले गांव में जहां स्वतः युवा पीढ़ी प्रेम संबंध बनाते समय अपनी जातियों और धर्मों का ख्याल रखती थी, वहीं अब ये सारी सीमाएं टूट गई। इससे ग्रामीण समाज में जबर्दस्त तनाव देखने में आया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्टें कुछ कहें या न कहें, हाल के सालों में ऑनर किलिंग और सामान्य हत्याओं के मामले में भी प्रेम संबंध और प्रेम विवाह बड़े कारण बनकर उभरे हैं।

नई और पुरानी पीढ़ी में सांस्कृतिक संघर्ष

नई पीढ़ी के लिए वेलेंटाइन डे जैसे मौके उत्साह, उत्तेजना और रोमांच से भरे हुए हैं। जबकि पुरानी पीढ़ी के लिए ये उनकी सांस्कृतिक टेरेटरी में हमला है, अपमान है और वह वेलेंटाइन डे जैसे मौकों को सेलिब्रेट करने के विरोध में रहती है। पुरानी पीढ़ी मोबाइल के कुछेक फायदों के लिए तो तैयार है, लेकिन नहीं चाहती कि इसके चलते उनकी सदियों से बनायी समाज व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाए। वे अभी भी अरेंज मैरिज व जाति, धर्म आधारित रिश्तों को वरीयता देते हैं। जबकि युवा फिल्मों और वेबसीरीज से प्रभावित होकर अपने मन के साथी चुनने की ओर बढ़ रहे हैं। यही कारण है कि युवा पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच गांवों में इस तकनीक ने तनाव पैदा कर दिया है।

आज गांव उस दोराहे पर आकर खड़े हो गये हैं जहां एक तरफ परंपरा और संस्कृति के नाम पर पारंपरिक जीवनचर्या है वहीं दूसरी तरफ आधुनिक तकनीक आधारित जीवन डिजिटल क्रांति से भरपूर है। जहां पारंपरिक जीवनशैली युवाओं के ऊपर बुजुर्गों का नियंत्रण तय करती है, वहीं नई जीवनशैली उन्हें इससे मुक्त करती है। यही वजह है कि गांवों में आज वेलेंटाइन डे जैसे मौके शहरों से ज्यादा चर्चा और तनाव का विषय बन गये हैं। -इ.रि.सें.

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