डॉ़ मोनिका शर्मा
अभिभावकों की भूमिका बहुत अहम होती है | जरूरी है कि पेरेंट्स सार्थक संवाद और स्नेह का पुल बनाकर बच्चों से जुड़े रहें | आज के दौर में यह जरूरी हो चला है | साथ ही यह भी सच है कि सलाह देनी या समझाइश में पैरेंट्स का स्थान कोई नहीं ले सकता|
असलियत से मिलवाने वाले मार्गदर्शक
जिन्दगी की जद्दोजहद में परिस्थिति के मुताबिक सलाह-समझाइश देने और संबल बनने के मोर्चे पर पैरेंट्स की बराबरी कोई नहीं कर सकता | संबल और सहजता की जो डोर इस माता-पिता और बच्चे के रिश्ते को बांधती है, वह किसी दूसरे बंधन में संभव ही नहीं |अभिभावक कामयाबी के दौर में भी उतने ही साथ खड़े होते हैं जितने कि नाकामयाबी के पड़ाव पर | दुनिया की हर औपचारिकता से परे पैरेंट्स बच्चों को गाइड करने के लिए हर फ्रंट पर न सिर्फ़ अपनी बात रखते हैं बल्कि भविष्य में सामने आ सकने वाले हालातों को लेकर चेताते भी हैं | दरअसल, पैरेंट्स यह जानते-समझते हैं कि शिखर छूने के दौर में ही नहीं, डिगने के समय भी उन्हें अपने बच्चों का हाथ थामे रहना है | इसीलिए स्पष्ट कहने, चेताने और कमियों में सुधार की राह सुझाने का काम भी माता-पिता से बेहतर कोई और नहीं कर सकता | जरूरी है कि हर बच्चे के पैरेंट्स उसका साथ देते हुए जीवन की असलियत से मिलवाने वाले मार्गदर्शक बनें | सही मायने में देखा जाए तो जिन्दगी भी एक खेल का मैदान ही है, जहां हर दिन नई पारी खेलनी होती है | हार-जीत का सामना करना पड़ता है | गिरना-उठना, टूटना-संभलना होता है | ऐसे हर मोड़ पर अभिभावक मजबूती से हाथ थामे रहें इससे बेहतर क्या हो सकता है?
शख्सियत तराशने का काम
बच्चों की शख्सियत तराशने में सबसे अहम भूमिका पैरेंट्स की ही होती है | उनका तजुर्बा बच्चों को जज्बाती तौर पर मजबूत और सामाजिक मोर्चे पर स्नेह-साथ को जीने की प्रैक्टिकल समझ पैदा करता है | करिअर के चुनाव में मदद करने से लेकर रहन सहन की समझ तक, अभिभावक ही बच्चों को गाइड करने का काम करते हैं | कितना कुछ तो बच्चे अपने पैरेंट्स की जिन्दगी को देखकर ही समझ लेते हैं | उनकी छोटी से छोटी आदत, वर्बल कम्युनिकेशन, शारीरिक हावभाव और इमोशनल ठहराव बहुत सहजता से बच्चों के व्यक्तित्व में उतर आता है | बच्चों के व्यवहार का हिस्सा बन जाता है | साइकोलॉजी की इमिटेशन थ्योरी भी बताती है कि बच्चे सामाजिक व्यवहार अपने माता-पिता से ही सीखते हैं |
हर मनोभाव को मजबूती देता साथ
समझना जरूरी है कि सामाजिक व्यवहार की समझ जिन्दगी की हर पारी में काम आती है | हार को स्वीकारना और जीत को संभालना सिखाती है | टूटने-बिखरने के बजाय फिर कोशिश करने की हिम्मत देती है | समझना मुश्किल नहीं कि अभिभावकों का स्नेह-साथ किसी न किसी रूप में हर इंसानी मनोभाव को मजबूती देता है जिससे बच्चों का व्यक्तित्व पूर्णता पाता है | अपने ही आंगन में मौजूद अहसासों से जिन्दगी की हर जंग में डटे रहने का संबल बटोरता है।
नैतिक समझ और संस्कार का आधार
मौजूदा दौर में नैतिक समझ और संस्कार से जुड़ी बातें पुरानी सी मानी जाने लगी हैं जबकि जीवन को थामने का काम आज भी इन्हीं के हिस्से है | ऐसे ही सबक बच्चों को गलतियां करने से बचाते हैं | बुरी आदतों के भंवर में गुम हो जाने से पहले ही सचेत कर देते हैं | इतना ही नहीं आपसी समझ का मजबूत घेरा बनाने में भी इनकी अहम भागीदारी है | सबसे जरूरी पक्ष यह कि इनको खाद-पानी देने का काम सिर्फ पैरेंट्स ही कर सकते हैं | बच्चों को नैतिक समझ और जमीन से जुड़े रहने की सीख अभिभावकों से ही मिलती है | कहना गलत नहीं होगा कि मानसिक उलझनों और हर मामले में मिस गाइड होने के इस दौर में मन-जीवन को ठहराव देने वाले इन संस्कारों की जरूरत कम होने के बजाय और बढ़ी ही है | यह एक ऐसी डोर है जो परिवार से जोड़े रखती है | परिवेश के प्रति समझ पैदा करती है | ख़ुशी या गम के दौर में भावनाओं और संवेदनाओं की समझ का पाठ पढ़ाती है | लेखक और सामाजिक मनोवैज्ञानिक फ्रेड ब्रायंट के मुताबिक़, परिवार के साथ छुट्टियां और उत्सव मनाने जैसी छोटी चीज़ों को मन से जीना रिश्तों को मजबूत और मानसिक सेहत को बेहतर बनाता है | यही वजह है कि समझ के साथ जीना और अपने संस्कारों से जुड़े रहना खुशहाल जीवन के लिए जरूरी हो गया है | यह जुड़ाव अभिभावकों से मिली सीख से मजबूती पाता है |