कृष्ण कुमार रत्तू
अमेरिकी लेखिका लुईस ग्लिक को इस वर्ष का नोबेल साहित्य पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा हुई है। अचानक घोषणा यह दिखाती है साहित्य की दखल जिंदगी को और अच्छे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती रहेगी।
आज की इस दुनिया में साहित्य की भूमिका भी बेहद बदल गई है। कोविड-19 महामारी ने सब कुछ बदल दिया है। शब्दों की दुनिया में भी संवेदनाओं का चेहरा बिल्कुल नया हो गया है। शब्द दर्द से भर गए हैं। स्वीडिश एकेडमी ने यह साफ कर दिया है कि शब्दों की जो भूमिका इस चुनौती के समय में हो सकती थी, वह उनके साहित्य में एकदम स्पष्ट होकर संघर्ष और नयी जिंदगी के बीच नयी राह अख्तियार करती है।
उनकी रचनाओं में जिंदगी का यह सच एवं भविष्य का संवेदना भरा चेहरा दिखाई देता है। उनकी सारी पुस्तकें इसी तरह की संघर्ष की बानगी से मानवीय सरोकारों से जुड़े हुए शब्दों का अनूठा एवं संवेदनशील भंडार हैं। जिंदगी का संघर्ष कुछ इस तरह से है, जिसे शब्दों में बांधना मुश्किल है परंतु जिस संघर्ष और अंतर्मन की उड़ान उनके रचे हुए साहित्य में है, वह अप्रतिम और अनूठी है। उनके रचित साहित्य का अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
दरअसल, उनका समूचा रचना कर्म इसी तरह की एक नयी रवानगी एवं नये उत्साह से नयी जिंदगी को रास्ता दिखाता है। ग्लिक के साहित्य में जीवन के अनेक सतरंगी इंद्रधनुषी कोलॉज हैं, जिनकी छटा देखते ही बनती है। यदि लुईस का साहित्य देखना हो तो उसकी कविताओं में उतर कर देखो, जिसमें वह कहती है :-
‘जिंदगी तो यहीं कहीं थी
एक बार बिखर गई
तो फिर रास्ता नहीं मिलेगा
जिंदगी भूख से तो बड़ी नहीं है।
भूख दूर नहीं हुई
तो फिर जिंदगी कहीं नहीं रहेगी।’
इस वाक्य के साथ जिंदगी की समूची सच्चाई आपके सामने उतर जाती है और यह जीवन का अहसास वृत्तांत दृष्टि से देखा जाए तो साहित्य का एक सर्वोत्तम उपकरण एवं सर्वोत्तम शब्दों का एक खूबसूरत गुलदस्ता हो सकता है।
अपनी एक कविता में लुईस लिखती है :-
‘जिंदगी के लिए आंखों का पानी खत्म हो गया
अब तेरे साथ चलने में भूख का सवाल है।’
अनेक पुस्तकों की लेखिका लुईस अप्रैल 22, 1943 को न्यूयॉर्क में पैदा हुई। वह एक ऐसी लेखिका है जो समाज में जिंदगी के कई चेहरों को पहचानती है। येल यूनिवर्सिटी की चर्चित प्रोफेसर और कविता को माध्यम बनाकर अपनी रचना काे आधार मानते हुए लुईस ने कविता को नये अर्थों में परिभाषित करने की सफलतम कोशिश की है। उनका निजी जीवन दुश्वारियों से गुजरा है। कहीं ना कहीं उनकी पुस्तकों में वह अपने आप दिखाई देता है।
लुईस के रचना कर्म में थोड़ा-सा गहरे उतर कर देखें तो वहां साहित्य की एक अनूठी बानगी है जो बहुत कम लेखकों के हिस्से में आती है। जहां पर जिंदगी होती है, शब्द होते हैं और शब्दों का एक अपना संसार होता है।
लुईस की प्रसिद्ध रचनाओं में उसकी ‘वाइल्ड आइरिस’, ‘अक्तूबर’, ‘फ्रंट ऑफ एलइडी’, ‘मीडोलैंड्स’ और कविता की बहुत-सी किताबें शामिल हैं।
लुईस ने अपनी फर्स्टबोर्न पुस्तक 1968 में पहली बार जब लिखी तो यह कहना शुरू हो गया था कि वह भविष्य की एक बड़ी लेखिका हैं और जो समय के साथ सच हो गया।
एक पुस्तक में वे लिखती हैं कि लेखन का सबसे बड़ा पुरस्कार यदि मुझे मिलता है तो वह पुरस्कार मेरी अपनी रूह को शांति वाला होगा क्योंकि मेरे लफ्ज मेरी रूह की ऐसी सौगात है कि वह हर दिन मुझे एक नया जन्म देते हैं। वे कहती हैं कि मैं अपनी सारी पुस्तकों में अपने पात्रों के दुख-सुख, संघर्ष और उनकी आवारगी में भी उनके साथ चली हूं और यही सच है जो मेरे लफ्जों ने आज तक बयान किया है।