ब्रह्मांड में सबसे पहले तारे कब और कैसे बने? फिर इनसे आकाशगंगाओं का निर्माण सबसे पूर्व कहां हुआ? अब उनमें क्या परिवर्तन हो रहा है? ऐसे ही अनेक अनसुलझे रहस्यों की खोज करने के लिए नासा समेत कई एजेंसियों ने मिलकर हाल ही में अंतरिक्ष में जेम्स वेब टेलीस्कोप भेजा है। इसे विकसित करने में करीब 25 साल लगे हैं। यह पूर्व के हबल टेलीस्कोप से बहुत बड़ा व तकनीकी रूप से उन्नत है। छह महीने बाद इस टेलीस्कोप से कुछ-कुछ जानकारी मिलनी शुरू हो जाएगी। पूरे मामले को बता रहे हैं मुकुल व्यास
ब्रह्मांड में सबसे पहले तारों की रोशनी कब हुई? सबसे पहले आकाशगंगाएं कहां बनीं? ऐसे अनगिनत अनसुलझे सवालों का जवाब खोजने के लिए जेम्स वेब टेलीस्कोप कई वर्षों के लंबे इंतजार के बाद अंततः गत 25 दिसंबर को अंतरिक्ष में भेज दिया गया। जेम्स वेब टेलीस्कोप आधुनिक इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना है। इसका विकास नासा, यूरोपियन एजेंसी और कैनेडियन स्पेस एजेंसी ने मिलकर किया है। इस प्रोजेक्ट पर काम 1996 में शुरू हुआ था। इसे पहले 2005 में अंतरिक्ष में स्थापित किया जाना था लेकिन प्रक्षेपण की तारीख आगे खिसकती रही। इस दौरान टेलीस्कोप के डिजाइन में सुधार होते रहे। वर्ष 2016 में टेलीस्कोप के निर्माण का कार्य पूरा हुआ। इसके पश्चात इसके विस्तृत परीक्षण का दौर शुरू हुआ। 2018 में परीक्षण के दौरान टेलीस्कोप की शील्ड फट जाने के बाद नासा ने इसका प्रक्षेपण स्थगित कर दिया। मार्च 2020 में कोविड महामारी के कारण टेलीस्कोप के एकीकरण और परीक्षण के काम को स्थगित करना पड़ा। टेलीस्कोप की टीम ने यान की रवानगी से पहले हर उपकरण को अंतरिक्ष की विषम परिस्थितियों में आजमा कर देखा था। अमेरिकी खगोल वैज्ञानिक एडविन हबल ने सबसे पहले यह सिद्ध किया था कि हमारी मिल्की वे के आगे दिखने वाले अनेक ऑब्जेक्ट दरअसल दूसरी आकाशगंगाओं की मौजूदगी को दर्शाते हैं। तब से खगोल वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि सबसे पुरानी आकाशगंगाएं कितनी पुरानी हैं, उनका गठन कैसे हुआ और बाद में उनमें क्या बदलाव हुए? नासा के हबल टेलीस्कोप ने ब्रह्मांड के बारे में बहुत सी नयी जानकारियां हमें दी हैं लेकिन उसके बहुत से रहस्य अनसुलझे हैं, बहुत से सवालों के उत्तर खोजे जाने बाकी हैं।
खगोल वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि नए जेम्स वेब टेलीस्कोप से ब्रह्मांड में ज्यादा गहराई तक झांका जा सकेगा। ब्रह्मांड में दूर तक झांकने के लिए इस टेलीस्कोप में बहुत बड़ा दर्पण लगाया गया है। यह दर्पण करीब 6 मीटर चौड़ा है। इस पर एक शेड लगा हुआ है जिसका आकार टेनिस कोर्ट के बराबर है। यह शेड सूरज के विकिरण को अवरुद्ध करेगा। इसके अलावा टेलीस्कोप में चार पृथक कैमरे और सेंसर सिस्टम हैं। यह टेलीस्कोप एक सेटेलाइट डिश की तरह काम करता है। किसी तारे या आकाशगंगा से आने वाली रोशनी टेलीस्कोप के मुख में प्रवेश करेगी और प्राथमिक दर्पण से टकराकर चार सेंसरों तक जाएगी। एक सेंसर प्रकाश को विभिन्न रंगों में विभक्त करेगा और प्रत्येक रंग की ताकत को नापेगा। एक अन्य सेंसर प्रकाश की वेवलेंथ को नापेगा।
इस टेलीस्कोप का एक प्रमुख लक्ष्य ब्रह्मांड के छोर के निकट स्थित आकाशगंगाओं का अध्ययन करना है। इन आकाशगंगाओं के प्रकाश को ब्रह्मांड को पार करने और पृथ्वी पर पहुंचने में अरबों वर्ष लगते हैं। टेलीस्कोप से जुड़े एक वैज्ञानिक के अनुसार, टेलीस्कोप द्वारा ली जाने वाली तस्वीरों में उन प्राथमिक आकाशगंगाओं को देखा जा सकेगा जिनका गठन बिग बैंग घटना के 30 करोड़ वर्ष बाद हुआ था। जेम्स वेब टेलीस्कोप से वैज्ञानिक यह भी पता लगाने की कोशिश करेंगे कि हमारी मिल्की वे में तारों का गठन किस प्रकार होता है। साथ ही इससे सौरमंडल के बाहर दूसरे ग्रहों के वायुमंडलों का भी अध्ययन किया जा सकेगा।
