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बदले दौर में हीरो का जुदा स्टारडम

पुराने दौर के फिल्मी हीरो अपनी नायक की छवि का खास ख्याल रखते थे। कमाई के लालच में उसूलों से समझौता नहीं करते थे। लोकप्रिय सितारों दिलीप, देवानंद और राज कपूर के स्टारडम का तेवर बिल्कुल जुदा था। लेकिन आज...
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पुराने दौर के फिल्मी हीरो अपनी नायक की छवि का खास ख्याल रखते थे। कमाई के लालच में उसूलों से समझौता नहीं करते थे। लोकप्रिय सितारों दिलीप, देवानंद और राज कपूर के स्टारडम का तेवर बिल्कुल जुदा था। लेकिन आज के ज्यादातर हीरो किसी भी तरह का विज्ञापन करने को तैयार हैं।

असीम चक्रवर्ती

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नए दौर के ज्यादातर हीरो नायक बनने की कोई कोशिश करते दिखाई नहीं पड़ते हैं। असल में, आज भौतिक दौड़ के चलते वे अपनी सुध-बुध खो चुके हैं। उस दौर को याद कीजिए, जब हमारे हीरो नायक की अपनी छवि को लेकर काफी गंभीर होते थे। महज पैसा कमाने के लिए वे कुछ भी करने के लिए कभी तैयार नहीं हुए।

प्रलोभन से दूर रहे

उस दौर में मार्केटिंग का बाज़ार उतना फला-फूला नहीं था। फिर भी किसी भी बहाने एंडोर्समेंट के रास्ते खुले हुए थे। बड़े सितारों का आकर्षण तब भी काफी था। उनके प्रशंसकों के बीच उनके पोस्टर, उनके हस्ताक्षर वाले कार्ड की धूम थी। दिलीप, देवानंद और राज कपूर की बहुत लोकप्रियता थी। मगर उनके स्टारडम का तेवर बिल्कुल जुदा था।

दिलीप कुमार मशीन नहीं बने

अपने लंबे फिल्म कैरियर में महानायक दिलीप कुमार ने मात्र 55-60 फिल्में की थीं। वह ऐक्टिंग के मामले में कभी मशीन नहीं बने। बहुत चिंतन-मनन करने के बाद ही वह हर शॉट को ओके करते थे। उनकी फिल्म बी.आर. चोपड़ा की ‘दास्तान’ का एक किस्सा मशहूर है। एक शाम शूटिंग पैकअप होने से पहले उनसे गुजारिश की गई, ‘आज तीस मिनट आप और रुक जाइए। तुम्हारे इसी ड्रेसअप में पांच मिनट का एक और शॉट बाकी है। उसे पूरा कर लूं, तो आज के शेड्यूल का पूरा काम हो जाएगा।’ पर दिलीप साहब नहीं माने।

देव तो दूर भागते थे

देव आनंद ने अपने पूरे फिल्म कैरियर में कभी भी गेस्ट रोल नहीं किया। बात फराह खान द्वारा निर्देशित शाहरुख की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ के अंतिम दिन की शूटिंग की है। इसमें कई बड़े सितारों की एक झलक दिखाने के लिए सहमति ली गई थी। इसीलिए जब फराह ने देव साहब से संपर्क किया, तो उन्होंने साफ मना कर दिया।

राज बिके नहीं, मगर...

बात फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ की महा-पराजय की है। राज साहब अपसेट थे। पैसे की किल्लत थी। ऐसे में उनके दो परिचित तस्कर करीम लाला और हाजी मस्तान ने कहा, “आप आराम से अगली फिल्म बनाओ। पैसा हमसे ले लो।” मगर राज ने सहायता लेने से इंकार कर दिया। बाद में उन्होंने अपना सब कुछ गिरवी रखकर ‘बॉबी’ बनाई जो सफल रही।

अपवाद भी रहे

फिल्मों के प्रसिद्ध जानकार राजगोपाल नांबरियार बताते हैं, “पुराने दौर के कई कलाकार इस सोच से कुछ अलग सोचते थे। मसलन, साल 1949 की एक शूटिंग-सर्टिंग की छोटी सी ऐड फिल्म में उस दौर के दो अत्यंत मशहूर कलाकार अशोक कुमार और मीना कुमारी ने अपनी झलक दिखाई थी।” बाद में अशोक कुमार, शम्मी कपूर आदि कई पुराने दौर के कलाकारों ने खुलकर कई ऐड फिल्मों में काम किया। इसके बाद के दौर में अमिताभ, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा आदि ने जमकर एंडोर्समेंट किया है। अभिनेता रणवीर सिंह ने ‘पद्मावत’ के बाद से फिल्मों में न सही, ऐड की दुनिया में बहुत बड़ा धमाका किया।

सनी सीमित रहे

इस मामले में इन सारे अभिनेताओं के बीच सनी देओल ने ऐड फिल्मों में खुद को काफी सीमित रखा है। वह कुछ चुनिंदा विज्ञापन फिल्मों में ही काम करते हैं। असल में हर फिल्म में उनकी फीस काफी ऊंची होती है। ‘गदर-2’ में काम करने के लिए उन्होंने 20 करोड़ की राशि ली थी। अब आमिर खान की फिल्म ‘1947 लाहौर’ के लिए करीब 25 करोड़ फीस ली है।

एंडोर्समेंट का विशाल आकाश

इन वर्षों में एंडोर्समेंट का चेहरा बहुत बदल चुका है। आज इसके अनेक रूप हैं। इसलिए नामचीन सितारे भी फिल्मों के अलावा अपनी हर उपस्थिति का पूरा पारिश्रमिक लेते हैं।

गाइडलाइन फॉलों नहीं करने का ट्रेंड

शाहरुख, आमिर ही नहीं, अक्षय, अजय आदि ने पैसे कमाने के लिए कोई गाइडलाइन नहीं रखी। पान मसाला से लेकर गारमेंट्स का ऐड करके काफी पैसा कमाया है।

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