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आहार-विहार नियमन से श्वास रोग में लाभ

अस्थमा यानी श्वास रोग में सांस लेने में दिक्कत होती है। एकदम सांस फूलना यानी अस्थमा का अटैक बहुत कष्टकारी होता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में श्वास रोग की चिकित्सा के लिए कुछ औषधीय नुस्खे व परहेज मौजूद हैं। वहीं आहार-विहार...
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अस्थमा यानी श्वास रोग में सांस लेने में दिक्कत होती है। एकदम सांस फूलना यानी अस्थमा का अटैक बहुत कष्टकारी होता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में श्वास रोग की चिकित्सा के लिए कुछ औषधीय नुस्खे व परहेज मौजूद हैं। वहीं आहार-विहार के नियम भी श्वास रोगी के लिए राहतकारी हैं।

प्रो. अनूप कुमार गक्खड़

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अस्थमा को आयुर्वेद में श्वास रोग के नाम से जाना जाता है। चरक संहिता में इसे दुर्जेय रोग अर्थात कठिनाई से जीता जाने वाले रोग कहा गया है। व्यवहार में इसे दमा के नाम से भी जाना जाता है और कहा जाता है कि दमा दम के साथ ही जाता है। लेकिन समुचित आहार-विहार और दिनचर्या के साथ इसके रोगी भी सुखपूर्वक जिन्दगी व्यतीत कर सकते हैं।

श्वास संबंधी रोग के कारण

वातावरण में धुंआ, धूल के कणों की उपस्थिति, मौसम में परिवर्तन, वायुप्रदूषण, भोजन में रसायनों का प्रयोग, असमय भोजन, तीव्र भावनाएं जैसे मानसिक तनाव होना, तम्बाकू या धूम्रपान का प्रयोग जैसी वजहें रोग को बढ़ा देती हैं। लकड़ी का चूरा, अनाज का चूरा, जानवरों की रूसी अच्छे-भले आदमी को भी श्वास का रोगी बना देती है। गन्ने के रस, आईसक्रीम, केले, दही, श्रीखण्ड जैसी वस्तुओं के सेवन से भी रोग बढ़ता है। जल बहुल क्षेत्र में यह रोग आम तौर पर पनपता है जबकि रेगिस्तान जैसे प्रदेश में इसकी उत्पत्ति प्रायः नगण्य होती है।

ऐसे पहचानें रोग को

अगर किसी को सांस लेने में दिक्कत हो रही हो। व्यायाम या श्रम करने से वह तकलीफ बढ़ रही हो तो यह संकेत उसके श्वास रोग से ग्रसित होने के हो सकते हैं। बलगम के साथ अथवा उसके बिना खांसी आना इस रोग का लक्षण है। इस रोग में श्वास नालियां सूज जाती है और सांस लेने में दिक्कत होती है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में श्वास रोग के पांच प्रकार बताए गए हैं। सबसे आम प्रकार तमक श्वास है, यानी ब्रोन्कियल अस्थमा। इस रोग में सांस बार-बार फूलता है। वेग आने पर रोगी बहुत कष्ट पाता है। परहेज और चिकित्सा, दोनों ही न करने से रोगी का कष्ट बढ़ जाता है। उसे ऐसा आभास होता है कि वह अन्धकार में डूब रहा है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित निर्देशों का ठीक से पालन किये जाने पर बीमारी की तीव्रता कम हो जाती है।

श्वास रोग का वेग आये तो...

श्वास रोग का वेग आने पर यानी अस्थमा की एकदम तीव्रता बढ़ने पर कुछ उपाय हैं जो मददगार साबित होंगे। जैसे- रोगी अगर लेटा हो तो तुरन्त उसे बैठा दें। दमे का अटैक आने पर छाती पर सैन्धव नमक और तिल के तेल को गर्म करके सिकाई करें। बहेड़े के चूर्ण को शहद के साथ चाटने से श्वास रोग का वेग कम हो जाता है।

कुछ सुलभ उपाय

आयुर्वेद में कुछ नुस्खे यानी औषधियों के योग श्वास रोग में विशेष तौर पर लाभकारी माने जाते हैं। जैसे- पुराना गुड़ समान मात्रा में सरसों के तेल में मिलाकर 21 दिन चाटने से श्वास रोग में लाभ मिलता है। वहीं पिप्पली ,आंवला और सोंठ के मिश्रित चूर्ण में मधु यानी शहद मिलाकर सेवन करने से हिक्का और श्वास रोग में लाभ होता है। वहीं पीपल वृक्ष की अन्तर्छाल का चूर्ण पांच ग्राम की मात्रा में लेकर खीर में मिला लें जिस पर शरद पूर्णिमा के अवसर पर चन्द्रमा की किरणें जब कुछ देर तक पड़ जाएं तो उसका सेवन करना चाहिए। एक ओर उपाय है पुराना गुड़, अनारदाना, मुनक्का , पिप्पली ,सोंठ- इन सबका चूर्ण नींबू के रस के साथ प्रयोग करने से और मधु के साथ लेह बनाकर चाटने से श्वासरोग नष्ट होता है। अदरक के ताजा स्वरस में शहद मिलाकर पीने से कास, श्वास, में लाभ होता है। श्वास, आमवात, वातरक्त व वातकफज रोगों में एरण्ड तेल का सेवन अमृत तुल्य होता है। हल्दी को जौकुट करके उसे हल्की आग पर शुद्ध घी में भून लें और उसका चूर्ण करके दिन में चार बार 2 से 4 ग्राम की मात्रा में मधु व अदरक के रस के साथ सेवन करें। अन्य लाभदायक आयुर्वेदिक नुस्खा है- सोंठ और गुड़ को समान भाग लेकर उसका चूर्ण बनाकर उसको सूंघना जिससे विशेष लाभ मिलता है। जो द्रव्य वात नाशक और कफ नाशक होते हैं और गरम तासीर वाले होते हैं उनका प्रयोग श्वास रोग में हितकर होता है।

रोग नियन्त्रण में सहायक नियम पालन

जौं के सत्तू का सेवन मधु के साथ करें। हर बार भोजन के बाद एक चम्मच देसी घी खा लें। पुराने चावल खाएं। कुलथ की दाल और गेहूं, जौ आदि लें। सांठी चावल खाएं। शहद का प्रयोग करें। दिन में सोना हितकर है। सादा आहार करें। सूर्यास्त से पूर्व भोजन कर लें।

कुछ परहेज भी है जरूरी

ठंडा पानी न पीयें न ठंडे पानी से नहाएं। ठंडे स्थान पर जाने से बचें। कूलर या ए.सी. का उपयोग न करें। तरल आहार का उपयोग कम करें व भोजन के बाद पानी न पिएं। मछली का सेवन न करें। रूखा, ठंडा और भारी आहार न लें। धूल एवं धुएं से बचें। भारी सामान उठाकर न चलें। पैदल अधिक न चलें।

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