बिग बैंग थ्योरी के मुताबिक, ब्रह्मांडीय महाविस्फोट से ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी। बिग बैंग के बाद बने तारों के पहले जमघट को खोजना बहुत ही जटिल काम है क्योंकि ये प्राथमिक आकाशगंगाए बहुत दूर हैं और मंद दिखाई देती हैं। वेब टेलीस्कोप के दर्पण में 16 भाग हैं और वह हबल टेलीस्कोप के दर्पण के मुकाबले 6 गुणा ज्यादा प्रकाश एकत्र कर सकता है। वेब टेलीस्कोप को पर्यवेक्षण के दौरान एक बड़ी जटिल समस्या का सामना करना पड़ेगा। चूंकि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है, वे आकाशगंगाएं भी पृथ्वी से दूर जा रही हैं जिनका वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन किया जाएगा। दूर जाने वाली आकाशगंगाओं के प्रकाश की वेवलेंथ दृश्य प्रकाश से इन्फ्रारेड प्रकाश में तब्दील हो जाएगी। इन्फ्रारेड प्रकाश विद्युत-चुंबकीय रेडिएशन है जिसकी वेवलेंथ दृश्य प्रकाश से बड़ी होती है।
इन्फ्रारेड प्रकाश को करेगा डिटेक्ट
वेब टेलीस्कोप इन्फ्रारेड प्रकाश को डिटेक्ट कर सकता है लेकिन मंद आकाशगंगाओं को इन्फ्रारेड प्रकाश में देखने के लिए टेलीस्कोप का अत्यंत ठंडा होना जरूरी है अन्यथा वह अपना ही इन्फ्रारेड रेडिएशन देखने लगेगा। इसी वजह से टेलीस्कोप के कैमरों और सेंसरों को माइनस 224 सेल्सियस तापमान पर रखने के लिए उसमें एक विशेष हीट शील्ड बनाई गई है।
… और मिलने लगेगी जानकारी
इस समय टेलीस्कोप के विभिन्न उपकरणों की चेकिंग और उनमें तारतम्य बैठाने का काम चल रहा है। इस काम में छह महीने लग जाएंगे। इसके बाद ही टेलीस्कोप से डेटा मिलने का क्रम शुरू हो पाएगा। अपनी 29 दिन की यात्रा के बाद यह टेलीस्कोप अंतरिक्ष में ‘लग्रांज पॉइंट 2’ या एल 2 नामक स्थान पर पहुंचेगा। यह स्थान पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर है। लग्रांज पॉइंट अंतरिक्ष में उस स्थान को कहते हैं जहां भेजा गया ऑब्जेक्ट एक ही स्थिति में रहता है। एल 2 पॉइंट खगोल विज्ञान के लिए एक आदर्श स्थान है क्योंकि वहां भेजे गए अंतरिक्ष यान के साथ पृथ्वी से संपर्क करना आसान होता है। यहां से दूरबीन से अंतरिक्ष की ज्यादा साफ तस्वीर दिखती है।
नासा का कहना है कि जेम्स वेब टेलीस्कोप को अपने गंतव्य पर पहुंचाने के लिए तीन बार दिशा-सुधार के उपाय करने पड़ेंगे। टेलीस्कोप के सफल प्रक्षेपण और दिशा-सुधार के दो उपायों के बाद टेलीस्कोप की टीम ने अनुमान लगाया है कि इस अंतरिक्ष वेधशाला में दस साल तक वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए समुचित ईंधन रहेगा।
बहुत बड़ा है जेम्स वेब
जेम्स वेब टेलीस्कोप को दस साल तक संचालित करने के उद्देश्य से निर्मित किया गया है। इंजीनियरों का कहना है कि यह टेलीस्कोप दस साल के बाद भी काम करेगा। यह अंतरिक्ष टेलीस्कोप 21वीं सदी के सबसे बड़े वैज्ञानिक प्रोजेक्टों में गिना जाता है। इसे विकसित करने में लगभग तीन दशक लगे हैं और करीब दस अरब डॉलर का खर्च आया है। यह हबल टेलीस्कोप की तुलना में बहुत बड़ा है जो 1990 से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है। वेब टेलीस्कोप की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह उस अदृश्य इन्फ्रारेड प्रकाश को डिटेक्ट कर सकता है जिसे हबल के जरिए नहीं देखा जा सकता। ब्रह्मांड के दूरवर्ती ऑब्जेक्ट्स की चमक को इन्फ्रारेड प्रकाश में ही देखा जा सकता है।